Column by Njire Woods – How did earlier generations remember phone numbers and poems? | एनजाइरे वुड्स का कॉलम: पहले की पीढ़ियां फोन नंबर और कविताएं कैसे याद रखती थीं?

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11 घंटे पहले
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एनजाइरे वुड्स ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और डीन
हाल ही में लॉन्च हुए जेमिनी डीप थिंक और जीपीटी-5 ने लार्ज लैंग्वेज मॉडलों (एलएलएम) के तेज गति से हो रहे डेवलपमेंट को उजागर किया है। दुनिया में 67% संगठन अब एलएलएम का उपयोग कर रहे हैं। संभवतः आपने भी इनका इस्तेमाल किया होगा। भले ही आप इनसे प्रभावित हुए हों, लेकिन इसके साथ ही आपको यह भी लगा होगा कि आपका ध्यान आसानी से भटकने लगा है। आपकी याददाश्त अब उतनी भरोसेमंद नहीं रही। पहले जो काम आसान थे, वे अब कठिन लग रहे हैं।
यह महज आपका भ्रम नहीं है। भले ही, एआई-संचालित उपकरण अपनी गति और प्रवाह से चकित कर सकते हैं, लेकिन इन पर अत्यधिक निर्भरता हमारी सोचने-समझने की क्षमता को घटाकर हमें सुस्त बना सकती है। रिसर्च में चार ट्रेंड खासतौर पर उजागर हुए हैं।
डिजिटल डिस्ट्रेक्शन हमारी एकाग्रता को कम कर रहा है। पिछले दो दशकों में स्मार्टफोन और अन्य उपकरणों ने ध्यान बनाए रखने, निर्णय करने और काम निपटाने की हमारी क्षमता को घटाया है। लगातार नोटिफिकेशन हमारा ध्यान भंग करते हैं और हमें अंतहीन स्क्रॉलिंग में धकेलते हैं। बार-बार फोन देखने की इच्छा हर मैसेज और अपडेट के साथ और प्रबल हो जाती है। यह जितनी व्यसनकारी है, उतनी ही हमें कमजोर भी बनाती है। ये व्यवधान चुनौतीपूर्ण और दीर्घकालिक कार्यों को कठिन बना देते हैं।
सूचना की आसान उपलब्धता से स्मृतिलोप भी हो रहा है। इसका अर्थ है निर्णय लेते वक्त जानकारी बनाए रखने और व्यवस्थित करने की क्षमता कम होना। शोधकर्ताओं ने कुछ समय पहले गूगल इफेक्ट का अध्ययन किया, जिसमें स्मार्टफोन पर बढ़ती निर्भरता के कारण स्मृति पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को बताया। जबकि इसके विपरीत, हमसे पहले की पीढ़ियों को टेलीफोन नंबर, कविताएं और पीरियोडिक टेबल तक याद करनी पड़ती थीं।
बेहतर तर्क कर पाने की क्षमता में कमी आना एआई का सबसे ताजा प्रभाव है, क्योंकि अधिकतर लोग सोचने का जिम्मा चैटजीपीटी, जेमिनी या डीपसीक को सौंपते जा रहे हैं। अध्ययन दिखाते हैं कि यह संज्ञानात्मक ऑफ लोडिंग हमारी स्पष्ट तौर से सोचने, तार्किक संबंधों को पहचानने और त्रुटिपूर्ण तर्कों को देखने की क्षमता को बाधित करती है। यह ऐसा ही है जैसे आप अपने नियमित व्यायाम को आउटसोर्स कर रहे हों। इससे आप कुछ समय के लिए अपनी ऊर्जा तो बचा सकते हैं, लेकिन समय के साथ आपकी ही ताकत कम होने लगती है।
एलएलएम युग से पहले शोधकर्ताओं को खासी रिसर्च करनी पड़ती थी। उससे भी पहले लाइब्रेरी में बैठकर हर नए स्रोत को परखना पड़ता था। क्या यह उपयेागी था? अन्य स्रोतों की तुलना में यह कैसा था? क्या इन विचारों को एक-दूसरे के खिलाफ परखा जा सकता था? यह शोध प्रक्रिया दिमाग को याद करने, लागू करने, विश्लेषण करने और संश्लेषित करने के लिए प्रशिक्षित करती थी। इसके बिना, वे क्षमताएं यकीनन कमजोर होती हैं।
छानबीन और बहस नहीं करने और सवाल नहीं उठाने से दिमाग कुंद हो जाता है। दिमागी ताकत को तेज करने के लिए संज्ञानात्मक टकराव महत्वपूर्ण हैं। यूजर्स को प्रसन्न करने के लिए प्रशिक्षित एलएलएम की चापलूसी हमारी विचारशक्ति को कम करती है। जब एआई मॉडल गलत परिणाम पर भी सहमत होते या घातक सुझाव देते हैं तो यह इस चापलूसी का एक और स्याह पहलू है।
चिंताजनक रूप से, एक हालिया अध्ययन दिखाता है कि यूजर्स किसी झूठ पर जितना जोर देते हैं, प्रमुख एलएलएम उतना ही उनका समर्थन करते हैं। ओपन-एआई अब इसे कम करने पर काम कर रहा है। चैटजीपीटी ने स्वयं कहा है कि तारीफ के स्थान पर ईमानदारी, रचनात्मक असहमति और स्वतंत्र सोच को प्रोत्साहित किया जा रहा है। समस्या यह है कि विचारों का टकराव यूजर्स को असहज करता है, फिर यह तनाव व्यक्तिगत विकास के लिए ही क्यों ना हो।
फिर भी, टेक कंपनियों, कार्यस्थलों, शैक्षणिक संस्थानों और लोगों को यह सुनिश्चित करने की चुनौती लेनी होगी कि एआई मानवीय क्षमताओं को मजबूत करे। एक विश्वविद्यालय में कार्यरत होने के नाते मेरे लिए तो यह एक बेहद तात्कालिक चुनौती है। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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