Thursday 09/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Education is like a frog, which will make you jump in difficult situations | एन. रघुरामन का कॉलम: शिक्षा उस मेंढक जैसी है, जो कठिन हालात में आपसे छलांग लगवाएगी

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5 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

यदि आपको भरोसा हो कि बेहतर शिक्षा आपको गरीबी जैसी स्थिति से कहीं ऊपर उठा सकती है तो आप इसके लिए कुछ भी करेंगे। चाहे चारदीवारी ही क्यों ना फांदनी पड़े, जैसा कि एक नगर पालिका स्कूल के 210 बच्चों में से अधिकतर करते हैं। वे चारदीवारी पर इसलिए नहीं चढ़ते, क्योंकि वहां शिक्षा खराब है और वो स्कूल से भागना चाहते हैं। बल्कि इसलिए, ताकि अपनी कक्षा तक पहुंच सकें, क्योंकि वे अपनी कक्षा नहीं छोड़ना चाहते।

चूंकि चेन्नई के पूनामल्ली स्थित स्कूल के प्रवेश द्वार के बाहर हमेशा बारिश और सीवेज का गंदा पानी भरा रहता है तो बच्चों के पास दीवार फांदकर अंदर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। यह तब है, जब यह स्कूल नगर पालिका कार्यालय के ठीक सामने है।

आसपास एक हजार से अधिक लोगों की बस्ती होने के बावजूद एक दशक से अधिक समय से यह समस्या बनी हुई है, क्योंकि पूरे क्षेत्र में सीवर के बुनियादी ढांचे का अभाव है। बड़े लोग अधिकारियों से झगड़ने में व्यस्त हैं, तो बच्चों का मानना है कि शिक्षा ही वह “लीप फ्रॉग’ रणनीति है, जिससे वे अपने जीवन की गुणवत्ता सुधार सकते हैं।

आप सोच रहे होंगे “लीप फ्रॉग’ रणनीति क्या है? यह प्रबंधन में इस्तेमाल होने वाला शब्द है, जिसमें एक मेंढक अपनी स्थिति से थोड़ा पीछे हटता है और फिर सांप जैसे परभक्षियों या बाधाओं को पार करने के लिए लंबी छलांग लगाता है।

व्यावसायिक रणनीतियों के लिए इस शब्द का उपयोग होता है, जिसमें झुककर या पीछे हटकर लंबी छलांग के लिए सही मौके का इंतजार किया जाता है। कठिन हालात में रहने वाले लोग इस रणनीति को समझते हैं और अपनी मौजूदा स्थिति से बाहर निकलने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं।

10 वर्ष की संध्या का ही उदाहरण लें। वह एक घुमंतू जनजाति से है, जो अपने सजे-धजे बैलों के साथ झुंड में चलते हैं। विस्थापन के कारण इस समुदाय के बच्चों की स्कूली शिक्षा अमूमन बाधित होती रहती है। स्थायी आश्रय के अभाव में बार-बार रुकावट के कारण उनकी शिक्षा बाधित होती है।

बारिश में उनके पास छत नहीं होती। इसीलिए एक से दूसरी जगह जाने के दौरान वे खाली भूखंडों पर फटे-से तंबुओं में रहते हैं। जमीन का मालिक जब उन्हें खदेड़ता है तो उन्हें विस्थापित होना पड़ता है। पांचवीं कक्षा की यह छात्रा समूह के बच्चों के साथ एक अद्भुत काम करती है। वह एक हाथ में स्लेट पकड़ती है और तमिल वर्णमाला और अन्य अक्षरों के जरिए उन्हें सिखाती है। वह जानती है गरीबी से निकालने में शिक्षा ही उन बच्चों को मदद करेगी।

दूसरा उदाहरण उन बहुत-सी अफगान महिलाओं का है, जिनके लिए एक-एक करके कई अवसर समाप्त हो गए, क्योंकि उनके देश की नई तालिबान सरकार ने महिलाओं पर कई सारी पाबंदियां लगा दीं। महिलाओं के पार्कों में जाने और रेस्तरां में खाने पर रोक जैसी कई चीजों के अलावा उन्होंने सबसे क्रूर काम यह किया कि प्राथमिक स्कूल से आगे की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया।

मजबूरन वे ऑनलाइन शिक्षा की ओर बढ़ीं। और उनकी उम्मीद तब फिर से जागी, जब उनसे बहुत दूर यूनान की रहने वाली एक अन्य अफगान शरणार्थी ने उनकी अपनी “दारी’ भाषा में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग और वेबसाइट डेवलपमेंट सिखाने का फैसला किया।

ये तीन उदाहरण क्या बताते हैं? एक व्यक्ति को परिस्थितियों के आगे नहीं झुकना चाहिए, और उसे हरसंभव तरीके से अपने सपनों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। नए कौशल और बेहतर शिक्षा हर किसी को अपना आत्मविश्वास फिर से हासिल करने और वो दिशा दिखाने में मदद करते हैं, जिधर वह अपने जीवन को ले जाना चाहता है। याद रखें कि कीचड़ में बैठा मेंढक एक सुरक्षित स्थान पर छलांग लगाने का निर्णय करने से पहले चारों ओर देखकर सावधानीपूर्वक अपनी स्थिति का आकलन करता है।

फंडा यह है कि शिक्षा ऐसा वाहन नहीं है, जिस पर आप आसानी से सवारी कर लें। मेरा मतलब है कि सिर्फ विश्वविद्यालयों में जाने से काम नहीं चलेगा। बल्कि, बेहतर अवसर और करियर के लिए आपको वहां कड़ा अध्ययन करना पड़ेगा और मेंढक की तरह चारों ओर देखते रहना होगा।

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