N. Raghuraman’s column – Never compromise principles for fame and profit in business | एन. रघुरामन का कॉलम: व्यवसाय में प्रसिद्धि और लाभ के लिए सिद्धांतों से समझौता कभी ना करें

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1 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
उनकी प्रतिष्ठा ऊंची थी। वह फार्मास्युटिकल उत्पाद बनाने वाले हर विनिर्माता की कॉन्फ्रेंस में नजर आते थे, अधिकतर भारत के दक्षिणी राज्यों में। वे कई महत्वाकांक्षी युवा आंत्रप्रेन्योर्स और नए पास-आउट स्नातकों को दवाओं के क्षेत्र में कदम रखने के लिए मार्गदर्शन और सहायता देते थे, क्योंकि यह किसी भी मानक पर दुनिया में सबसे शीर्ष उद्योग है।
ऐसा इसलिए क्योंकि ‘भय’ इस उद्योग में बिक्री की अनूठी खासियत है। जब इंसान अपनी सेहत को लेकर डरता है, तो खुद को ठीक करने वाली दवा खरीदने के लिए किसी भी हद तक जाता है। सिर्फ मैं ही नहीं, मद्रास मेडिकल कॉलेज से फार्मेसी ग्रेजुएट जी. रंगनाथन (73) समेत कई लोग यह जानते हैं कि यह उन छह उद्योगों में से एक है, जो धरती पर इंसान की मौजूदगी तक कभी भी मंदी का सामना नहीं करेंगे। बीते चार दशकों में उन्होंने खुद की बेहतर मार्केटिंग की और कई लोगों के लिए एक सम्मानित मार्गदर्शक बन गए। हर बड़े कार्यक्रम में वे जरूर होते थे।
अब यह इतिहास बन चुका। मध्यप्रदेश में कफ सिरप से हुई मासूम बच्चों की मौतों ने रंगनाथन की छवि पर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। चेन्नई-बेंगलुरु राजमार्ग पर उनकी 2 हजार वर्ग फीट की यूनिट को सील कर दिया गया है। चेन्नई में उनका पंजीकृत कार्यालय बंद पड़ा है। कारण है उनकी कंपनी श्रीसन फार्मास्युटिकल्स, जो मध्य प्रदेश में 17 बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार बताए जा रहे जहरीले कोल्ड्रिफ सिरप की निर्माता है।
कंपनी तमिलनाडु के कांचीपुरम में एक गंदे-से भवन से संचालित हो रही थी। वहां दवाएं भी ऐसे अस्वच्छ माहौल में बनतीं, जहां ना उचित सुविधा थी और नियमों का पालन तो कतई नहीं था। इससे भी ज्यादा 2011 में लाइसेंस मिलने के बाद बीते 14 वर्षों में अधिकारियों ने एक बार भी इस यूनिट का निरीक्षण नहीं किया।
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में बच्चों की मौतों के बाद जाकर तमिलनाडु की ड्रग अथॉरिटी जागी और यूनिट का निरीक्षण किया। परिसर सील कर दिया गया। मध्य प्रदेश ड्रग कंट्रोलर से पत्र मिलने के एक दिन बाद किए गए निरीक्षण में कच्चा माल लाने से लेकर दवा निर्माण, परीक्षण और पैकिंग तक हर चरण में 364 गंभीर और बड़े उल्लंघन पाए गए हैं।
पुड्डुचेरी शासन ने तो अपने केंद्र शासित प्रदेश में इस कफ सिरप की खरीद, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। यदि उनकी कंपनी में बना कथित मिलावटी सिरप ‘कोल्ड्रिफ’ मासूम बच्चों की मौत का कारण निकलता है तो यह मुझे संस्कृत सुभाषित की एक कविता याद दिलाता है। जिसे मैं एक बिजनेस जर्नलिस्ट के रूप में हमेशा पसंद करता हूं। यह इस प्रकार है :
‘अधमा धनमिच्छन्ति धनमानौ च मध्यमाः। उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्॥’
सदियों पुराने इस श्लोक का अर्थ है कि ‘जो केवल धन की इच्छा रखते हैं और अपने किसी भी कार्य में सिद्धांत नहीं रखते हैं, वे समाज के “गरीब’ लोग हैं। जो धन के लिए अपने सिद्धांत बेच देते हैं, वे “मध्यम वर्ग’ हैं। और जो सिद्धांत बनाए रखते हैं और धन त्याग करने के लिए तैयार हैं, वे “सबसे बड़े धनी’ हैं।’
यह श्लोक प्राचीन भारतीय विचारधारा में रही मानवीय प्रेरणा और मूल्यों की दार्शनिक समझ को बताता है और अक्सर नैतिकता, अर्थशास्त्र और सामाजिक पदानुक्रम को बताने वाले ग्रंथों में मिलता है। यह खासकर व्यक्तिगत मूल्यों, नेतृत्व की नैतिकता और भौतिक-अभौतिक सम्पत्ति के तुलनात्मक महत्व पर चर्चा के लिए उपयुक्त है। याद रखें कि भले ही हर व्यवसाय लाभ के लिए ही चलाया जाता हो, लेकिन लाभ ईमानदारी, प्रतिबद्धता और केयर जैसे अच्छे सिद्धांतों का ही सह-उत्पाद है।
फंडा यह है कि यदि लाभ के लिए ग्राहक की सेहत का सौदा किया जाता है तो पतन निश्चित है। इंसान और जानवरों द्वारा जो भी उपभोग किया जाता है, उसे बेहद सावधानी से बनाना होगा। यह सड़क किनारे के उन विक्रेताओं पर भी लागू होता है, जो हर तरफ से नियमों का उल्लंघन करते हैं।
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