Friday 10/ 10/ 2025 

‘जेल से पहले जहन्नुम भेज देंगे’, यूपी में ताबड़तोड़ एनकाउंटर पर बोले CM योगीRajat Sharma's Blog | बिहार में जंग शुरू: टिकट बांटना पहली चुनौतीयहां 50 साल से ऊपर कोई नहीं जीता… बिहार के इस गांव में रहस्यमयी बीमारी का आतंक – mysterious disease in duadhpania village munger lclarअफगान विदेश मंत्री ने दी पाकिस्तान को चेतावनी, दिल्ली की धरती से अमेरिका को भी दिया संदेशट्रेन में सामान चोरी होने का डर खत्म! सफर करने से पहले जानें ये 5 स्मार्ट ट्रिक्स – festival travel on Indian trains know luggage safety tipsसिंगर जुबीन गर्ग की मौत के मामले में दो लोगों की हुई और गिरफ्तारी, ये दोनों 24 घंटे रहते थे साथ1 फुट जमीन के लिए रिश्तों का खून… मां- बाप, भाई- बहन ने पीट- पीटकर ले ली युवक की जान – Banda man murdered by parents and sibling for 1 foot land property lcltmकफ सिरप पीने से बच्चों की मौत के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार, जानिए क्यों खारिज की याचिका?N. Raghuraman’s column – AI is not the future, it’s the present – so adopt it today | एन. रघुरामन का कॉलम: एआई भविष्य नहीं, वर्तमान है- इसलिए इसे आज ही अपनाएंHamas ने किया जंग खत्म करने का ऐलान
देश

अस्पतालों में मरीजों को ATM की तरह देखने पर फटकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉक्टर की याचिका ठुकराई – allahabad high court private hospitals atm machines negligence doctor plea denied ntc

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्जरी में देरी करने और इलाज में लापरवाही पर डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी. इसमें डॉक्टर ने सर्जरी में कथित देरी के कारण भ्रूण की मौत के संबंध में उसके खिलाफ 2008 में दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की थी. दाखिल याचिका में एसीजेएम देवरिया की कोर्ट से जारी समन आदेश समेत समस्त आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की हाईकोर्ट से मांग की गई थी.

अस्पतालों में मरीज़ों को एटीएम की तरह देखने पर फटकार

न्यायालय ने कहा कि निजी अस्पताल/नर्सिंग होम मरीजों को केवल पैसे ऐंठने के लिए ‘गिनी पिग/एटीएम’ की तरह मानने लगे हैं. न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि आवेदक (डॉ. अशोक कुमार राय) सर्जरी के लिए सहमति प्राप्त करने और ऑपरेशन करने के बीच 4-5 घंटे की देरी को उचित ठहराने में विफल रहे, जिसके कारण कथित तौर पर बच्चे की मौत हो गई.

लापरवाह डॉक्टरों को संरक्षण नहीं

न्यायालय ने कड़े शब्दों के साथ आदेश में कहा, “कोई भी पेशेवर चिकित्सक, जो पूरी लगन और सावधानी के साथ अपना पेशा करता है, उसकी रक्षा की जानी चाहिए. लेकिन उन डॉक्टरों की बिल्कुल भी नहीं, जिन्होंने उचित सुविधाओं, डॉक्टरों और बुनियादी ढांचे के बिना नर्सिंग होम खोल रखे हैं और मरीजों को सिर्फ पैसे ऐंठने के लिए लुभा रहे हैं.”

मामला: 29 जुलाई 2007 को हुआ हादसा

मामले के अनुसार 29 जुलाई 2007 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि छोटे भाई की गर्भवती पत्नी को आवेदक द्वारा संचालित नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया. मरीज के परिवार ने 29 जुलाई 2007 को सुबह लगभग 11 बजे सिजेरियन सर्जरी के लिए सहमति दी थी, लेकिन सर्जरी शाम 5:30 बजे की गई, तब तक भ्रूण की मृत्यु हो चुकी थी. इसके बाद, जब मरीज के परिवार के सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई तो डॉक्टर (आवेदक) के कर्मचारियों और उनके सहयोगियों ने कथित तौर पर उनकी पिटाई कर दी. प्राथमिकी में यह भी आरोप लगाया गया है कि आवेदक ने 8,700 रुपये लिए और 10,000 रुपये अतिरिक्त मांगे. साथ ही डिस्चार्ज स्लिप जारी करने से भी इनकार कर दिया.

