Saturday 11/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Why does our communication fail and lead to conflict? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्यों हमारा कम्युनिकेशन फेल होकर विवाद तक पहुंच जाता है?

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1 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

‘वाइन के लिए मैं भुगतान क्यों करूं?’ फुटपाथ पर बने एक रेस्तरां में बहस में तब्दील हो चुकी बातचीत के एक वाक्य ने मेरा और कइयों का ध्यान खींचा। मैं और मेरा परिवार, टीवी सीरीज ‘फ्रेंड्स’ में अक्सर दिखाई जाने वाली उस ‘L-शेप’ की इमारत के नीचे इंतजार कर रहे थे, जहां फ्रेंड्स के किरदारों के अपार्टमेंट हैं। इसके ग्राउंड फ्लोर पर मशहूर ‘द लिटिल आउल’ मेडिटेरेनियन रेस्तरां है, जिसने एक तरफ के पूरे फुटपाथ को घेर रखा है।

न्यूयॉर्क के ग्रीनविच विलेज इलाके के बीच 90 बेडफोर्ड स्ट्रीट पर ये रेस्तरां है। यहां ऐसे कई रेस्तरां हैं, पर इस गली में ये पर्यटकों-स्थानीय लोगों में सर्वाधिक पसंद किया जाने वाला-महंगा रेस्तरां है। यहां तक कि जो लोग खाना नहीं खा रहे होते हैं वो अपनी बारी का इंतजार करते वक्त इमारत के आगे खड़े होकर सेल्फी लेते हैं।इसी वजह से उस ग्राहक व वेटर की बहस सुनी जा सकती थी। बहस की कहानी कुछ इस तरह है। उस अकेले ग्राहक ने भारी-भरकम वन मील मंगवाया।

‘स्टीक’ नामक इस फूड को दुनिया के उस हिस्से में अक्सर खाते हैं। कई लोगों ने इस डिश को लकड़ी की प्लेट में देखा होगा, जिसमें से धुआं निकलता है और ‘तड़के’ जैसी आवाज आती है। खासतौर पर इस डिश में काम आने वाली लकड़ी की प्लेट प्राकृतिक, देहाती और कभी-कभी बेहद शानदार लुक देती है, जिससे इसकी प्रस्तुति और बेहतर हो जाती है।

इस डिश के साथ समस्या ये है कि कुछ लोग इसके अंदर मीट को पूरी तरह भुना हुआ पसंद करते हैं। और कुछ को ये लाल रंग का पसंद होता है, यानी कम भुना या तला हुआ। इस ग्राहक के टेबल पर लाई डिश अधिक भुनी थी। इसलिए उसने इसे लेने से मना कर दिया। ऑर्डर लेने वाले वेटर ने शेफ की गलती स्वीकार की, डिश को रसोई में भेजा और उनसे दूसरी डिश बनाने के लिए कहा।

जाहिर है कि ग्राहक नाराज था। रेस्तरां का कैप्टन इस तीखी बहस को देख रहा था तो उसने वेटर से कोड वर्ड में कहा ‘पीपीएनएल’।(पॉसिबल प्रॉब्लम, नीड्स लव) रेस्तरां की भाषा में इसका अर्थ है कि ‘दिक्कत आ सकती है, प्यार से मामला संभालें।’ मतलब यह हुआ कि ‘ग्राहक परेशान या भूखा है और गुस्सा भी हो सकता है। इसलिए स्थिति बिगड़ने से पहले जाओ और उसे शांत करो।’ वेटर ने जाकर पूछा कि ‘सर, जब तक आप डिश के दोबारा तैयार होने का इंतजार कर रहे हो, मैं आपके लिए क्या परोस सकता हूं?’ ग्राहक ने कहा ‘वाइन’ और उसे वही परोस दी गई।

यहां आखिरी लाइन में पेंच है। वेटर की बात सुनकर ग्राहक ने सोचा कि रेस्तरां उसे मुफ्त में वाइन की पेशकश कर रहा है, क्योंकि यह उनकी गलती है कि उसे दोगुने समय इंतजार करना पड़ा। इधर, वेटर को लगा कि ग्राहक सहयोग कर रहा है और नई चीज ऑर्डर कर रहा है। इसीलिए रेस्तरां ने कॉम्प्लिमेंट्री डेजर्ट भेजा और बाद में जो बिल भेजा गया, उसमें वाइन का पैसा भी जोड़ दिया गया था।

इसी बात पर विवाद शुरू हुआ, जिसने मेरी तरह वहां से गुजरने वालों का ध्यान खींचा। संचार (कम्युनिकेशन) तभी सफल होता है जब ग्रहणकर्ता यानी परसीवर उसे समझता है। याद रखें, मैं प्राप्तकर्ता यानी रिसीवर नहीं कह रहा हूं। मैं परसीवर कह रहा हूं। क्यों? क्योंकि रिसीवर अक्सर संदेश को अपनी बुद्धि और समझ के आधार पर परसीव करता है, जिसे संदेशवाहक के सुर, शब्दों का चुनाव और चेहरे के भावों द्वारा अनजाने में ही नियंत्रित या प्रेरित किया जा सकता है।

इसका संदेशवाहक की बुद्धि से कोई लेना-देना नहीं है। यहां संचार की सफलता का रहस्य है। किसी भी संचार के लिए वैज्ञानिक फॉर्मूला कुछ इस प्रकार होता है… मैसेंजर-मैसेज-मोड और परसीवर। यदि परसीवर ने संचार के उद्देश्य और निहितार्थ को नहीं समझा, तो कोई भी संचार कभी पूरा नहीं हो सकता।

फंडा यह है कि यदि आप किसी को कोई सूचना भेजना चाहते हैं तो अपनी सूचना का अभ्यास नीचे से ऊपर की ओर करिए। कल्पना करना शुरू कीजिए कि प्राप्त करने वाला इसे सुनने के बाद कैसे ग्रहण करेगा। फिर माध्यम चुनिए, फिर संदेश बनाएं और तब संदेशवाहक का चयन करें। देखिए, यह कैसे आपके संचार में जादू कर देगा।

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