N. Raghuraman’s column – Thinking outside the box can checkmate birthday return gifts! | एन. रघुरामन का कॉलम: अलग सोच जन्मदिन के रिटर्न गिफ्ट को चेकमेट कर सकती है!

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8 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
‘किताबें कौन पढ़ता है?’ मेरे दोस्त की पत्नी ने यही जवाब दिया, जब बुजुर्ग दादाजी ने इस माह के अंत में पड़ने वाले पोते के 11वें जन्मदिन के लिए रिटर्न गिफ्ट में किताबें देने का सुझाव दिया। दादाजी ने तर्क दिया कि ‘इसी वजह से तुम्हें किताबें देनी चाहिए। वे कम से कम कुछ पन्ने तो पलटेंगे, कुछ पढ़ भी लेंगे।’ लेकिन घर में बहुमत इसके खिलाफ था।
मैं मौन देखता रहा। जब फैसला नहीं हो पाया तो सबने मुझसे पूछा कि ‘तुम क्या कहते हो?’ मैंने दादाजी की इजाजत ली और उनके सुझाव पर सहमति जताई, लेकिन थोड़े-से बदलाव के साथ। मैंने कहा कि ‘चलो गिफ्ट के तौर पर चेस बोर्ड देते हैं।’ सब जोर से हंसे और बोले ‘जब यह मोबाइल पर खेल सकते हैं तो पैसा क्यों बर्बाद करें?’ फिर मैंने उन्हें वजीदू की बात बताई।
यह जगह हाल ही में छत्तीसगढ़ में एक मुठभेड़ के दौरान शीर्ष माओवादी कमांडरों को मार गिराने के साथ ही सुर्खियों में आई थी। वजीदू तेलंगाना में है, लेकिन हैदराबाद से 300 किमी दूर छत्तीसगढ़ की सीमा पर है। इलाका माओवादी गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
यहां आप देख सकते हैं कि जिला परिषद हाई स्कूलों में सातवीं-आठवीं के विद्यार्थी 64 खानों वाले चेस बोर्ड पर बिना पलक झपकाए नजरें गढ़ाए रहते हैं। खेल भले ही दो रहे हों, लेकिन शेष आंखें तनाव भरे क्षणों में चुपचाप खेल को समझते हुए ब्लैक एंड व्हाइट बोर्ड से हट नहीं पाती हैं।
ऐतिहासिक रूप से यह इलाका आदिवासी जीवन, घने जंगलों और गोदावरी नदी के लिए प्रख्यात है। यहां पढ़ने और शतरंज खेलने वाले ज्यादातर बच्चे कोया आदिवासी समुदाय के हैं। उनके द्वारा सीखा गया यह पहला सुव्यवस्थित खेल है।
गांव की यह घटना स्थानीय लोगों, शिक्षकों और बच्चों की मानसिकता दर्शाती है कि कैसे कोई स्क्रीन से अपना ध्यान हटा सकता है। भले ये बच्चे आगामी कुछ महीनों में किसी वैश्विक प्रतियोगिता में नहीं खेलें, लेकिन उन्होंने युवाओं की नजरें स्क्रीन से हटाकर और इस खेल को स्कूल का रूटीन बनाकर इससे भी बड़ा मेडल जीत लिया है।
स्कूल की फिजिकल डायरेक्टर तेल्लम राजलक्ष्मी ने हनमकोंडा में बथुकम्मा पर्व के दौरान ‘चेस नेटवर्क’ द्वारा आयोजित शतरंज टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। वारंगल शहर में यह हजार खम्भों वाले मंदिर में नौ दिन का उत्सव था। वहां उनकी गुजारिश पर 10 शतरंज बोर्ड दिए गए, और अधिक देने का वादा भी किया गया।
‘नेटवर्क’ से जुड़े कैलिफोर्निया के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुजीत रेड्डी पुन्नम इसे भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताते हैं। उनका कहना है कि यह पहल उन युवाओं की मदद का रचनात्मक प्रयास है, जिनमें स्क्रीन के कारण अनहेल्दी डिस्ट्रैक्शन पनप रहा है।
जनजाति कल्याण विभाग लंबे समय से आवासीय स्कूलों में खेल को प्राथमिकता देता रहा है। उसने 12 खेलों में 20 मिनी स्पोर्ट्स अकादमी शुरू की हैं, जिनमें पांचवीं से डिग्री छात्रों तक को प्रशिक्षित किया जाता है। धीरे-धीरे उन्हें वैश्विक प्रतियोगिताओं के लिए तैयार किया जाएगा। रुचि बढ़ाने के लिए ‘नेटवर्क’ ने पिछले दिसंबर में वारंगल के ग्रैंडमास्टर अर्जुन एरिगैसी का नागरिक अभिनंदन भी किया। यह शिक्षकों को यूनिवर्सिटी स्तर के टूर्नामेंट कराने का प्रशिक्षण भी देता है।
स्क्रीन एडिक्शन और डिजिटल डिस्ट्रैक्शन पर बढ़ती चिंता के बीच शतरंज ऐसे खेल के तौर पर प्रासंगिक हो रहा है, जो ध्यान केंद्रित करने के साथ भावनात्मक और सामाजिक विकास भी करता है। यह एकाग्रता, आत्म-नियंत्रण और दृष्टिकाेण की विविधता बढ़ाता है।
शुरू में यह ‘मनोरंजन’ नहीं लगता, क्योंकि यह रंग-बिरंगा नहीं बल्कि ब्लैक एंड व्हाइट है। मैं जयपुर के स्कूली छात्र यश बरड़िया को जानता हूं, जिसकी कहानी मैंने इसी कॉलम में कवर की थी। उसने बचपन में शतरंज खेलना शुरू किया और कुछ ही वर्षों बाद 2025 में वह ‘इंटरनेशनल मास्टर’ बन गया।
फंडा यह है कि मानसिकता बदलने और बच्चों का ध्यान स्क्रीन से हटाने के लिए जन्मदिन के गिफ्ट से ही शुरुआत कीजिए।
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