Monday 13/ 10/ 2025 

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संघ के 100 साल: गौहत्या के खिलाफ किसी भी हद तक जाने को तैयार थे हेडगेवार – rss 100 years cow protection movement congress doctor hedgewar history ntcpsm

डॉ केशव बलिराम हेडगेवार को उनके परिजन, मित्र सभी केशव ही कहते थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आने के बाद वो सबके लिए डॉक्टरजी हो गए. उनके पिता बलिराम हेडगेवार शास्त्रों के ज्ञाता थे. घर में एक गाय भी थी, जो उनके तीन भाइयों, तीन बहनों वाले परिवार की दूध-दही की जरूरतें पूरा करती थी. घर में होने वाली गोपूजा के चलते केशव के मन में गाय के प्रति बचपन से ही श्रद्धा का भाव था. बाद में यही गोप्रेम उनके कांग्रेस से अलगाव और अलग संगठन खड़ा करने की वजहों में से एक बना.

1 अगस्त 1920 को लोकमान्य तिलक की मौत के बाद कांग्रेस में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया था. मराठी जनसामान्य तो मानो अनाथ ही हो गया था. गांधीजी ने अली बंधुओं से हाथ मिलाकर खिलाफत आंदोलन के समर्थन का ऐलान कर दिया था. नागपुर में मुसलमान अचानक से गाय को काटने के अपने अधिकारों पर जोर देने लगे थे. यही नहीं मस्जिद के आसपास कोई संगीत बजाता था, या गाजे-बाजे के साथ बारात निकालता था, तो वे उसे रोक देते थे.

जब कांग्रेस अधिवेशन में डॉक्टर हेडगेवार ने उठाया गौरक्षा का मुद्दा 
ऐसे हालात में 1920 में नागपुर में ही कांग्रेस अधिवेशन हुआ. केशव उसकी स्वागत समिति में थे. अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए विजय राघवाचारी का नाम उछला. हेडगेवार इसके खिलाफ थे. उनका कहना था कि जलियांवाला बाग कांड के दौरान जब देश आक्रोशित था, तब विजय मद्रास के ब्रिटिश गर्वनर की चाय पार्टी में गए थे. इससे पहले डॉक्टर मुंजे के साथ हेडगेवार, तिलक के विकल्प के तौर पर अरविंदो घोष से मिलने पांडिचेरी भी गए थे, लेकिन क्रांतिकारियों के जगत से आध्यात्म की दुनिया में रम चुके महर्षि अरविंदो ने मना कर दिया.

हालांकि, विजय राघवाचारी अध्यक्ष चुने गए तो हेडगेवार ने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया. इस अधिवेशन में पूरी कांग्रेस बंटी हुई थी. गांधीजी के प्रभाव के चलते खिलाफत का प्रस्ताव तो पारित हो गया, लेकिन विजय राघवाचारी के अध्यक्षीय सम्बोधन से मीडिया भी समझ नहीं पाई कि वो असहयोग के समर्थन में हैं या नहीं.

इस अधिवेशन से पहले हेडगेवार, मुंजे और उनके कई सहयोगी मिलकर भारत सेवक मंडल और नागपुर नेशनल यूनियन जैसे दो संगठन खड़े कर चुके थे. उन सभी मित्रों ने अधिवेशन से पूर्व गांधीजी के सामने एक प्रस्ताव रखा. नरेंद्र सहगल अपनी पुस्तक ‘भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ में लिखते हैं कि डॉ हेडगेवार और उनके कांग्रेसी मित्रों ने ‘पूर्ण स्वतंत्रता ही हमारा उद्देश्य है’ तैयार करके गांधीजी के सामने रखा. परंतु गांधीजी ने विनम्र भाव से इतना कहकर इसे खारिज कर दिया कि ‘स्वराज्य में पूर्ण स्वतंत्रता का समावेश है’. उसी अधिवेशन में कांग्रेस का संविधान बनना था. 

डॉक्टर हेडगेवार ने कांग्रेस अधिवेशन में रखा था गौ हत्या रोकने का प्रस्ताव (Photo: AI Generated)

विषय समिति की बैठक में डॉ हेडगेवार ने कांग्रेस के उद्देश्य के संबंध में एक और प्रस्ताव रखा, ‘भारतीय गणतंत्र की स्थापना करना और पूंजीवादी अत्याचारों से राष्ट्रों को मुक्त करना’. ध्यान रहे कि इस प्रस्ताव के 9 साल बाद जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण आजादी का प्रस्ताव लाहौर अधिवेशन में पारित करवाया था.

