Saturday 06/ 09/ 2025 

N. Raghuraman’s column – When fatigue turns into happiness, we will feel that sacrifice is the fragrance of success | एन. रघुरामन का कॉलम: थकान जब खुशी बन जाए तो हमें लगेगा कि बलिदान सफलता में महक रहा हैUS President Donald Trump ने दी खुली चेतावनी!अबू धाबी जा रही Indigo की फ्लाइट में आई खराबी, बीच रास्ते से लौटा विमान; 180 से अधिक लोग थे सवारNeerja Chaudhary’s column – Efforts are being made to reach a wider class | नीरजा चौधरी का कॉलम: एक व्यापक-वर्ग तक पहुंचने की कोशिशें नजर आ रही हैं‘150 साल जिंदा रहेंगे…’, पुतिन और जिनपिंग की बातचीत का वीडियो चीन ने क्यों करवा दिया डिलीट? – Putin Xi Jinping Video China Military Parade Age Science Reuters Retreat Video ntcमुंबई बम धमकी मामले का आरोपी गिरफ्तार, क्राइम ब्रांच ने नोएडा से पकड़ा, पूछताछ शुरूChetan Bhagat’s column – India needs more Grade-A cities | चेतन भगत का कॉलम: भारत को अधिक से अधिक ग्रेड-ए शहरों की जरूरत हैबीमारियों से रहना है दूर तो रोज खाएं ये ड्राई फ्रूट्स, मिलेंगे जबरदस्त फायदे – Almonds eating health benefit dry fruits tmovxतेलंगाना में 12 हजार करोड़ की ड्रग्स फैक्ट्री का भंडाफोड़, 13 आरोपी गिरफ्तारColumn by Pandit Vijayshankar Mehta- If you go to any religious place, return with peace in the Prasad | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: किसी धर्मस्थल में जाएं तो प्रसाद में शांति लेकर लौटैं
देश

महाभारत कथा- विचित्रवीर्य का निधन और हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी का संकट, भीष्म ने कैसे निकाला समस्या का हल?


महाभारत की कथा में लगातार इतने उतार-चढ़ाव हैं कि यह महागाथा सिर्फ एक समय के दौरान घटी घटना का विवरण नहीं रह जाती है, बल्कि इसमें बीते हुई अनेक घटनाएं भी कभी प्रसंग तो कभी किरदार बनकर कथानक को आगे बढ़ाते चलती हैं. यह गाथा, कर्मों के परिणाम को समझने का एक जरिया है. ये कर्म हमारे वर्तमान के जीवन पर ही नहीं बल्कि भविष्य पर किस तरह असर डालते हैं महाभारत की गाथा इस रहस्य को समझाते हुए आगे बढ़ती है. 

हस्तिनापुर के महल में सुख किसी मौसम की तरह आया और चला गया. राज्य एक बार फिर शोक के गहरे अंधकार में डूब गया और महल दो कम उम्र की विधवा हो चुकीं बहुओं के विलाप से गूंज उठा. सत्यवती ने एक-एक करके दो बेटे खो दिए. ये दोनों वही बेटे थे, जिनके नाम पर भीष्म जैसे महात्मा को अविवाहित रहने और राज्य का त्याग करने जैसा कठोर प्रण लेना पड़ा. सत्यवती जीवन के इस मोड़ अचानक आ पड़े इस दुख के लिए रोना तो चाहती थी, लेकिन फिर जब वह अपनी दो विधवा बहुओं का विलाप सुनती अपने आंसुओं को आंखों के भीतर ही रोक लिया करती थी. 

और फिर वह रोये भी तो कैसे, आखिर भीष्म के साथ जो अन्याय उसने किया था उसका दंड तो मिलना ही था. यही सब बातें सोचकर महाराज शांतनु की विधवा और महाराज विचित्रवीर्य की मां, राजामाता सत्यवती रो भी नहीं पाती थीं और दिन-रात राज्य के खाली सिंहासन की ओर देखा करती थीं.

सोचती थीं कि जो सिंहासन उनके अजन्मे पुत्रों के लिए मांग लिया गया था, वही सिंहासन आज उन्हें मुंह चिढ़ा रही है. हस्तिनापुर को उसका राजा और राज्य को उसका उत्तराधिकारी देने के बारे विचार करती हुई सत्यवती ने भीष्म को अपने पास एकांत में बुलाया और पुत्र-पुत्र कहकर बहुत देरतक यूं ही रोती रहीं.

यह सारी घटना सुनकर, महाराज जनमेजय ने महर्षि वैशंपायन से पूछा- राजमाता सत्यवती ने भीष्मजी को क्यों अपने पास बुलाया?

महर्षि वैशंपायन ने कहा- सत्यवती राजमाता थीं और राज्य को उत्तराधिकारी देना उनकी जिम्मेदारी भी थी. इसलिए उन्होंने राज्य पर आए इस संकट और इस शोक के बीच भी अपने कर्तव्य पालन को ध्यान में रखा. इसलिए उन्होंने भीष्मजी को अपने पास बुलाया.

