Kaushik Basu’s column – The people of America will have to oppose Trump | कौशिक बसु का कॉलम: अमेरिका की जनता को ही ट्रम्प का विरोध करना होगा

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26 मिनट पहले
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कौशिक बसु विश्व बैंक के पूर्व चीफ इकोनाॅमिस्ट
फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट के कार्यकाल के शुरुआती 100 दिनों को अपवाद मान लिया जाए तो अमेरिका के इतिहास में कार्यकारी आदेशों और विधायी गतिविधियों की ऐसी बाढ़ पहले कभी नहीं आई थी, जैसी ट्रम्प के राज में आई है। रूजवेल्ट से तुलना करें भी तो उनकी ‘न्यू डील’ अमेरिका को महामंदी से निकालने का एक क्रांतिकारी और सफल प्रयास था।
इसके उलट, ट्रम्प की नीतियों के पीछे कोई स्पष्ट, तात्कालिक कारण नहीं नजर आ रहा- क्योंकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था उनके पदभार संभालने से पहले ही बेहतर प्रदर्शन कर रही थी।एक समय अमेरिका मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में अपना दबदबा रखता था और ट्रम्प इसमें नए प्राण फूंक देना चाहते हैं। हालांकि यह कहना मुश्किल है कि वे ऐसा कर पाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना ट्रम्प के आर्थिक एजेंडे में शीर्ष पर है। अप्रैल के बाद से उन्होंने दुनिया के लगभग हर देश पर जैसे-को-तैसा टैरिफ लगाए, और फिर बार-बार उनमें फेरबदल किया। कुछ को हटाया, कुछ को कम किया। कई मामलों में बहाल किया या बढ़ा भी दिया।
नतीजा यह है कि औसत प्रभावी अमेरिकी टैरिफ दर 2024 के 2% के मुकाबले अब बढ़कर 16% से अधिक हो गई है। 1930 के दशक के बाद का यह उच्चतम स्तर है।जहां विशेषज्ञों ने चेताया है कि उच्च टैरिफ दरों से अमेरिका में घरेलू महंगाई बढ़ सकती है, वहीं असली जोखिम कहीं और है।
टैरिफ के कारण मैक्सिको, कनाडा, भारत से आयातित चीजों की कीमतें बढ़ने से उत्पादन लागतें बढ़ेंगी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की क्षमता घटेगी। इससे निर्यात में कमी आएगी और कामकाजी वर्ग की आय घटेगी। ट्रम्प का ‘बिग ब्यूटीफुल बिल’ निम्न-मध्यम आय वर्ग के अमेरिकियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और अमेरिकी घाटे में लाखों-करोड़ों डॉलर की बढ़ोतरी कर देगा।
यह बिल जहां स्वास्थ्य देखभाल और खाद्य सहायता कार्यक्रमों में कटौती करता है, वहीं यह अमीरों को टैक्स में छूट देता है।यदि नीतियों को जल्द ही बदला नहीं गया तो अर्थव्यवस्था पर इसका विनाशकारी प्रभाव होगा। भले ही कीमतों पर फिलहाल सीमित असर दिख रहा हो, लेकिन ऊंचे टैरिफों से जीडीपी वृद्धि धीमी होगी और खासतौर पर कामकाजी वर्ग के वेतनों पर चपत लगेगी।
मुख्यधारा के अर्थशास्त्री अकसर इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज करते हैं कि आर्थिक प्रदर्शन नीतिगत निर्णयों के अलावा भी कई चीजों से प्रभावित होता है। जैसा कि फ्रांसिस फुकुयामा ने कहा है कि यह घरेलू संस्थानों की मजबूती, देशों के भीतर और उनके बीच आपसी भरोसे पर निर्भर करता है।
साथ ही यह उस पर भी निर्भर करता है, जिसे जोसेफ एस. नाय ने ‘सॉफ्ट पावर’ कहकर पुकारा है। लेकिन ट्रम्प ने संस्थानों पर तीखे प्रहार किए हैं। उनके प्रशासन ने प्रमुख विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय छात्रों के वीजा रद्द कर दिए हैं। इससे अमेरिका की दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं में भरोसा कमजोर हुआ है।
डॉलर में भरोसा घटने का जोखिम तो और बड़ा है, क्योंकि वही अमेरिका के आर्थिक दबदबे का आधार रहा है। मुझे 5 अगस्त, 2011 की घटना याद है, जब ‘स्टैंडर्ड एंड पुअर्स’ ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग को AAA से घटा कर AA+ कर दिया था। उस समय मैं भारत सरकार के सलाहकार के रूप में कार्यरत था और मैंने वैश्विक वित्तीय बाजारों पर इसके संभावित असर को लेकर बड़े पैमाने पर अनिश्चितता के दृश्य देखे थे।
विडंबना ही थी कि इस डाउनग्रेडिंग से अमेरिका में और धन आने लगा, क्योंकि सुरक्षित निवेश की तलाश में डॉलर सम्पत्तियां खरीदने की होड़ मच गई थी। दशकों से डॉलर पर बना यह भरोसा उसके प्रभुत्व की वजह रहा है। इसी कारण अमेरिका 28 ट्रिलियन डॉलर का बाहरी ऋण इकट्ठा करने में सक्षम हुआ, जो किसी भी देश से अधिक है।
अमेरिका को इसका महत्वपूर्ण रणनीतिक लाभ मिलता है, लेकिन इसमें एक बड़ी कमजोरी भी छिपी है। यदि डॉलर पर भरोसा कम हुआ तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था की बुनियाद हिल जाएगी!ट्रम्प के राज में अमेरिकी नीतियों में आए बदलावों ने वित्तीय बाजारों को अस्थिर कर दिया है। यदि यही ट्रेंड्स जारी रहे तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
डॉलर से भरोसा उठ सकता है और अमेरिकी सम्पत्तियों से पलायन के दृश्य सामने आ सकते हैं। एकमात्र उम्मीद यह है कि अमेरिकी जनता ट्रम्प की आत्मघाती नीतियों का कड़ा विरोध करे और उन्हें अपना रुख बदलने को मजबूर करे। लेकिन यदि ट्रम्प का यही रवैया कायम रहा तो अमेरिका को वैसी ही परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, जिनका रूजवेल्ट को समाधान करना पड़ा था। लेकिन इस बार अर्थव्यवस्था को दुबारा पटरी पर नहीं लाया जा सकेगा।
यदि यही ट्रेंड्स जारी रहे तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं और डॉलर से भरोसा उठ सकता है। एकमात्र उम्मीद यह है कि अमेरिकी जनता ट्रम्प की आत्मघाती नीतियों का कड़ा विरोध करे और उन्हें अपना रुख बदलने को मजबूर करे।
(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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