हेडगेवार और उनके सहयोगियों के एजेंडे में उस वक्त गौ हत्या रोकने का भी विषय था. नरेंद्र सहगल लिखते हैं कि जब ये विषय आया तो कहा गया कि इससे मुसलमानों की भावनाएं दुखी होंगी, अत: कांग्रेस इस प्रश्न को अपने हाथ में नहीं लेगी. इसकी बजाय मुस्लिम संस्थाओं से गोवध के विरोध में प्रस्ताव दिलवाए गए.
इसका जिक्र हुआ अधिवेशन के 16वें प्रस्ताव ‘प्रोटेक्शन ऑफ कैटल’ में और इस प्रस्ताव में मुस्लिम संस्थाओं की तारीफ करते हुए कहा गया, “Resolved that this Congress tenders its thanks to the Muslim Associations for their resolutions against Cow Slaughter”. यानी कांग्रेस ने गौवध पर अपना कोई प्रस्ताव पास नहीं किया और श्रेय मुस्लिम संस्थाओं को दे दिया.

2017 में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी नागपुर में कहा था कि, “गोवंश वध को रोकने के लिए नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में डॉ हेडगेवार ने प्रस्ताव रखा था”. हालांकि अस्वीकार होने के बाद डॉ हेडगेवार और उनके मित्रों को इस बात से गहरा धक्का लगा था. माना जाता है कि इस घटना ने ही संघ जैसा संगठन खड़ा करने का विचार उनके मन में रोप दिया था.  

गौवध को लेकर हेडगेवार ने अपना अभियान बंद नहीं किया. दो साल बाद 1922 में, बालाघाट में कांग्रेस की दो दिन की बैठक की अध्यक्षता करते हुए डॉ हेडगेवार ने कांग्रेसियों को लामबंद करते हुए स्वदेशी, ग्राम पंचायत, खादी के साथ-साथ गोवध के विरोध में प्रस्ताव पारित करवाए. बाद में गांधीजी ने भी कहा कि मेरे लिए गोहत्या रोकना उतना ही जरूरी है जितना स्वराज लाना.

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जब केशव ने कसाई से गाय को बचाया
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान डॉ हेडगेवार ने जंगल सत्याग्रह में हिस्सा लेने का ऐलान किया. 14 जुलाई 1930 को वो साथियों सहित रेल से वर्धा पहुंचे. यवतमाल में उनको आंदोलन की कमान 21 जुलाई से संभालनी थी. तब तक वो पुसद पहुंच गए, जो पहले पुष्पवंती कहलाता था. पुस नदी के किनारे बसा हुआ पुसद यवतमाल जिले का आदिवासी इलाका है.

गौरक्षा के लिए कांग्रेस में रहते हुए भी प्रतिबद्ध थे डॉक्टर हेडगेवार (Photo: AI Generated)

एक दिन सुबह डॉ हेडगेवार नदी से नहाकर आ रहे थे, तो दो मुस्लिम लड़कों को एक गाय ले जाते देखा. उन्होंने पूछा कि कहां ले जा रहे हो? लड़कों ने कहा थोड़ी देर बार इसे यहीं बाजार में काटेंगे? खुले में गाय काटने की बात सुनकर हेडगेवार हैरान रह गए और बोले कि इसको कितने में लाए हो? उन्होंने बताया कि 12 रुपये में. डॉ हेडगेवार ने कहा कि मुझसे इसकी कीमत ले लो और इसे छोड़ दो. लेकिन वो राजी नहीं हुए. बोले कि इसका मांस बेचकर 25 से 30 रुपये कमाएंगे तो हेडगेवार ने कहा, मैं इतने पैसे तुम्हें दे दूंगा, इसे छोड़ दो. लेकिन वो राजी नहीं हुए. इधर भीड़ जुटती गई, कुछ स्वयंसेवक भी आ गए और स्थानीय मुस्लिमों की भीड़ भी.

हेडगेवार ने गाय को पकड़कर कहा कि इसे काटोगे तो मुझे भी काटना पड़ेगा. कुछ समझदार मुस्लिम उन्हें समझाने लगे कि आप तो सत्याग्रह के लिए आए हो, कहां इस छोटे से मुद्दे में पड़ गए, यहां तो रोज गाय कटती हैं. हेडगेवार बोले, आपके लिए होगा ये छोटा मुद्दा, मेरे लिए तो सत्याग्रह और गोमाता दोनों बराबर के मुद्दे हैं. इतने में पुलिस वहां आ गई. इंस्पेक्टर ने दोनों पक्षों को धमकी दी कि अगर आपस में समझौता नहीं किया तो मुझे दोनों पक्षों को गिरफ्तार कर थाने ले जाना पड़ेगा.

धमकी काम कर गई, मुस्लिम लड़के फौरन मान गए कि हम 30 रुपए में गाय देने को तैयार हैं. हेडगेवार खुशी खुशी वो गाय लेकर आ गए और एक स्थानीय गोशाला को दे दिया. धीरे-धीरे पूरे शहर में ये खबर फैल गई और तमाम संगठनों ने डॉ हेडगेवार का नागरिक अभिनंदन किया.

पिछली कहानी: आसान नहीं थी संघ गणवेश की मूल कमीज, टोपी, बेल्ट और जूतों की विदाई

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