Tuesday 16/ 09/ 2025 

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Neeraj Kaushal’s column – The world’s ability to withstand Trump tariffs has been commendable | नीरज कौशल का कॉलम: ट्रम्प टैरिफ झेलने की दुनिया की क्षमता प्रशंसनीय रही है

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2 घंटे पहले

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नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर

दुनिया की अर्थव्यवस्था उल्लेखनीय लचीलेपन के साथ ट्रम्प टैरिफ को बेअसर करती प्रतीत हो रही है। अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी थी कि नए टैरिफ वैश्विक सप्लाई चेन में बड़े पैमाने पर व्यवधान डालेंगे, विश्व व्यापार में तेजी से गिरावट लाएंगे, महंगाई बढ़ाएंगे और ग्लोबल मंदी लाएंगे। अब तक तो मंदी का कोई संकेत नहीं है। टैरिफों ने अनिश्चितता को जरूर बढ़ाया है। महंगाई भी बढ़ी है, लेकिन महज थोड़ी ही।

इतिहास में भी टैरिफ को लेकर नासमझियों के कई उदाहरण हैं, जो आर्थिक आपदाओं के कारण बने। करीब एक सदी पहले अमेरिकी सरकार द्वारा लागू किया गया स्मूट-हॉले टैरिफ कानून इनमें से एक है। 1930 में अमेरिकी कांग्रेस ने यह कानून पारित किया था, जिसके जरिए 20 हजार से अधिक वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ा दिया गया था। अगले चार वर्षों में विश्व व्यापार हैरतअंगेज तरीके से एक-तिहाई रह गया। पहले यह गिरावट धीमी थी लेकिन समय के साथ बढ़ती चली गई।

स्मूट-हॉले युग और ट्रम्प टैरिफ काल में क्या अंतर हैं? ये हैं- वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति, टैरिफ पर दुनिया की प्रतिक्रिया और खुद टैरिफ की निश्चितता। इन अंतरों के बावजूद मुझे लगता है कि दोनों के दीर्घकालिक परिणाम अलग नहीं हो सकते।

स्मूट-हॉले टैरिफ महामंदी के दौरान लागू किए गए थे। उस वक्त वैश्विक अर्थव्यवस्था, और उसमें भी खासतौर पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था अत्यधिक असुरक्षित थी। स्मूट-हॉले टैरिफ ने इस महामंदी की अवधि को और लंबा कर दिया। इसके विपरीत, आज वैश्विक अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में है। टैरिफ का बहुत बड़ा भार अमेरिकी जनता के बजाय उत्पादकों और निर्यातकों ने झेल लिया है।

इसके अलावा, अधिकांश देशों ने अमेरिकी निर्यात पर अपने खुद के टैरिफ लगा कर जवाब दिया। नतीजा ये रहा कि बाकी दुनिया से अमेरिका में होने वाला आयात एक-तिहाई गिर गया और अमेरिकी निर्यात में लगभग 20% की गिरावट आई। इस बार अन्य देशों ने काफी संयम के साथ जवाब दिया।

कई देशों ने टैरिफ को कड़वी गोली की तरह निगल लिया, ताकि उनकी अमेरिकी बाजार में हिस्सेदारी अन्य देशों को ना चली जाए। दूसरों ने गैर-टैरिफ उपाय इस्तेमाल किए। मसलन, ट्रम्प टैरिफ को काबू करने के लिए चीन ने रेयर-अर्थ के निर्यात पर प्रतिबंध की धमकी दी।

ट्रम्प टैरिफ की वैधानिकता को लेकर भी अनिश्चितता है। इसीलिए, इस पर भी असमंजस है कि यह कितने दिन चलेगा। जबकि स्मूट-हॉले टैरिफ अमेरिकी कांग्रेस ने पारित किए थे और कानून पर राष्ट्रपति हूवर के दस्तखत थे। इन्हें सिर्फ अमेरिकी कांग्रेस द्वारा ही पलटा जा सकता था। कांग्रेस ने 1934 के रेसिप्रोकल ट्रेड एग्रीमेंट एक्ट के माध्यम से ऐसा किया। जबकि मौजूदा ट्रम्प टैरिफ कार्यकारी आदेश हैं, जिन पर कांग्रेस की मुहर नहीं है।

इन्हें व्यवसायों और राज्य सरकारों ने चुनौती दी है। दो अमेरिकी अदालतों ने इन्हें असंवैधानिक भी बताया। अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट देगा। ट्रम्प के खिलाफ खड़े होने और उन्हें दुश्मन बनाने के बजाय सारे देश अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं कि वह ट्रम्प टैरिफ या उनमें से अधिकांश को अवैध घोषित करे।

गोल्डमैन सैक्स के विशेषज्ञों ने जनवरी से जून तक ट्रम्प टैरिफ के प्रभावों का आकलन किया। इसके अनुसार विदेशी उत्पादकों ने टैरिफ का 14% बोझ खुद पर लिया, जबकि अमेरिकी व्यवसायों ने इसका दो-तिहाई भार झेला। महज पांचवें हिस्से का वजन ही अमेरिकी उपभोक्ता पर जाने दिया। लंबे समय तक कंपनियां इतना वजन नहीं झेल पाएंगी। गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि अक्टूबर तक उत्पादक टैरिफ का दो-तिहाई हिस्सा उपभोक्ता पर डाल देंगे। इससे समग्र मूल्य सूचकांक में बढ़ोतरी होगी।

इस बात के बहुत कम प्रमाण हैं कि ट्रम्प इन टैरिफ को लेकर मौजूदा स्तर पर ही रुकना चाहते हैं। उन्हें यह देखना पसंद है कि जब वे नए टैरिफ का ऐलान करें तो दूसरे देश तड़पें। दुर्भाग्यवश, इससे दुनिया का संयम टूटेगा और कुछ देश जवाबी कार्रवाई को मजबूर होंगे।

उत्पादकों के पास इससे भारी टैरिफ की मार झेलने की क्षमता नहीं है। इसलिए ट्रम्प टैरिफ को झेलने की दुनिया की ताकत प्रशंसनीय है, लेकिन यह तो महज शुरुआत है। जैसा कि अभिनेता बेट्टी डेविस ने फिल्म ‘ऑल अबाउट ईव’ में कहा था, ‘सीट बेल्ट बांध लीजिए, आगे का सफर और दचकेदार होने जा रहा है!’

ट्रम्प के खिलाफ खड़े होने और उन्हें दुश्मन बनाने के बजाय सारे देश अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं कि वह ट्रम्प टैरिफ या उनमें से अधिकांश को अवैध घोषित करे। और ऐसा होना मुमकिन है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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