Dr. Aruna Sharma’s column – Politics on the issue of voter list is unnecessary | डॉ. अरुणा शर्मा का कॉलम: मतदाता-सूची के मामले पर हो रही राजनीति गैर-जरूरी है

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5 घंटे पहले
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डॉ. अरुणा शर्मा इस्पात मंत्रालय की पूर्व सचिव
यह दु:खद और विडम्बनापूर्ण है कि मतदाता सूची पर विवाद समाधान के बजाय एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की दिशा में चला गया है। हमारे लिए यह समझना जरूरी है कि मतदाता सूचियों का अपडेशन कैसे किया जाता है। यह निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है कि घर-घर सर्वेक्षण और वार्षिक पुनरीक्षण करके मतदाता सूची को सटीक बनाए रखे।
अपडेशन का कार्य आयोग और हर राज्य में स्थित उसके कार्यालयों द्वारा किया जाता है। स्थानीय निकाय सुनिश्चित करते हैं कि हर घर का एक क्रमांक हो। अतिक्रमण वाले इलाकों के लिए भी इसकी प्रक्रिया बनी हुई है।
यह सभी हाउसहोल्ड-आधारित डेटा के लिए किया जाता है जैसे मनरेगा, छात्रवृत्ति के लिए अन्य कल्याणकारी योजनाएं और अब 8 राज्यों में समग्र जैसे ऑपरेटिव डेटा। सर्वेक्षकों के पास पिछले सर्वे का डेटा दर्ज होता है।
पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए घर-घर सर्वे किया जाता है। मोटे तौर पर 80-90% डेटा पहले जैसा ही रहता है। किसी की मृत्यु होने पर नाम हटाना या नए मतदाताओं को जोड़ने जैसे सामान्य बदलाव होते हैं। पलायन जरूर बड़ा बदलाव होता है।
इस प्रकार, पिछली सूची की तुलना में पाई जाने वाली विसंगति और बदलाव को चिह्नित किया जाता है। सुपरवाइजर इन विसंगतियों की दो बार जांच करते हैं। बदलावों को सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शित किया जाता है। जांच और पुष्टि के बाद ही इन्हें जोड़ा जाता है। वरिष्ठ अधिकारी रैंडम परीक्षण करते हैं।
किसी छोटे से घर में मतदाताओं की असामान्य रूप से अधिक संख्या, मृत्यु की गलत सूचना, दोहराव जैसी विसंगतियों के मामले में सिर्फ आधार का उपयोग कर डेटा को शुद्ध किया जाता है। लेकिन यह नागरिकता का प्रमाण-पत्र नहीं है।
भारत के नागरिक को 1955 के नागरिकता कानून और संविधान द्वारा परिभाषित किया गया है। चूंकि भारत 1951 की शरणार्थी संधि और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए हमारा कोई विशेष शरणार्थी कानून नहीं है।
हालांकि, भारत शरणार्थियों को आश्रय देता रहा है, जैसे दलाई लामा और अन्य तिब्बतियों को। लेकिन ऐसे मामलों को गृह मंत्रालय का संबंधित विभाग केस-दर-केस आधार पर तय करता है। वह या तो किसी को शरणार्थी का दर्जा देता है या अवैध प्रवासी घोषित करता है।
घर-घर सर्वे में ऐसे मामलों को संदिग्ध के तौर पर चिह्नित किया जाता है, जिनमें शरणार्थी और अवैध प्रवासी- दोनों ही श्रेणियां प्रदर्शित नहीं होतीं। ऐसे में जांच का अधिकार गृह मंत्रालय के पास होता है। इसके आधार पर ही किसी को नागरिक के रूप में मतदाता सूची में शामिल किया जाता है।
ये प्रक्रिया समय लेती है और इसे सावधानीपूर्वक और नियमित अंतराल पर करते रहना चाहिए। इसमें दस्तावेजों का सत्यापन होता है, पड़ोस में पूछताछ होती है। समान प्रकृति और गलती की गुंजाइशों के कारण यह कार्य चुनौतीपूर्ण है।
तो वर्तमान में नागरिकता के प्रमाण के मसले में ना पड़कर उन विसंगतियों की जांच की आवश्यकता है, जिनमें नाम के दोहराव, एक घर में बहुत सारे मतदाता, अनरिपोर्टेड या गलत रिपोर्टेड मौतों को इंगित किया गया है। लोग इस बात से चिंतित हैं कि डिजिटली स्मार्ट भारत में अब भी ऐसी विसंगतियों से जूझना पड़ रहा है।
यह राजनीतिक मसला नहीं है, बल्कि मतदाता सूची निर्माण की प्रक्रिया की गहराई से जांच और यदि कोई गड़बड़ है तो उसे सुधारने का है। स्थानीय कोटवार (ग्राम चौकीदार), ग्राम पंचायतों और नगर पंचायतों को भी विसंगतियां जांचने में शामिल किया जा सकता है।
डिजिटल डेटा और एआई के उपयोग से विसंगतियों की पहचान, मृत्यु डेटा और अन्य डेटाबेस का मिलान संभव होगा। यह प्रक्रिया समय-खपाऊ नहीं, बल्कि एक जरूरत है- ताकि सूचियों को इस प्रकार रखा जा सके, जिसमें पात्र व्यक्ति बाहर ना हो और गलत एंट्री न हो।
संविधान का अनुच्छेद 324, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 और मतदाता पंजीकरण नियम-1960 कानूनी और संवैधानिक बाध्यताएं तय करते हैं। एंट्रीज से पहले जांच अनिवार्य है। नाम हटाने के लिए नोटिस और सार्वजनिक सूचना आवश्यक है।
घर के क्रमांक न होना या एक ही घर में असामान्य रूप से अधिक मतदाता होने जैसी गलत एंट्री चिंता का विषय हैं। इस पर वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जांच की आवश्यकता है, ताकि पारदर्शिता और संविधान के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित हो सके। इस मुद्दे को राजनीतिक सिर-फुटौव्वल में गुम नहीं होने देना चाहिए।
पारदर्शिता व सटीकता मतदाता-सूचियों का प्राण है। मौजूदा सूचियों पर सवाल उठे हैं तो इनकी गहराई से जांच की जानी चाहिए। सटीक मतदाता-सूची संवैधानिक जिम्मेदारी है और पिछले डेटा को अपडेट करना चुनाव आयोग का काम है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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