Saturday 11/ 10/ 2025 

Ranbir Kapoor ने खुद को बताया नेपोटिज्म का प्रोडक्टBihar assembly election: आखिरकार NDA में सुलझ ही गया सीटों का पेंच? देखें उम्मीदवारों की संभावित लिस्टVirag Gupta’s column – After how many more deaths will we ban road shows? | विराग गुप्ता का कॉलम: और कितनी मौतों के बाद हम रोड-शो पर रोक लगाएंगे?सिंह राशि को धन लाभ होगा, शुभ रंग होगा क्रीम11 अक्टूबर का मौसमः दिल्ली में ठंड का आगमन, राजस्थान में 7 डिग्री तक गिरा तापमान, जानें आज कहां होगी बारिशPt. Vijayshankar Mehta’s column – Now make more arrangements for religious tourism | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: धार्मिक पर्यटन में अब और अधिक व्यवस्थाएं जुटाएंनोबेल शांति पुरस्कार जीतने वालों को क्या-क्या मिलता है? – maria corina machado nobel peace prize 2025 winner prize money rttw देवबंद क्यों जा रहे तालिबानी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी? धार्मिक-कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है यह दौराN. Raghuraman’s column – Are our children victims of ‘cancel culture’? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या हमारे बच्चे ‘कैंसल कल्चर’ के शिकार हैं?‘हमसे मत उलझो, अंजाम NATO से पूछो’, तालिबान की PAK को सीधी धमकी
देश

N. Raghuraman’s column – Are our children victims of ‘cancel culture’? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या हमारे बच्चे ‘कैंसल कल्चर’ के शिकार हैं?

  • Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman’s Column Are Our Children Victims Of ‘cancel Culture’?

3 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

वह दृश्य याद करें, जो हम सभी ने अपने स्कूली दिनों में कभी न कभी अनुभव किया होगा। जब शिक्षक ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखने में व्यस्त होते थे तो एक छात्र अचानक खड़ा होता और हाथ की सबसे छोटी उंगली उठाकर बस इतना कहता- ‘सर’। पीछे मुड़े बिना ही टीचर पूछते थे- ‘क्या’? छात्र वह शब्द कहना नहीं चाहता था, लेकिन शिक्षक की नजर ब्लैकबोर्ड पर होती थी- इसलिए वह धीरे से कहता- ‘सर, टॉयलेट’।

उसी वक्त लड़के हंसने लगते थे और लड़कियां अपने मुंह पर हाथ रखकर एक अजीब-सी आवाज निकालतीं- ‘आ आ…’। शिक्षक अपना सिर घुमाए बिना ही छात्र को कहते थे- ‘जाओ’ और कक्षा के अन्य विद्यार्थियों से कहते- ‘चुप हो जाओ’। उस दिन वह छात्र दुखी, अलग-थलग या शर्मिंदगी महसूस करता और सिर तक नहीं उठाता था।

कुछ सहपाठी कम से कम उस दिन के लिए तो उससे बातचीत बंद कर देते थे। हो सकता है कुछ देर या एक-दो दिन बाद हालात सामान्य हो जाते और फिर निशाने पर कोई दूसरा ऐसा छात्र आ जाता– जिसने वो ना किया हो, जो उसे करना या नहीं करना चाहिए।

कक्षा में अलगाव का वो एक दिन, जो पहले किसी बाहरी व्यक्ति को या हमारे घरवालों तक को पता नहीं होता था, आज के वक्त में सोशल मीडिया के जरिए तेजी से फैल जाता है। ऐसे में वो एक दिन का अलगाव लंबे समय तक चलता रहता है। इस नई घटना को ‘कैंसल कल्चर’ कहा जाता है।

यह शब्द सोशल मीडिया द्वारा बढ़ाए गए उस आधुनिक चलन को बताता है, जिसमें आपत्तिजनक कथन या काम करने वाली हस्तियों और कंपनियों से समर्थन वापस ले लिया जाता है। इसमें किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा किए गए कथित गलत काम के खिलाफ लोगों द्वारा खूब प्रतिक्रिया दी जाती है।

तकनीकी और सोशल मीडिया से अब यह संभव हो गया है कि हमारी गलतियां महज कुछ घंटों में बड़े पैमाने पर ऑडियंस तक पहुंच जाएं। एक बार ऐसा हुआ तो फिर बच्चा, जज और ज्यूरी बने अपने सहपाठियों के रहम पर निर्भर हो जाता है। ‘कैंसल करना’ सजा का एक रूप हो गया है।

समर्थन वापसी के इस आह्वान को लोगों में फैलाने के लिए सोशल मीडिया एक ताकतवर औजार के तौर पर काम करता है। इस समर्थन वापसी का सीधा नतीजा यह होता है कि लोग ‘कैंसल’ किए गए व्यक्ति या संगठन को फॉलो करना, उससे कुछ खरीदना या जुड़ना बंद कर देते हैं।

मुझे यह घटना तब याद आई, जब एक छात्र ने मुझसे कहा कि ‘मुझे मेरे टीचर ने कैंसल कर दिया।’ मैंने उस छात्र से ठीक वैसे ही दो सवाल पूछे, जैसे ‘द केस फॉर कैंसलिंग कल्चर’ के लेखक अर्नेस्ट ओवेन्स ने अपने भाई से पूछे थे। पहला, ‘क्या तुमने वही किया जैसा वो बता रहे हैं?’ उसके भाई ने कहा, ‘हां।’ दूसरा सवाल, ‘और क्या तुमने यह कहते हुए कोड ऑफ कंडक्ट पर दस्तखत किए कि अब तुम वो नहीं करोगे जो तुमने किया?’

उसके भाई ने फिर कहा, ‘हां।’ अर्नेस्ट ने भाई को गले लगाया और कहा, ‘तुम कैंसल नहीं किए गए हो, बस तुमने वह नहीं किया- जो तुम्हें करना चाहिए था।’ युवा सोशल मीडिया पर समय बिताते हैं और उन्हें स्माइली और थम्स-अप जैसे आइकन पसंद हैं। जब उन्हें वांछित अटेंशन नहीं मिलती या सहपाठी उनका बहिष्कार करते हैं तो इसे ‘कैंसल कल्चर’ कहते हैं।

विशेषज्ञों का सुझाव है कैंसल कल्चर से प्रभावित बच्चों को संभालने के लिए माता-पिता को खुले संवाद व सहानुभूति को बढ़ावा देना चाहिए। ऑनलाइन कॉन्टेंट और पोस्ट के बारे में समझ को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें डिजिटल लिटरेसी सिखानी चाहिए।

स्कूलों में जिम्मेदार और रचनात्मक सार्वजनिक व्यवहार विकसित करने के लिए उन्हें मदद की जरूरत है। माइंडफुल कॉन्टेंट क्रिएशन में भी उन्हें मदद चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है- ‘यदि आपका बच्चा सीधे तौर पर कैंसलेशन में शामिल है तो नपी-तुली प्रतिक्रिया दें। यदि चिंता या अवसाद पैदा हो तो पेशेवरों की सहायता लें।

फंडा यह है कि जैसे किसी सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही सोशल मीडिया का एक पहलू ‘कैंसल कल्चर’ है। हमारे बच्चों को इस बारे में जागरूक करना होगा, ताकि वे खुद को इसका शिकार होने से बचा सकें।

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL