Saturday 11/ 10/ 2025 

सिंह राशि को धन लाभ होगा, शुभ रंग होगा क्रीम11 अक्टूबर का मौसमः दिल्ली में ठंड का आगमन, राजस्थान में 7 डिग्री तक गिरा तापमान, जानें आज कहां होगी बारिशPt. Vijayshankar Mehta’s column – Now make more arrangements for religious tourism | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: धार्मिक पर्यटन में अब और अधिक व्यवस्थाएं जुटाएंनोबेल शांति पुरस्कार जीतने वालों को क्या-क्या मिलता है? – maria corina machado nobel peace prize 2025 winner prize money rttw देवबंद क्यों जा रहे तालिबानी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी? धार्मिक-कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है यह दौराN. Raghuraman’s column – Are our children victims of ‘cancel culture’? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या हमारे बच्चे ‘कैंसल कल्चर’ के शिकार हैं?‘हमसे मत उलझो, अंजाम NATO से पूछो’, तालिबान की PAK को सीधी धमकीबस में खेलने की वजह से बच गई भाई-बहन की जान, हैरान कर देगी बिलासपुर के दर्दनाक हादसे की ये कहानीPawan K. Verma’s column – Are freebies before elections morally right? | पवन के. वर्मा का कॉलम: चुनाव से पहले मुफ्त सौगातें क्या नैतिक रूप से सही हैं?अमेरिका देगा कतर को बड़ा सैन्य सहयोग! इडाहो में बनेगा कतरी वायु सेना का ट्रेनिंग सेंटर – US finalizes agreement Qatari Air Force facility Idaho ntc
देश

Pawan K. Verma’s column – Are freebies before elections morally right? | पवन के. वर्मा का कॉलम: चुनाव से पहले मुफ्त सौगातें क्या नैतिक रूप से सही हैं?

  • Hindi News
  • Opinion
  • Pawan K. Verma’s Column Are Freebies Before Elections Morally Right?

29 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक
पवन के. वर्मा पूर्व राज्यसभा सांसद व राजनयिक - Dainik Bhaskar

पवन के. वर्मा पूर्व राज्यसभा सांसद व राजनयिक

बिहार विधानसभा चुनाव का ऐलान 6 अक्टूबर को तीन चुनाव आयुक्तों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया। यह घोषणा पहले ही कर दी गई थी कि प्रेस कॉन्फ्रेंस 4 बजे होगी। इसके एक घंटे पहले दोपहर 3 बजे बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए ने मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना के तहत 21 लाख महिलाओं के खाते में 2100 करोड़ रुपए हस्तांतरित किए। हर महिला को 10 हजार रुपए दिए गए। इससे पहले, उसी दिन मुख्यमंत्री ने पटना मेट्रो के एक हिस्से का उद्घाटन भी किया।

आदर्श आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले खुले हाथों से इतना पैसा बांटना क्या नैतिक तौर पर सही है? भले यह गैर-कानूनी ना हो, लेकिन कानून की भावना के विरुद्ध अवश्य है। मुझसे पूछें तो यह खुलेआम रिश्वत बांटने जैसा है। अतीत में खुद प्रधानमंत्री जनकल्याण के नाम पर रेवड़ियां बांटने की प्रवृत्ति की निंदा कर चुके हैं। लेकिन यहां उनकी खुद की ‘डबल इंजन’ सरकार ऐसा कर रही है।

चुनाव स्वतंत्र होने ही नहीं, बल्कि दिखने भी चाहिए। आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में वोटिंग के दौरान हिंसा, बूथ कैप्चरिंग, बैलट से छेड़छाड़ और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग आम बात थी। 1990 से 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टी. एन. शेषन के कार्यकाल में महत्वपूर्ण बदलाव आया।

शेषन ने सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग और शराब बांटने पर रोक लगाई। वोटर आईडी कार्ड लागू करने, चुनाव खर्च सीमित करने और संवेदनशील बूथों पर केंद्रीय बलों की तैनाती पर जोर दिया। इससे बूथ कैप्चरिंग और वोटिंग के दिन होने वाली हत्याओं में कमी आई। पर्यवेक्षकों की तैनाती बेहतर हई और चुनाव अधिक विश्वसनीय होने लगे।

