Saturday 11/ 10/ 2025 

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Mahakaleshwar Jyotirlinga: जब धरती को चीरकर प्रकट हुए महाकाल, पढ़ें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी – Mahakaleshwar Jyotirlinga in ujjain mythological story katha history katha tvisz

Mahakaleshwar Jyotirlinga: सावन के पावन महीने में उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं. यही वो स्थान है जहां भगवान शिव महाकाल रूप में प्रकट होकर स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए थे. इससे जुड़ी कथा में शिवभक्त राजा चंद्रसेन, एक पांच वर्ष के बालक की भक्ति और रामभक्त हनुमान की उपस्थिति और दूषण राक्षस का वध सभी मिलकर इसे अद्भुत बनाते हैं.

उज्जैन का महाकाल ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंग में प्रमुख स्थान रखता है. क्या आप जानते हैं कि उज्जैन में भगवान महाकलेश्वर कब विराजे. कैसे एक पांच साल के बालक की वजह से भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजित होने के लिए राजी हुए, और कैसे स्वयं शिवजी ने दूषण राक्षस का वध किया था. आइए आज आपको इस ज्योतिर्लिंग के उद्भव की पूरी कहानी बताते हैं.

पहली कथा
एक किवदंती ये है कि उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था. राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे. एक बार उनके मित्र शिवगण मणिभद्र ने उन्हें एक अनमोल ‘चिंतामणि’ प्रदान की. राजा चंद्रसेन ने इसे गले में धारण किया, जिससे राजा का तेज और कीर्ति दूर-दूर फैल गई. 

अन्य शासक भी उस मणि को पाने की इच्छा करने लगे. मणि को पाने के लिए कुछ ने चंद्रसेन पर हमला भी कर दिया. तब राजा चंद्रसेन भगवान शिव की शरण में चले गए और ध्यान-मग्न हो गए. चंद्रसेन जब शिव के ध्यान में मग्न थे, तब एक विधवा गोपी अपने पांच साल के छोटे बालक को साथ लेकर दर्शन के लिए आई.

पांच साल के बालक की शिव भक्ति देख गुस्सा हुई मां

चंद्रसेन को शिव की भक्ति में लीन देख वो छोटा बालक भी भगवान शिव की भक्ति करने को आतुर हो गया. बालक अपने घर में एकांत जगह में बैठकर शिवलिंग की पूजा करने लगा. बालक की मां ने भोजन के लिए बुलाया लेकिन वो नहीं आया. जब मां खुद बुलाने आई तो देखा बालक शिव की भक्ति में बैठा है.

मां ने गुस्से में बालक को पीटना शुरू कर दिया और पूजा की सामग्री भी उठाकर फेंक दी. उसी क्षण, शिव का चमत्कार हुआ. उस स्थान पर एक सुंदर मंदिर और स्वाभाविक ज्योतिर्लिंग प्रकट हो गया. यह देख बालक की मां हैरान रह गई.

रामभक्त हनुमान कैसे हुए अवतरित?
 
राजा चंद्रसेन को जब इस अद्भुत घटना की जानकारी मिली तो शिवभक्त होने के नाते वो बालक से मिलने पहुंचे. वो राजा भी वहां पहुंचे जो मणि के लिए युद्ध करने पर उतारू थे. सभी ने राजा चन्द्रसेन से माफी मांगी और भगवान शिव की पूजा करने लगे. तभी हनुमानजी प्रकट हुए और उस बालक की पूजा की प्रशंसा की. इस घटना के बाद स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ.

धरती को चीरकर ‘महाकाल’ हुए प्रकट

इस स्थान से जुड़ी एक और पौराणिक कथा बहुत प्रसिद्ध है, जो बताती है कि भगवान शिव स्वयं धरती को चीरकर ‘महाकाल’ रूप में प्रकट हुए थे. प्राचीन काल में अवंती नगरी हुआ करती थी, जिसे आज उज्जैन के नाम से जाना जाता है. यहां वेदप्रिय नाम के एक ब्राह्मण रहते थे, जो भगवान शिव के परम भक्त थे. वे प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करते थे. 

उसी समय पास के रत्नमाल पर्वत पर दूषण नाम का एक राक्षस रहता था. वो राक्षस ब्राह्मणों के धार्मिक कार्यों को बाधित करने लगा और उन पर अत्याचार करने लगा. भयभीत होकर ब्राह्मणों ने भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई. भगवान शिव ने पहले दूषण राक्षस को चेतावनी दी, लेकिन वह नहीं माना. अंततः जब दूषण ने ब्राह्मणों पर हमला किया. तब भगवान शिव धरती फाड़कर ‘महाकाल’ रूप में प्रकट हुए और उस राक्षस का वध कर दिया. दूषण राक्षस का वध करने के बाद महाकाल ने राक्षस की भस्म से अपना श्रृंगार किया था

इस चमत्कारिक घटना से भयमुक्त हुए ब्राह्मणों ने भगवान शिव से निवेदन किया कि वे सदा के लिए वहीं विराजमान रहें. भक्तों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उस स्थान को अपना निवास बना लिया. तभी से यह स्थान महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गया. 
 

सावन में लगता है भक्तों का तांता

सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है और उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में इन दिनों भक्तों की बड़ी भीड़ उमड़ती है. यह मंदिर सात मोक्षदायिनी नगरों में से एक उज्जैन में स्थित है. सावन के सोमवार को यहां दर्शन अत्यंत पुण्यदायक माने जाते हैं. यहां सामान्य दर्शन के लिए बुकिंग की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन भस्म आरती में शामिल होने के लिए पहले से ऑनलाइन बुकिंग अनिवार्य है.

क्या है भस्म आरती की टाइमिंग और नियम?

महाकाल मंदिर में भस्म आरती प्रतिदिन सुबह 4 बजे से 5 बजे तक होती है. लेकिन श्रद्धालु आमतौर पर रात 1 बजे से ही लाइन में लगने लगते हैं. आरती में भाग लेने के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन परमिशन जरूरी है, जिसका प्रिंटआउट साथ रखना होता है. श्रद्धालु कई दिन पहले से ही ऑनलाइन बुकिंग कराने लगते हैं, क्योंकि बुकिंग नहीं मिलती है. आरती से पहले शिवलिंग पर जलाभिषेक होता है. फिर भक्तों को एक हाल में दर्शन कराया जाता है.

महाकाल मंदिर उज्जैन कैसे पहुंचें?

वायुमार्ग: उज्जैन का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में स्थित है, जो महाकालेश्वर मंदिर से करीब 58 किमी दूर है. एयरपोर्ट से टैक्सी या बस द्वारा आप लगभग एक से सवा घंटे में उज्जैन पहुंच सकते हैं.

रेलमार्ग: उज्जैन देश के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि से रेल द्वारा सीधे जुड़ा हुआ है. इन सभी प्रमुख शहरों से सीधी ट्रेन सेवा उपलब्ध है.

सड़कमार्ग: उज्जैन तक नेशनल हाईवे 48 और 52 के माध्यम से देश के अनेक हिस्सों से सड़क मार्ग से पहुंचना सुविधाजनक है. 

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