Thursday 09/ 10/ 2025 

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Rashmi Bansal’s column – Enough of complaining… let’s do something together now | रश्मि बंसल का कॉलम: बहुत हो गई शिकायत… चलो अब मिलकर कुछ करते हैं

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56 मिनट पहले

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रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर - Dainik Bhaskar

रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर

बचपन में सुना था एक स्लोगन- रोटी, कपड़ा और मकान। खुशी की बात है कि अब ज्यादातर देशवासियों को तीनों ही उपलब्ध हैं। तो आज की आकांक्षाएं कुछ अलग हैं, खासकर नई पीढ़ी की, और उनके मां-बाप की भी। आइए सुनते हैं आम जनता की मन की बात :

जाता हूं रोज जिम अपनी बॉडी बनाने के लिए, सिक्स पैक चाहता हूं दुनिया को दिखाने के लिए। इंटीरियर अपने घर का किया है टॉप क्लास, जो भी मिलने आए उसे लगे वो खास। बच्चे मेरे जाते हैं इंटरनेशनल स्कूल में, जहां क्लासरूम एसी हैं, ओलिम्पिक स्विमिंग पूल है। पिताजी का इलाज करवाया सब वर्ल्ड क्लास अस्पताल में, वहां के डॉक्टर के हाथ में कमाल है।

संडे को जाते हैं हम फाइन डाइन में, कभी-कभार ले लेता हूं वाइन मैं। घूमता हूं बढ़िया इम्पोर्टेड कार में, शौक अपने रखता हूं बरकरार मैं। मेहनत करता हूं बिजनेस बढ़ाने के लिए, दौलत-शोहरत-सक्सेस कमाने के लिए। मेरे भाई का सपना था अमेरिका में बसूंगा, इस देश में रखा क्या है मैं ना रहूंगा।

मैंने कहा- तेरी मर्जी, तू जा मेरे भाई, फॉरेन की लाइफस्टाइल, डॉलर में कमाई। मां-पिता के साथ रहूंगा, चाय पर सुबह बात करूंगा। दोस्तों से होगी अक्सर मुलाकात, निकल पड़ेंगे हम घूमने साथ। लोनावला की बारिश में पकौड़े और चाय, ऐसा मजा कहां विदेश में मेरे भाई? सब कुछ बहुत अच्छा है बस एक ही गम, क्यों नहीं साफ-सुथरे रह सकते हम?

पिछले साल श्रीलंका के टूर पर गया, कोलंबो को देखकर दंग रह गया। इतना-सा देश, इतनी ज्यादा सफाई, मुझे तो बात समझ नहीं आई। अगर वो कर सकते हैं तो हम क्यूं नहीं, हम भी चाहते हैं दिल से वही। क्यूंकि अपना घर सुंदर रखने के बाद, निकलते ही फुटपाथ है पूरा बर्बाद।

इम्पोर्टेड गाड़ी का कोई फायदा नहीं, जब सड़क बनाने का कोई कायदा नहीं। दो-चार शहर छोड़कर हर तरफ समस्या, कचरे के ढेर, कूड़े की संख्या। मेरी चार साल की बेटी ने एक दिन कहा- पापा, अमेरिका में भी ऐसा होता है क्या? क्या जवाब दूं इस बच्ची को… इक बात जो सीधी और सच्ची हो।

हम चांद तक रॉकेट सेंड कर सकते हैं, लेकिन धरती पर सड़क नहीं मेंड कर सकते हैं! हमारे टैक्स का पैसा कहां जा रहा है? ऐसा लगता है कोई तो खा रहा है! कोई ऐसा जिसे अपने देश से प्यार नहीं, जिसे सेवा का कोई विचार नहीं।

आखिर कब तक चुप रहेंगे हम सब? सुधार कभी ना होगा तब। अगर मोहल्ला-मोहल्ला आवाज उठाए, कॉर्पोरेशन की जान खा जाए। तभी होगा कुछ अपने देश का, मिटेगा वो सपना विदेश का। मेरी बेटी कहेगी इंडिया इज द बेस्ट, मुझे जाना नहीं है वेस्ट। बुढ़ापे में बच्चे पास रहेंगे, मिलेंगे-जुलेंगे, बात करेंगे।

तो आज ही एक ग्रुप बनाकर मोहल्ले की जिम्मेदारी लीजिए, ग्लोव और मास्क पहनकर एक सड़क की सफाई कीजिए। लोग हंसेंगे, मजाक भी उड़ाएंगे, फिर धीरे-धीरे वो भी जुड़ जाएंगे। जैसे लोग जुड़ेंगे ताकत बढ़ेगी, आपकी बात फिर सरकार भी सुनेगी। हां, मैं पागल हूं, मगर कहीं आप भी समझते हैं… बहुत हो गई शिकायत, चलो मिलकर कुछ करते हैं।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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