Thursday 18/ 09/ 2025 

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Prof. Nishit Sinha’s column – Today, one in seven people suffers from mental illness | प्रो. निशित सिन्हा का कॉलम: आज हर सात में से एक व्यक्ति मनोरोगों का सामना कर रहा है

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12 घंटे पहले

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प्रो. निशित सिन्हा फैकल्टी, आईआईएम, इंदौर - Dainik Bhaskar

प्रो. निशित सिन्हा फैकल्टी, आईआईएम, इंदौर

पारंपरिक रूप से मानसिक स्वास्थ्य को मानसिक रोगों की अनुपस्थिति माना जाता था, हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यह अवधारणा बदल गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन मानसिक स्वास्थ्य को एक सकारात्मक स्थिति मानता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता का एहसास करता है, जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक और फलदायी रूप से कार्य कर सकता है और अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम होता है।

इस परिभाषा के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य केवल बीमारी की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि खुशी की भावना और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने, अपने मूल्यों के साथ तालमेल बिठाने और अपनी पूरी क्षमता विकसित करने की दीर्घकालिक समझ पर केंद्रित है।

मानसिक स्वास्थ्य समुदाय के सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए एक संसाधन है। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का अभाव व्यक्तियों और समाजों के लिए गंभीर चिंता का विषय हो सकता है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं विभिन्न देशों में समग्र रोग-भार का एक बड़ा हिस्सा हैं।

भारत सरकार द्वारा किए गए एक प्रतिनिधि नमूना सर्वेक्षण में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का भारत में कुल प्रसार 13.7% पाया गया है। इसका मतलब भारत में हर सात में से एक व्यक्ति किसी न किसी मानसिक स्वास्थ्य चुनौती का सामना कर रहा है, जबकि प्रति दस लाख जनसंख्या पर दस से भी कम मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भारत में उपलब्ध हैं। समाज में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए यह मूलभूत कार्ययोजना आवश्यक है :

1. दृष्टिकोण : मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बदलाव इनके समाधान का प्रारंभिक बिंदु है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति दृष्टिकोण में सुधार हुए हैं, फिर भी गलत धारणाओं (जैसे मनोरोगों को एक दाग जैसा समझना) और सहायता के विभिन्न स्तरों के अभाव के कारण अभी भी कई चुनौतियां हैं। हालांकि यह मान्यता बढ़ रही है कि व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से उबर सकते हैं और प्रभावित लोगों के साथ काम करने की इच्छा भी बढ़ रही है, फिर भी कुछ गलत धारणाएं अभी भी बनी हुई हैं। लैंसेट में प्रकाशित हाल के अध्ययन में पाया गया कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति से उत्पन्न भेदभाव का असर स्वयं मानसिक स्वास्थ्य स्थिति से भी बुरा हो सकता है। ऐसे में लोग अपनी समस्याएं साझा करना बंद कर देते हैं और चुपचाप कष्ट सहते रहते हैं।

2. पहचान : मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को मानव विकास का एक सामान्य हिस्सा मानने से इससे जुड़े ‘दाग’ जैसी धारणाओं को कम करने और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के बारे में खुली बातचीत को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। इसमें मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को समझना, जरूरत पड़ने पर मदद लेना और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए सहायक वातावरण तैयार करना शामिल है।

3. जागरूकता : मानसिक स्वास्थ्य देखभाल समय के प्रति संवेदनशील होती है। निदान में देरी से जटिलताएं कई गुना बढ़ जाती हैं। जागरूकता की कमी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के दुष्प्रभावों के सबसे प्रमुख कारणों में से एक है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और देखभाल प्रदाताओं के बारे में जागरूकता हमें समस्याओं का समाधान करने, चेतावनी के संकेतों को पहचानने और दूसरों को भी ऐसा करने में सक्षम बनाती है। लक्षणों के बारे में जानना और जरूरत पड़ने पर मदद देना/मांगना बेहतर मानसिक स्वास्थ्य प्रबंधन को बढ़ावा देता है।

4. मापन : मानसिक स्वास्थ्य को कई तरीकों से मापा जा सकता है, जिनमें वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली, साक्षात्कार और कुछ मामलों में, क्लिनिकल संकेतक शामिल हैं। ये तरीके लक्षणों, गंभीरता और प्रभाव का आकलन करने में मदद करते हैं, जिससे निदान और उपचार योजना बनाने में मदद मिलती है। इनमें सबसे आसान तरीका मानक प्रश्नावली का उपयोग करना है, जिन पर व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहारों के माध्यम से अपने मानसिक स्वास्थ्य के स्तर को माप सकते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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