Thursday 11/ 09/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Knowing more languages is related to cognitive health | एन. रघुरामन का कॉलम: अधिक भाषाएं जानने का संबंध कॉग्निटिव हेल्थ से है

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6 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

“हे भगवान, आप लोग किस स्पीड से बोलते हैं। लगता है जैसे यह तेज “कैटामारन’ उमड़ते समुद्र पर उड़ रही हो।’ यह बात उन विदेशी पर्यटकों ने कही, जो हमारे साथ रामेश्वरम में दो पतवारों वाली नाव में बैठे थे। मेरे पिता ने शांत होकर उनसे कहा कि उन्होंने नाव के लिए जो शब्द “कैटामारन’ काम में लिया, वह उस तमिल भाषा का है- जो रामेश्वरम् और पूरे तमिलनाडु में बोली जाती है।

फिर उन्होंने समझाया कि यह शब्द तमिल के “कट्टुमरम’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक साथ बंधे हुए लट्ठे। इस तरह के शुरुआती डिजाइन मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल होते थे। उस विदेशी ने मेरे पिता की अंग्रेजी में दक्षता की तारीफ की, जो उसके अनुसार “किसी अंग्रेज की तरह सटीक’ थी।

मुझे 70 के दशक में अपने माता-पिता के साथ यात्रा का यह किस्सा तब याद आया, जब इंदौर विश्वविद्यालय के एक छात्र ने मुझसे पूछा, “आप इतने छोटे से छोटे दशमलव और कई संख्याओं को उनके प्रतिशत के साथ कैसे याद रखते हैं? और यहां दे रहे हर जवाब में उन्हें समझा भी पाते हैं?’

कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और स्कूलों में विद्यार्थी अक्सर ये सवाल पूछते हैं। मैं अपने हाथ आकाश की ओर उठाकर इसका श्रेय माता-पिता को देता हूं, जिनकी याददाश्त 80 की उम्र के बाद भी तेज थी और उन्होंने मुझे भी वही डीएनए दिया। और भगवान को भी श्रेय देता हूं, जिन्होंने माता-पिता को बनाया।

वर्षों बाद मुझे पता चला कि इसके पीछे विज्ञान है और कोई भी ऐसी याददाश्त विकसित कर सकता है। कई भाषाएं जानना स्पष्ट रूप से बुजुर्गों में कॉग्निटिव हेल्थ से जुड़ा है, जो उम्र संबंधी गिरावट को धीमा करता है। लेकिन यह शारीरिक तौर पर उम्रदराज होने को रोकता नहीं है।

माना जाता है कि बहुभाषावाद एक “कॉग्निटिव रिजर्व’ में योगदान देता है, जो मस्तिष्क को उम्र संबंधी बदलावों से निपटने में मदद करता है। सोच रहे हैं कि बहुभाषावाद संज्ञान संबंधी ताकत कैसे बढ़ाता है? तो जानिए, यह कैसे काम करता है।

1. एग्जीक्यूटिव क्रियाकलापों को मजबूत करता है : बहुभाषी व्यक्तियों को जानी-पहचानी भाषाओं को लगातार प्रबंधित और बदलते रहना होता है। इससे मस्तिष्क के एग्जीक्यूटिव कंट्रोल सिस्टम का व्यायाम होता है। इससे व्यक्ति के जीवन में ध्यान, कार्य-बदलाव और संयम जैसी क्षमताएं मजबूत होती हैं।

2. दिमाग की प्लास्टिसिटी बढ़ाता है : द्विभाषी और बहुभाषी व्यक्तियों के मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों में ‘ग्रे मैटर’ का घनत्व बढ़ा हुआ होता है। खासकर उन क्षेत्रों में, जो भाषा और एग्जीक्यूटिव कार्यों से संबंधित होते हैं। यह न्यूरोलॉजिकल प्लास्टिसिटी अथवा दिमाग की स्वयं को पुनर्गठित करने की क्षमता बढ़ती उम्र के साथ कॉग्निटिव तीक्ष्णता बनाए रखने में मदद करती है।

कॉग्निटिव रिजर्व बढ़ाता है : माना जाता है कि कई भाषाएं सीखने और उपयोग करने के मस्तिष्क-उत्तेजक प्रभावों से कॉग्निटिव रिजर्व का निर्माण होता है। यह एक बफर जैसा है, जो लंबे समय तक बिना कोई लक्षण दिखाए दिमाग को न्यूरो डी-जनेरेटिव रोगों जैसे नुकसान को सहने की क्षमता देता है। हम इस न्यूरो डी-जनेरेटिव रोग को डिमेंशिया के रूप में भी जानते हैं।

हां, कई भाषाएं सीखना और बोलना उल्लेखनीय ढंग से मस्तिष्क को उम्र संबंधी गिरावट से बचाता है। यह संज्ञानात्मक रूप से उम्रदराज होने और डिमेंशिया को विलंबित करता है। चूंकि कई भाषाओं को प्रबंधित करने में निरंतर संज्ञान संबंधी प्रयासों की जरूरत होती है, इसलिए बहुभाषी व्यक्ति अक्सर बेहतर कॉग्निटिव कार्यक्षमता का प्रदर्शन करते हैं- जिसमें एग्जीक्यूटिव कंट्रोल और ध्यान शामिल हैं।

यह “कॉग्निटिव रिजर्व’ बहुभाषी दिमाग को लंबे समय तक मस्तिष्क के क्षय को झेलने के काबिल बनाता है। भाषा सीखने के मस्तिष्क पर होने वाले सकारात्मक प्रभाव बचपन तक सीमित नहीं हैं। वयस्क भी दूसरी या तीसरी भाषा सीखकर महत्वपूर्ण सुधार कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि बहुभाषी मस्तिष्क की उम्र नहीं बढ़ती, बल्कि इसके बजाय वे उम्र संबंधी बदलावों को सहन करने में अधिक बेहतर होते हैं।

फंडा यह है कि शोध दिखाता है कि एकाग्रता और दिमागी चुस्ती वाले कार्यों में अक्सर बहुभाषी लोग एक भाषा जानने वालों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। कोई भी, किसी भी उम्र में नई भाषा सीख सकता है।

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