उन्होंने भीष्म के अब तक के कर्तव्य, उनके पिता प्रेम, राज्य के प्रति उनकी निष्ठा और अपने भी प्रति उनकी असीम भक्ति की बहुत प्रशंसा कि और फिर कहने लगीं, हे भीष्म! आप मुझे माता कहते हैं और अपनी माता गंगा जैसा ही मुझे सम्मान देते हैं. वास्तव में मैं तो देवी गंगा के चरणों की धूल भी नहीं हूं, लेकिन आपने जो मुझे माता कहा है तो इसी अधिकार से एक बात कहती हूं. इसे ही धर्म मानकर इसका पालन करना.


भीष्म बोले- आप मुझे क्या कहना चाहती हैं माता? आप अपना विचार स्पष्ट रूप से बताएं, भीष्म आपकी समस्या जरूर दूर करेगा.

सत्यवती ने कहा- पुत्र भीष्म! देखो इस सिंहासन को. यह वही सिंहासन है जो मेरे पुत्रों के लिए तुमसे छीन लिया गया था. आज देखो यह सिंहासन तो है, लेकिन मेरे दोनों पुत्र काल के गाल में समा चुके हैं. हस्तिनापुर बिना राजा के कब तक रहेगा. इसलिए हे भीष्म! आपने इस राज्य की रक्षा का वचन दिया था. आज संकट की घड़ी में रक्षा के इसी वचन पालन की जरूरत है. इसलिए आप इस राज सिंहासन पर आसीन हों और हस्तिनापुर के अधिपति बनें.

भीष्म ने ये बात सुनी और फिर बड़ी ही विनम्रता से बोले- माता! संकट की इस स्थिति में आपको सोचना सही ही है, फिर भी यह मेरे अनुसार ठीक नहीं है. मेरा राज्य के त्याग की प्रतिज्ञा आपके और पिताश्री के विवाह का आधार रहा है तो मैं अब इस मोड़ पर अपनी वह प्रतिज्ञा झूठी नहीं कर सकता हूं. यह तो क्षत्रिय कुल की मर्यादा भी नहीं है. मेरे अनुसार यह उचित नहीं है. इसलिए मैं विनय पूर्वक आपकी इस बात को न कहता हूं, इसे अस्वीकार करता हूं.

भीष्म की ऐसी बात सुनकर राजमाता सत्यवती कुछ देर मौन रहीं और फिर उन्होंने अपने शब्दों को भाव से भिगोते हुए और बहुत डरते हुए करुण स्वर में कहना शुरू किया.

सत्यवती बोलीं- अच्छा भीष्म, पुत्र आपकी बात ठीक ही है, फिर भी अब जो मैं कहना चाहती हूं उसे ध्यान से सुन लो और फिर उसे पूरा करने के लिए भी आगे बढ़ो. आपके पिता और मेरे स्वामी महाराज शांतनु स्वर्ग सिधार गए हैं. उनके वंशवृक्ष में आपके अलावा और कोई फल (संतान) भी नहीं है. राज्य का सिंहासन तो दूसरा प्रश्न है, क्योंकि धरती पर कोई न कोई तो अधिकार करता ही है, लेकिन पुत्र आपके बाद आपके पिता महाराज को पिंड कौन देगा. इस वंश को तर्पण कौन देगा. उनकी कीर्ति का आगे भविष्य में कौन बखान करेगा और इस वंश को किस नाम से आगे ले जाया जाएगा?

हे पुत्र भीष्म, तुम धर्म को सबसे सही अर्थों में समझते हो. तुम्हें हर नीति का भी ज्ञान है. इसके अलावा तुम कला, विद्या और अन्य गुणों में भी निपुण हो. तुम धर्मनिष्ठ भी हो और तुम्हारे सदाचार पालन को भी मैं जानती हूं. तुम इसमें अडिग हो. संकट की स्थिति आने पर शुक्राचार्य और बृहस्पति की तरह बुद्धि विचार भी कर लेते हो. इसलिए हर प्रकार से विचार करते हुए मेरी बात को समझने का प्रयास करना. 


मेरा पुत्र और तुम्हारा पराक्रमी छोटा भाई छोटी आयु में ही स्वर्गवासी हो गया. वह राज्य को राजाविहीन कर गया और अपनी पत्नियों का भी सौभाग्य ले गया. महाराज विचित्रवीर्य ने उनसे कोई पुत्र उत्पन्न नहीं किया.  तुम्हारे भाई की ये दोनों सुंदर नारियां जो काशीराज की कन्याएं हैं. वह मनोहारी और युवा हैं. इनके भी हृदय में पुत्र पाने की अभिलाषा है. इसलिए नरों में श्रेष्ठ भीष्म आप इन दोनों से विवाह कर खुद ही इनके गर्भ से पुत्र उत्पन्न करो. इस तरह इस वंश की संतानपरंपरा को सुरक्षित करो. राज्य को राजा, सिंहासन को उत्तराधिकारी देने और पितरों को नर्क में गिरने से बचाने का यही एक उपाय बाकी दिखता है. इसलिए हे पुत्र! तुम यह कार्य जरूर करो.

