Rashmi Bansal’s column – We are taught everything in schools, but why not cooking? | रश्मि बंसल का कॉलम: स्कूलों में हमें सब सिखाया जाता है, पर खाना बनाना क्यों नहीं?

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11 घंटे पहले
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रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर
हाल ही मैंने पढ़ा कि लंबी उम्र पाने का एक नुस्खा है- उलटे लटक जाइए। यह सलाह दी है एक फूड-डिलीवरी प्लेटफॉर्म के संचालक ने। वो मानते हैं कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, ब्रेन में खून का प्रवाह कम हो जाता है, और इसके लिए जिम्मेदार है फोर्स ऑफ ग्रैविटी यानी कि गुरुत्वाकर्षण का बल।
वैसे अगर आप योग करते हैं तो जानते होंगे कि ऐसी कई मुद्राएं हैं, जिनमें सिर नीचे की तरफ होता है। और शीर्षासन में तो आप सिर के बल पूरे शरीर को खड़ा करते हो। मगर आप यह भी जानते होंगे कि जो योगविद्या का पालन करते हैं, वो खाना भी सरल और शाकाहारी खाते हैं।
मजे की बात यह है कि जिन्होंने वो कंपनी बनाई, जो नई पीढ़ी के खाने की आदतों को बर्बाद कर रही है, अब वही हमें स्वास्थ्य की टिप्स दे रहे हैं। आज चाहे होस्टल हो या घर, अगर आपको थाली में रखी सब्जी पसंद नहीं, तो मन में खयाल आता है- कुछ ऑर्डर कर लूं।
अब आप ऑर्डर करते हो या नहीं, यह आपके हालात के ऊपर है। अगर मां की डांट से डरते हो तो चुपचाप लौकी खा लोगे। और सब के सोने के बाद, कुछ चटपटा मंगाकर खाओगे। डिलीवरी वाले को यह बोलकर कि भाई, घंटी ना बजाना, मैं बाहर आकर ले लूंगा।
अगर होस्टल हो या बैचलर फ्लैट, तब तो कोई रोक-टोक ही नहीं। आजकल के कपल्स भी काफी दिन तक सिंगल वाली लाइफ जीना चाहते हैं, सो वहां भी हर दूसरे दिन खाना मंगवाना आम बात है। लेकिन इसका नतीजा यह कि एक दिन सुबह ऑफिस के लिए तैयार होते-होते अहसास हुआ- उफ, पैंट टाइट हो गई। वजन 3 किलो बढ़ गया। हम्म, अब दो रास्ते हैं- या तो अपनी आदतें बदलें, या दूसरी साइज की पैंट लें।
अगर आपने पहला ऑप्शन चुना तो आप धन्य हैं। ऑफिस की मारामारी में अगर आप सुबह की सैर या शाम को जिम जाने लगे तो काफी फायदा होगा। लेकिन थोड़ी एक्सरसाइज का मतलब यह नहीं कि आपको अटरम-पटरम खाने का लाइसेंस मिल गया। घर पर बनाया पौष्टिक खाना बाहर से मंगाए खाने से हमेशा ही बेहतर होगा। हां, आपको रोटी और चावल कम, दाल-सब्जी ज्यादा खानी है। नमक कम, तेल कम, फल-सलाद भी लेना होगा।
अब सवाल है कि बनाएगा कौन? अगर आपका लक अच्छा है तो खाना बनाने वाली कोई अच्छी आंटी या दीदी मिल जाएगी। लेकिन फिर भी उसको थोड़ा समझाना पड़ेगा, बताना पड़ेगा। बाजार से सामान मंगवाना पड़ेगा। आजकल ऐसे आलसी लोग हैं, जिनको यह भी भारी पड़ता है।
खैर, दस-पंद्रह साल में ऐसी आंटी और दीदी भी नहीं मिलने वालीं। क्योंकि इनकी बेटियां पढ़-लिखकर कुछ और करना चाहती हैं। तब तक आशा है हमारे लिए रोबोट दीदी ईजाद हो जाएगी, जो स्टील के हाथों से दाल में तड़का डालकर मां के प्यार का अहसास दिलाएगी।
वैसे, आज भी खाना बनाना एक लड़की का काम समझा जाता है, क्योंकि यही हम सदियों से देखते आ रहे हैं। हम गणित-विज्ञान-भूगोल, सब सीखते हैं स्कूल में, लेकिन ये बेसिक लाइफ स्किल हमें सिखाई नहीं जाती। पढ़ाई करो, जॉब करो, पैसे कमाओ, लेकिन क्या रुपयों को आप अचार के साथ खा सकते हो?
चाइना में केजी के विद्यार्थी अपना काम खुद करना सीखते हैं। तीन-चार साल के बच्चे अपना बैड बनाते हैं, बस्ता लगाते हैं, सफाई करते हैं। और एक छोटे-से स्टोव पर ऑमलेट। आज के मां-बाप खुद घर का काम करने से कतराते हैं, तो वो अपने बच्चों को क्या सीख देंगे? इसमें वैसे मैं भी शामिल हूं। मेरा ध्यान हमेशा पढ़ने-लिखने पर ज्यादा था। पर अब समझ में आता है कि जो काम मां ने बिना किसी अहसान, प्रशंसा, पेमेंट के परिवार के लिए किया- वो बहुमूल्य था! (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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