Thursday 09/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – ‘Trust’ is the most powerful word in any conversation | एन. रघुरामन का कॉलम: किसी भी बातचीत में ‘भरोसा’ सबसे प्रभावी शब्द होता है

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8 घंटे पहले

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एन. रघुरामन
मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु

मुम्बई के नजदीक स्थित ठाणे जिले की 62 वर्षीय छाया यशवंत तांबड़े को उनके डॉक्टर ने घुटने की सर्जरी की सलाह दी थी। चूंकि वह ऐसे परिवार से थीं, जिसकी आय 20 हजार रुपए से कम है, इसलिए वह हजारों रुपए खर्चे वाली इस सर्जरी के बारे में सोच भी नहीं सकती थीं। डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे के निर्वाचन क्षेत्र ठाणे में मैं एक मेडिकल टीम के प्रमुख जितेश देशमुख को जानता हूं, जो क्षेत्र के गरीब लोगों की मदद करते हैं।

मैंने जितेश को इस गरीब परिवार की मदद के लिए फोन किया। उन्होंने तुरंत सहमति दी और छाया निर्धारित अस्पताल में डॉक्टरों से मिलने गईं। ओपीडी के वेटिंग एरिया में वह घुटने की समस्या वाले कई मरीजों से मिलीं। इनमें से कुछ की सर्जरी हो चुकी थी, जबकि अन्य अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। दुर्भाग्य से, जिन कुछ लोगों से वह मिलीं, वे शिकायती थे, जो हमेशा अपने दर्द के बारे में शिकायत करते रहते थे।छाया की बारी आई।

चूंकि उन्हें डिप्टी सीएम के बेहद करीबी व्यक्ति ने भेजा था, इसलिए उन पर अधिक ध्यान दिया गया। लेकिन उन्हें देखने वाले डॉक्टर इस नतीजे पर पहुंचे कि वह छाया की सर्जरी नहीं कर सकते। क्योंकि उन्हें यह भरोसा नहीं था कि घुटने की सर्जरी के बाद भी वह बिना दर्द के चल-फिर सकेंगी और प्रभावी तरीके से अपने रोजमर्रा के काम कर सकेंगी।

डॉक्टर ने बस इतना कहा कि ‘जिस दिन आपको यकीन हो जाए कि सर्जरी से आप फिर से सही तरीके से कामकाज कर सकेंगी तो मेरे पास आ जाना। मैं सर्जरी करूंगा और मुझे पता है कि आप ठीक हो जाएंगी। आप समय लें, एक महीना या ज्यादा।

लेकिन आपके भरोसे के बिना रिकवरी लंबी होगी।छाया के पति यशवंत ने मुझे अस्पताल से फोन किया और डॉक्टर की बात बताई तो मैंने कहा कि डॉक्टर की बात सही है कि सर्जरी से पहले छाया को काउंसलिंग की जरूरत है। ‘यह इस बारे में नहीं है कि ऑपरेशन कितना प्रभावी होगा, बल्कि यह तेज रिकवरी के बारे में है।’

मैंने अपनी बुजुर्ग आंटी का उदाहरण भी दिया, जो सर्जरी के चौथे दिन चलने लगी थीं। क्योंकि उन्हें अपने डॉक्टर और वैज्ञानिक प्रक्रिया पर भरोसा था।इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि ‘भरोसा’ शब्द किसी के भी जीवन में ‘गेम चेंजर’ होता है।

इसे समझने के लिए मोहम्मद सिराज से बेहतर और कौन हो सकता है, जो इस सोमवार को भारत और इंग्लैंड के बीच एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी की उद्घाटन क्रिकेट शृंखला के आखिरी दिन सुबह छह बजे उठे। चारों ओर निराशा के बादल थे, क्योंकि भारत की जीत की उम्मीदें कम थीं। इंग्लैंड को केवल 35 रन चाहिए थे। उसके हाथ में चार विकेट शेष थे, जबकि पूरे दिन का खेल बचा था।

जाहिर है, सिराज तनाव में थे। लेकिन वह इस आत्मविश्वास के साथ उठे कि वह खेल जगत में दिल थाम देने वाली कोई ऐतिहासिक इबारत लिखेंगे। उन्हें क्रिस्टियानो रोनाल्डो का एक फोटो मिला, जिसमें वे आकाश की ओर इशारा करते हुए दिख रहे हैं, और उस तस्वीर पर ‘बिलीव’ शब्द लिखा था। उ

न्होंने उस तस्वीर को डाउनलोड कर अपने फोन के वॉलपेपर के तौर पर सेव कर लिया। एक साल पहले जब जसप्रीत बुमराह ने बारबडोस में टी-20 विश्व कप फाइनल में भारत को जीत दिलाई थी, तब सिराज का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था- ‘मैं केवल जस्सी भाई (बुमराह) पर भरोसा करता हूं। वह गेम-चेंजर हैं।’

इस बार सिराज ने खुद पर भरोसा किया और खेलप्रेमियों की धड़कनें थम-सी गई थीं, जब इस तेज गेंदबाज ने शृंखला के आखिरी मैच को एक करारे यॉर्कर के साथ पूरा किया। हाल में हुईं टेस्ट शृंखलाओं में से इतना ध्यान अन्य किसी ने नहीं खींचा है।

भारत की इस जीत के साथ शृंखला में बराबरी करने से साफ हो गया है कि ‘प्री-सीरीज प्रोफेसीज’ काम करती हैं (इसका मतलब है किसी खास दिन के शुरू होने से पहले भरोसे के साथ मन में की हुई भविष्यवाणी या मैनिफेस्टेशन)।

फंडा यह है कि भरोसे से कई चीजें आगे बढ़ती हैं। कहते हैं, अगर किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है। आज ही इसे प्रयोग करें और अपने लिए इसका असर देखें।

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