भीष्म ने यह सारी बातें सुनीं तो बहुत ही विचलित हो गए, फिर भी अपनी बुद्धि को धर्म में स्थिर रखते हुए उन्होंने कहा- माता! आपने जो अभी कहा, वह जरूर है धर्म के अनुसार है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है. विपरीत परिस्थितियों में ऐसे संबंधों की अनुमति दी जाती है. यह ठीक ही है, फिर भी आपने जो मुझसे अभी कहा- वह मेरी प्रतिज्ञा के विपरीत है. प्रतिज्ञा को तोड़ना भी धर्म के विपरीत आचरण करना ही है. 

इसलिए मैं राज्य के लोभ से न तो अपना अभिषेक कराऊंगा और न ही स्त्रीसहवास ही करूंगा. संतान उत्पन्न न करना भी मेरी प्रतिज्ञा का ही एक अंश है, इसलिए मैं संतान उत्पत्ति नहीं करूंगा. आपने मेरी ये सारी प्रतिज्ञा पहले भी सुनी थीं मैं उन्हें आज फिर दोहराता हूं. मैं अपनी इस प्रतिज्ञा के लिए तीनों लोकों का राज्य और देवताओं का साम्राज्य सबकुछ भी त्याग कर सकता हूं, लेकिन अपनी प्रतिज्ञा नहीं छोड़ सकता हूं.

इस तरह भीष्म ने सत्यवती के बार-बार किए जाने वाले आग्रह को अस्वीकार कर दिया और अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहे. सत्यवती भीष्म की वाणी सुनकर मौन हो गई और एक बार फिर से यही विचार करने लगी कि आखिर हस्तिनापुर पर आए इस संकट को कैसे टाला जाए.

भीष्मजी ने जब उन्हें इस तरह चिंतित देखा तो बोले- राजमाता! आप धर्म की ओर भी देखिए, हम सबका इस तरह के वचनों से नाश मत कीजिए. मेरा प्रतिज्ञा को तोड़ना किसी भी तरह से अच्छा नहीं है. क्षत्रिय का सत्य से विचलित होना किसी भी धर्म में अच्छा नहीं माना गया है. ‘राजमाता! महाराज शांतनु की संतान परंपरा भी जिस उपायसे इस धरती पर बनी रहे और अक्षय रहे वह धर्म से युक्त उपाय भी मैं आपको बता देता हूं. वह सनातन क्षत्रिय धर्म है.

संकट और आपत्ति के इस समय में उस धर्म का पालन किया जा सकता है और वह तरीका मर्यादित भी है. कुशल पुरोहितों से इस बारे में सुनकर और लोकतंत्र की ओर भी देखते हुए इस विषय में आप सही-सही निर्णय कीजिए. 


यह सुनकर महाराज जनमेजय ने वैशंपायन जी से पूछा- वह कौन सा तरीका था और कैसा उपाय था जो भीष्मजी ने राजमाता सत्यवती को बताया. क्या इससे संकट और समस्या का हल निकल आया?

यह सुनकर वैशंपायन जी बोले- राजन! आपने बहुत उत्तम प्रश्न किया है. जिस तरह अभी आप आश्चर्य चकित हैं, ठीक वैसे ही भीष्म की वाणी सुनकर राजमाता सत्यवती भी आश्चर्य में भर गईं और बड़े ही उत्साह से भीष्मजी से कहने लगीं. ऐसा कौन सा उपाय है पुत्र?  मुझे बताओ, मैं उसका जल्दी से जल्दी पालन करूंगी. मैं हर संभव उपाय करूंगी.

तब भीष्मजी ने कहना शुरू किया- राजमाता! भरतवंश की रक्षा के लिए जो संभव उपाय है वह मैं आपको बता रहा हूं. आप इसे ध्यान से सुनिए और इसका पालन कीजिए. आप किसी गुणवान ब्राह्मण को धन देकर बुलाओ जो विचित्रवीर्य की पत्नियों के गर्भ से संतान उत्पन्न कर सके. 

भीष्म की यह बात सुनकर सत्यवती विचारों में पड़ गई और इस विषय में सोचने लगी. भरतवंश की वंशपरंपरा बचाए रखने और हस्तिनापुर राज्य को उसका उत्तराधिकारी देने के लिए वह भीष्म के बताए इस मार्ग को सोचते हुए अपने ही किसी अतीत में खो गई. शोक में डूबा हस्तिनापुर किसी नए विचार के आने की प्रतीक्षा करने लगा.


Source link

Check Also
Close



TOGEL88