यह भी पढ़ें: प्राइवेट अस्पताल मरीजों को बना रहे ATM मशीन, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लगाई फटकार

डॉक्टर की दलीलें और विरोध

समन के साथ-साथ धारा 304ए, 315, 323 और 506 आईपीसी के तहत संपूर्ण आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देते हुए, आवेदक ने हाईकोर्ट में यह तर्क दिया कि उसके पास रोगी के उपचार के लिए अपेक्षित चिकित्सा योग्यता है. यह भी तर्क दिया गया कि मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, कथित पीड़िता को उपचार प्रदान करने में आवेदक के विरुद्ध ऐसी कोई चिकित्सीय लापरवाही साबित नहीं हुई है.

देरी का कारण: एनेस्थेटिस्ट की अनुपलब्धता

याचिका का विरोध करते हुए शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि भर्ती के समय मरीज की हालत स्थिर थी. फिर भी सर्जरी में देरी हुई, क्योंकि आवेदक के नर्सिंग होम में एनेस्थेटिस्ट नहीं था. यह भी कहा गया कि मेडिकल बोर्ड की क्लीन चिट अविश्वसनीय है, क्योंकि महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिनमें भ्रूण की मृत्यु को ‘लंबे समय तक प्रसव’ के कारण बताने वाली पोस्टमार्टम रिपोर्ट और विरोधाभासी ऑपरेशन थिएटर नोट शामिल हैं, बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए गए. कहा गया कि आवेदक द्वारा समय पर सर्जरी न करने के कारण ही भ्रूण की मृत्यु हुई.

तीन बजे बुलाया गया एनेस्थेटिस्ट

यह पाया गया कि एनेस्थेटिस्ट को लगभग साढ़े तीन बजे बुलाया गया था, जिससे पता चलता है कि तैयारी और सुविधाओं का अभाव था. इस देरी को महत्वपूर्ण मानते हुए, एकल न्यायाधीश ने यह टिप्पणी की: “यह पूरी तरह से दुर्घटना का मामला है, जहां डॉक्टर ने मरीज को भर्ती कर लिया और मरीज के परिवार के सदस्यों से ऑपरेशन के लिए अनुमति लेने के बाद भी समय पर ऑपरेशन नहीं किया, क्योंकि उनके पास सर्जरी करने के लिए अपेक्षित डॉक्टर (अर्थात एनेस्थेटिस्ट) नहीं था.”

डॉक्टरों को कब मिलता है संरक्षण?

चिकित्सा लापरवाही के मामलों में डॉक्टरों को दी जाने वाली सुरक्षा के संबंध में हाईकोर्ट ने डॉ. सुरेश गुप्ता बनाम दिल्ली सरकार और अन्य के मामलों में शीर्ष अदालत के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि यह सुरक्षा केवल तभी लागू की जा सकती है जब चिकित्सक ने अपने कर्तव्य को कुशलतापूर्वक निभाया हो. पीठ ने कहा कि यदि मरीज का इलाज करते समय डॉक्टर द्वारा सामान्य देखभाल नहीं की जाती है तो आपराधिक दायित्व उत्पन्न होता है.

“क्लासिक केस” माना गया मामला

अदालत ने मामले के तथ्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह एक ‘क्लासिक’ मामला था, जिसमें बिना किसी कारण के ऑपरेशन में 4-5 घंटे की देरी हुई, तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि भ्रूण की मृत्यु लंबे समय तक प्रसव पीड़ा के कारण हुई.

डॉक्टर की मंशा पर सवाल

कोर्ट ने कहा कि यह तथ्य स्पष्ट रूप से डॉक्टर की मरीज को धोखा देने की गलत मंशा को दर्शाता है. इसके अलावा, निजी स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पर व्यापक टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि चिकित्सकों को तुच्छ मुकदमेबाजी से बचाने की आवश्यकता को स्वीकार किया. लेकिन साथ ही यह भी कहा: “इसमें कोई संदेह नहीं है, चिकित्सकों को चिकित्सीय लापरवाही के चंगुल से बचाया जाना चाहिए, अन्यथा किसी भी ऑपरेशन/शल्य चिकित्सा में किसी भी विफलता के कारण आपराधिक मुकदमा शुरू होने का डर चिकित्सकों में भय और घबराहट पैदा करेगा.”

यह भी पढ़ें: वैवाहिक मामलों में दो माह तक नहीं होगी गिरफ्तारी, SC ने कहा- जारी रहेंगी इलाहाबाद HC की गाइडलाइंस

याचिका खारिज

प्रस्तुत मामले में न्यायालय ने कहा कि रोगी के भर्ती होने का समय, सर्जरी का समय तथा रोगी के परिवार के सदस्य से सहमति लेने का समय इस मामले में तीन महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिन्हें साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद देखा जाना चाहिए. इसी के साथ कोर्ट ने धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाते हुए डॉक्टर अशोक कुमार राय की याचिका खारिज कर दी.

—- समाप्त —-


Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL