Jean Dreze’s column: The world’s silence on the Gaza massacre is deeply disturbing. | ज्यां द्रेज का कॉलम: गाजा के नरसंहार पर बहुत खटकती है दुनिया की चुप्पी

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10 घंटे पहले
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ज्यां द्रेज प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री व समाजशास्त्री
कई साल पहले, मैं गाजा पट्टी में कुछ दिन तक रहा था। यह एक मार्मिक अनुभव था। सुविधाएं कम थीं, लेकिन लोग बहुत दयालु और स्नेहशील थे। तब उनसे दोस्ती करना आसान था, क्योंकि उस समय भारत फिलिस्तीनियों के बीच बहुत लोकप्रिय था।
वे भारत को अपने संघर्ष का एक विश्वसनीय समर्थक मानते थे। याद रखें, इजराइल का निर्माण फिलिस्तीनियों को उनकी भूमि से विस्थापित करके किया गया था। स्वाभाविक रूप से, उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ने वाले देशों ने फिलिस्तीनियों की स्वतंत्र राष्ट्र की मांग का समर्थन किया था। भारत उनमें से एक था।
लेकिन आज गाजा एक नर्क जैसा है। पिछले दो सालों में वहां ज्यादातर लोगों के घर तबाह हो गए हैं। इजराइल ने अनगिनत स्कूलों, अस्पतालों, विश्वविद्यालयों, मस्जिदों और अन्य सार्वजनिक जगहों पर भी बमबारी की है। इसमें 50 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई, जिनमें ज्यादातर आम नागरिक थे। कई और गंभीर घायल हैं, और उन्हें इलाज नहीं मिल पा रहा है क्योंकि अधिकतर अस्पताल नष्ट हो चुके हैं। कभी-कभी तो बमबारी से घायल बच्चों के हाथ-पैर बिना बेहोशी की दवा दिए ही काटने पड़े हैं।
इजराइल ने गाजा पर कड़ी-नाकेबंदी लगाने के बाद अब वहां जमीनी हमला भी शुरू कर दिया है। यहां तक कि कुछ महीनों से खाद्य आपूर्तियों को मुश्किल से अंदर आने दिया जा रहा है। गाजा में भुखमरी तेजी से फैल रही है और कई लोग भूख से मर भी गए हैं। कुछ दिन पहले, संयुक्त राष्ट्र ने आधिकारिक तौर पर गाजा में अकाल की स्थिति घोषित की थी।
इजराइल का दावा है कि उसकी कार्रवाई आत्मरक्षा के अधिकार पर आधारित है। लेकिन यह तो बस एक बहाना है। गाजा में जो हो रहा है, वह आत्मरक्षा नहीं, बल्कि सामूहिक दंड का एक रूप है। इजराइल के कई प्रमुख राजनेताओं ने शुरू से ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वे 7 अक्टूबर 2023 को हमास की कार्रवाई के लिए गाजा के लोगों को कड़ी सजा देंगे। जबकि अन्तरराष्ट्रीय कानून के तहत सामूहिक दंड अवैध है।
इजराइल के युद्ध-अपराध रोज हमारी आंखों के सामने हो रहे हैं। दुनिया भर में उसके खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। पेरिस से लेकर काहिरा और न्यूयॉर्क से लेकर न्यूजीलैंड तक, लाखों लोग गाजा में युद्धविराम की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। इसके बावजूद, बहुत कम सरकारों ने इजराइल पर लगाम लगाने की कोशिश की है।
दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में इजराइल के खिलाफ नरसंहार का मामला दर्ज कराया है। कुछ सरकारों ने इजराइल के साथ राजनयिक संबंध तोड़ दिए हैं या इजराइल को हथियार बेचना बंद कर दिया है। लेकिन ज्यादातर सरकारें इस स्थिति में निष्क्रिय रही हैं। कुछ तो इजराइल को हथियार बेचकर या खुफिया जानकारी साझा करके, इजराइल को समर्थन देना जारी रखे हुए हैं। इजराइल के इन समर्थकों में अमेरिका सबसे ज्यादा सक्रिय है।
भारत सरकार भी अब इजराइल की सहयोगी है। उसने इजराइल के कार्यों का कई तरह से समर्थन किया है। उदाहरण के लिए, भारत सरकार रक्षा क्षेत्र में भारतीय और इजराइली कंपनियों के संयुक्त उद्यमों को सब्सिडी देती है। भारतीय मजदूरों को इजराइल भेज रही है।
इजराइल पर लगाम लगाने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर कई बार मतदान से परहेज किया है। और देश में इजराइल के युद्ध-अपराधों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन भी नहीं हो पाते हैं। इसका कारण यह है कि भारत रक्षा और निगरानी तकनीक के लिए इजराइल पर निर्भर है। कई भारतीय कंपनियों के इजराइल में व्यापारिक हित हैं। इजराइली पर्यटक कुछ विदेशी मुद्रा लेकर आते हैं। जबकि फिलिस्तीनियों के पास कुछ भी नहीं है। वे शक्तिहीन और कंगाल हैं।
हाल ही में, भारत और इजराइल के वित्त मंत्रियों ने एक द्विपक्षीय निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किए, जबकि गाजा पर बमबारी जारी है। पूंजीवादी व्यवस्था इंसानियत और करुणा को जगह नहीं देती। मुनाफा ही एकमात्र उद्देश्य है। लेकिन नागरिक और इंसान होने के नाते हम इस तर्क से बंधे नहीं हैं। हम आवाज उठा सकते हैं और गाजा नरसंहार का विरोध कर सकते हैं। बच्चों को भूखा मारने या अस्पतालों पर बमबारी करने का कोई बहाना जायज नहीं हो सकता है।
इजराइल का दावा है कि उसकी कार्रवाई आत्मरक्षा के अधिकार पर आधारित है। लेकिन यह तो बस एक बहाना है। गाजा में जो हो रहा है, वह आत्मरक्षा नहीं, बल्कि सामूहिक दंड का एक रूप है। इजराइल के नेताओं ने शुरू से ही यह स्पष्ट कर दिया था। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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