N. Raghuraman’s column – Beauty is everywhere, so why not take out your bin today | एन. रघुरामन का कॉलम: सुंदरता हर तरफ है, इसलिए क्यों ना आज अपना ‘बिन’ निकालकर चलें

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1 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
‘अरे, यह तो ग्रे हेरॉन है, इसे जख्मी देखकर बहुत बुरा लग रहा है,’ इस शुक्रवार को मैं अखबार हाथ में लिए चिल्लाया। पत्नी दौड़ती हुई आईं और पूछा, ‘क्या हुआ?’ मैंने उन्हें शुक्रवार के चार अखबार दिखाए, जिनमें अलग-अलग ऐसे पक्षियों की तस्वीरें थीं, जो या तो मारे गए थे या घायल हो गए थे। इसके साथ ही गुरुवार को मुंबई के समीप ठाणे में एक हाउसिंग सोसाइटी द्वारा पेड़ों की बेतहाशा छंटाई की खबर थी। ‘क्या आपको यकीन है कि ये ग्रे हेरॉन है, इग्रेट नहीं?’ उन्होंने पूछा तो मैं अपनी पुरानी डायरी ले आया और उन्हें समझाया कि कैसे हेरॉन लंबी टांगों और चौड़े पंखों वाले जलचर पक्षी होते हैं।
हालांकि हेरॉन, इग्रेट और बिटर्न जैसे पक्षी एक ही आर्डीडे परिवार के सदस्य हैं, लेकिन इग्रेट आमतौर पर पूरी तरह से सफेद होते हैं, जबकि हेरॉन कई रंगों के हो सकते हैं। वहीं बिटर्न की खासियत उनके घने, हल्के पीले-भूरे रंग के पंख हैं, जिन पर गहरी धारियां होती हैं।
अगर मैं पक्षियों के बारे में मुझे कुछ जानकारी देने का श्रेय किसी को देना चाहूं, तो वे हॉलीवुड अभिनेता ओवेन विल्सन, स्टीव मार्टिन और जैक ब्लैक होंगे, जो मेरे मुताबिक हास्य दृश्यों में सर्वश्रेष्ठ हैं। यही कारण था कि जब वे तीनों एक साथ एक फिल्म में आए- 2011 में प्रदर्शित ‘द बिग ईयर’- तो मैं उसे देखने का अवसर नहीं छोड़ पाया।
फिल्म तीन पक्षी प्रेमियों की कहानी सुनाती है, और उनमें से हर कोई वही कर रहा होता है, जिसे ‘द बिग ईयर’ कहा गया है। वे ठान लेते हैं कि इस साल अमेरिका में किसी भी अन्य व्यक्तियों से ज्यादा पक्षी देखेंगे। और उन तीन पक्षी प्रेमियों के साथ हम दर्शक भी फिल्म में सैकड़ों पक्षी देखते हैं, और हर एक की गिनती करते हैं।
लेकिन फिल्म का मर्म एक अच्छे जीवन के अर्थ के बारे में है, इस बारे में कि किसी व्यक्ति के लिए सिर्फ बड़े होने, पैसे कमाने, परिवार बनाने वगैरह से बढ़कर एक अधिक मनुष्य बनने के लिए क्या जरूरी है। फिल्म के तीनों ही नायक अपने-अपने जीवन का अर्थ समझते हैं। वे अलग-अलग चुनाव करते हैं कि क्या मायने रखता है और क्या नहीं; कौन मायने रखता है और कौन नहीं; और जीवन का वास्तविक अर्थ क्या है और क्या नहीं।
फिल्म देखने के बाद के वर्षों में मैंने पक्षियों के बारे में बहुत सीखा। मुझे पता नहीं था पक्षियों के बारे में इतना कुछ जानने को है। पहली चीज जो मैंने सीखी, वह थी बर्ड-वॉचिंग के लिए जरूरी उपकरण। फिल्म देखते हुए किसी ने कहा ‘हमें अपना ‘बिन’ खोजना होगा।’ फिल्म समाप्त होने के बाद मैंने उनसे कहा, ‘माफ कीजिए, पर मैंने आपको ‘बिन’ कहते सुना।
पक्षियों को देखने के लिए आपको ‘बिन’ की क्या जरूरत है?’ मुझे लगा था बिन का मतलब डस्टबिन होगा। वे जोर से हंसे और कहा कि यह बाइनोकुलर (दूरबीन) का छोटा नाम है! इसके बाद मैंने सबसे पहला जो काम किया, वो ये था कि अपना ‘बिन’ निकाला, जो मुझे क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने इस अखबार के लिए क्रिकेट को कवर करते समय उपहार में दिया था।
बर्डिंग से हम प्रकृति में मौजूद विविधता के प्रति सजग हो पाते हैं। ज्यादातर पक्षी मूलतः एक जैसे ही हैं, खोखली हड्डियों, पंखों और पंजों से निर्मित। फिर भी प्रवास-मार्गों, भोजन के तरीकों और पंखों के संयोजन से उन्होंने जीवित रहने के अनगिनत तरीके खोज निकाले हैं।
अलग-अलग तरह के घोंसले बनाने की उनकी क्षमता उनकी विशिष्ट रचनात्मकता को दर्शाती है, ठीक वैसे ही जैसे वास्तुकला का एक ही पाठ्यक्रम पढ़ने के बावजूद मनुष्य भवन-निर्माण में अलग-अलग प्रकार की सृजनात्मकता प्रदर्शित करते हैं।
हालांकि मैं फिल्म के मुख्य पात्रों की तरह हर साल देखे जाने वाले पक्षियों की संख्या नहीं नोट करता, लेकिन पक्षियों के प्रति प्रेम मुझे अकसर घर से बाहर जाने को प्रेरित करता है, जिससे मुझे कम से कम बारिश के मौसम में हलका-फुलका व्यायाम करने का अवसर मिल जाता है।
फंडा यह है कि हमारे चारों ओर चाहे जितनी लापरवाही क्यों न हो, दुनिया फिर भी बहुत सुंदर है। यह हमें चुनना है कि हमारे लिए क्या मायने रखता है और हमें किन लोगों से मिलना है। चूंकि आज वर्षा ऋतु का रविवार है, तो आप भी चयन करें और अपने ‘बिन’ के साथ घर से बाहर निकल पड़ें!
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