Saturday 11/ 10/ 2025 

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Dr. Anil Joshi’s column – The contradictory behavior of the weather gives worrying signals | डॉ. अनिल जोशी का कॉलम: मौसम का विरोधाभासी व्यवहार चिंताजनक संकेत देता है

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9 दिन पहले

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डॉ. अनिल जोशी पद्मश्री से सम्मानित पर्यावरणविद् - Dainik Bhaskar

डॉ. अनिल जोशी पद्मश्री से सम्मानित पर्यावरणविद्

आज दुनिया में मौसम जिस तरह से चकमा दे रहा है और पारिस्थितिकी-तंत्र जैसे रूप बदल रहा है, उसे किस तरह से लिया जाए? एक तरफ तो ये वर्ष दुनिया के लिए गर्म रहा, वहीं अपने देश में सब कुछ सामान्य दिखाई दिया। इतना ही नहीं, मौसम के पैटर्न ने पारिस्थितिकी समझ को भी चकरा दिया। इस वर्ष कुछ देशों में गर्मी ने फिर वही हालात बनाए रखे, जैसे कि गत वर्षों में थे। और अन्य जगह सब कुछ सामान्य से नीचे स्तर का था।

इसके पीछे कई कारण रहे हैं, विशेषकर उत्तरी गोलार्ध में पश्चिम-मध्य एशिया, पूर्वोत्तर रूस और पश्चिमी अंटार्कटिका में अत्यधिक गर्मी दर्ज की गई, जबकि हडसन खाड़ी से लेकर उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी अंटार्कटिका तक अपेक्षाकृत ठंडक बनी रही। भारत भी इन असमान व्यवहार वाले क्षेत्रों में शामिल रहा।

इस तरह का मौसम-व्यवहार कई बातों की ओर इशारा करता है। अब हमारे पास देश से जुड़ी भी कई असामान्य खबरें हैं। भारत के कई हिस्सों में मई के दौरान सामान्य से 20-40 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई और तापमान 4 से 6 डिग्री तक गिर गया।

वे शहर जो आमतौर पर अधिक तापमान के लिए जाने जाते हैं- जैसे दिल्ली, लखनऊ, पटना- वहां इस बार की गर्मियों में तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहा। दुनिया में महत्वपूर्ण खबर यह रही कि ग्रीनलैंड और आइसलैंड में बर्फ पिघलने की घटनाएं सामने आईं।

वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन समूह के वैज्ञानिकों ने बताया कि वहां तापमान 3 डिग्री तक बढ़ गया, जिससे भारी मात्रा में बर्फ पिघली। इसका कारण मानवीय गतिविधियां तो हैं ही, यह भी देखा गया कि कई अन्य क्षेत्रों में तापमान गत वर्षों की प्रवृत्ति जैसा ही रहा।

मई का महीना दुनिया भर में अब तक का सबसे गर्म महीना पाया गया। क्लाइमेट चेंज सर्विस की रिपोर्ट में बताया गया कि मई में वैश्विक सतह तापमान 1850-1900 के औद्योगिक युग की तुलना में 1.4 डिग्री अधिक दर्ज किया गया।

परंतु, भारत, अलास्का, दक्षिण अफ्रीका और पूर्वी एशिया जैसे क्षेत्रों में मई का तापमान सामान्य से नीचे रहा था। इस तरह का विरोधाभासी मौसम व्यवहार यह स्पष्ट करता है कि क्लाइमेट के सिस्टम में बड़ी गड़बड़ हो चुकी है।

2025 में सतह का औसत तापमान 15.79 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो 1991-2020 की तुलना में 0.5 डिग्री अधिक था। यह 2020-2024 की सबसे गर्म मई से केवल 0.12 डिग्री कम था। इससे स्पष्ट है कि वैश्विक तापमान में मामूली गिरावट तो है, परंतु मौसम का असामान्य व्यवहार बना हुआ है।

यह वृद्धि मुख्यतः जीवाश्म ईंधनों के जलने से हुए उत्सर्जन का परिणाम है। रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले 22 में से 21 महीने ऐसे रहे हैं, जिनमें वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा। इससे पहले मार्च, अप्रैल और फरवरी भी इतिहास के सबसे गर्म महीनों में शामिल रहे।

भारत में फरवरी 2025, पिछले 125 वर्षों में सबसे गर्म रहा। परंतु मई और जून के महीने ला-नीना प्रभाव के कारण अपेक्षाकृत शीतल रहे। इस दौरान भारत और दुनिया भर में जनवरी का महीना सबसे गर्म साबित हुआ।

इन सभी घटनाओं को देखकर चौंकना स्वाभाविक है। 2025 में भारत का मौसम अपेक्षाकृत कम गर्म रहा। देश ने इस बार कोई गंभीर लू जैसी स्थिति नहीं झेली। अधिकतम तापमान लगभग 35 डिग्री के आसपास रहा। इसका एक प्रमुख कारण यह रहा कि समय-समय पर मौसम ने करवट बदली और बारिश हुई। इस वर्ष पश्चिमी विक्षोभ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लेकिन सबसे असामान्य बात यह रही कि इस बार मानसून समय से पहले आ गया। सामान्यतः मानसून जुलाई तक सक्रिय होता है, लेकिन इस बार समुद्री सतह के तापमान के बढ़ने के कारण यह जल्दी सक्रिय हो गया।

समुद्र का लगातार ऊष्ण रहना भी अब नियमित हो चुका है। इसका मतलब है कि अब साल भर किसी न किसी रूप में बारिश देखने को मिल सकती है। जहां पहले कभी बारिश नहीं होती थी, जैसे राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में भी वर्षा संभावित है, और जहां अत्यधिक वर्षा होती थी- जैसे पूर्वोत्तर भारत, वहां विपरीत प्रभाव दिख सकता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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