शेषन ने आदर्श आचार संहिता के सख्ती से पालन पर जोर दिया था। ये केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा बनाए गए नियम-कायदे हैं। ये कानून तो नहीं हैं, लेकिन जन-आकांक्षाओं, कानूनी समर्थन और नैतिकता की धारणा से ये पोषित होते हैं। आचार संहिता चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से लेकर परिणाम घोषित होने तक प्रभावी रहती है।

यह सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग, मतदाताओं को प्रभावित कर सकने वाली किन्हीं भी नई परियोजनाओं-योजनाओं और सत्ताधारी दल व मंत्रियों द्वारा धन-वितरण को प्रतिबंधित करती है। मतदाताओं को प्रभावित करने या प्रचार की शुरुआत से पहले ‘फील गुड’ का माहौल बनाने जैसे कदमों से यदि किसी का इरादा साफ तौर पर चुनावी फायदा लेने का दिख रहा है तो नैतिकता भी संदेह के दायरे में आ जाती है। आचार संहिता की तारीख के आसपास ऐसा हो तो बहुत संभावना है कि इन मुफ्त की सौगातों को नीति के बजाय प्रलोभन माना जाए।

राजनीतिक निष्पक्षता के लिए समान अवसर जरूरी हैं। लेकिन चुनावों में स्वाभाविक तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी फायदे में होती है। उसके हाथ में सरकारी तंत्र, विजिबिलिटी और संसाधन होते हैं। फ्रीबीज़ यदि आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले दी जाएं तो यह फायदा और बढ़ जाता है। वहीं इसका जवाब देने के लिए विपक्षी दलों को समान अवसर नहीं मिल पाता।

मतदाता तर्कसंगत चयन के बजाय उम्मीदवार की इस संरक्षणवादी राजनीति में फंस जाते हैं। जनता के पैसों का इस्तेमाल सियासी लाभ के लिए नहीं, बल्कि लोगों की भलाई के लिए होना चाहिए। कोई योजना वोट खरीदने की मंशा से- खासतौर पर अंतिम समय में घोषित की जाए तो इससे यह सिद्धांत कमजोर होता है कि शासन सभी के लिए होना चाहिए- महज उन लोगों के लिए नहीं, जो सत्ताधारी दल को वोट देते हैं या दे सकते हैं।

इसके अलावा, अब यह धारणा भी बन गई है कि ऐसी मुफ्त की सौगातें सुशासन के लिए आवश्यक हैं। यह शासन में गंभीर कमजोरी का संकेत है, वरना सरकारों को अंत समय में ऐसे प्रलोभनों का सहारा क्यों लेना पड़े? ऐसी परंपराएं जब आम हो जाती हैं, तो वे चुनावी भ्रष्टाचार को निचले स्तर तक ले आती हैं। कभी अनुचित समझी जाने वाली चीज आज सामान्य मान ली जाए तो इससे लोकतांत्रिक संस्कृति को नुकसान होता है।

निष्कर्ष यही है कि चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले मुफ्त की सौगातें बांटना नैतिक रूप से निंदनीय है। इससे ऐसा लगता है, जैसे कल्याण की धारणा को सरकार के दायित्व के स्थान पर चुनावी हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।

असल लोकतंत्र कानून में नहीं, बल्कि उन मानदंडों में होता है, जिन्हें हम वैधानिक और निष्पक्ष मानते हैं। सौभाग्य से, वोटर अब इस सियासी चालबाजी पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। अकसर वो पैसा तो ले लेते हैं, लेकिन वोट उसी को देते हैं, जो उन्हें बेहतर लगता है!

आचार संहिता चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से परिणाम घोषित होने तक प्रभावी रहती है। यह सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग, मतदाताओं को प्रभावित करने वाली योजनाओं और सत्ताधारी दल द्वारा धन-वितरण को प्रतिबंधित करती है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL