Monday 13/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – To find happiness, you need to be present in the moment | एन. रघुरामन का कॉलम: खुशी पाने के लिए वर्तमान में मौजूद रहना जरूरी है

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30 मिनट पहले

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एन. रघुरामन,  ​​​​​​मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, ​​​​​​मैनेजमेंट गुरु

भगवान कृष्ण, जिन्हें हम ठाकुर जी भी कहते हैं, उन्हें सुबह 7:30 बजे ‘श्रृंगार आरती’ के समय सुंदर वस्त्र–आभूषण पहनाए जाते हैं। यह परंपरा आस्था के साथ ही एक अटूट मान्यता का हिस्सा भी है कि हम अधिकांश भारतीय अपने भगवान को एक जीवित व्यक्ति की तरह मानते हैं। ये वस्त्र मौसम के अनुसार बदलते भी हैं।

जैसे, सर्दियों में गर्म ऊनी कपड़े और गर्मियों में हल्के सूती वस्त्र। जन्माष्टमी और होली जैसे विशेष त्योहारों पर विशेष वस्त्र भी पहनाए जाते हैं। हर दिन शयन से पहले भगवान रात्रि वस्त्र पहनते हैं। वस्त्र बदलने की यह प्रथा अधिकतर मंदिरों की संस्कृति है। लेकिन दक्षिण भारत और मथुरा-वृंदावन में यह खास तौर पर नजर आती है, जहां ‘पोशाक’ कहे जाने वाले इन वस्त्रों के निर्माण से अर्थव्यवस्था भी संचालित होती है।

बांके बिहारी मंदिर (भगवान कृष्ण का एक नाम) जाने वाले हम में से अधिकतर को शायद यह याद नहीं होगा कि जिस दिन हमने दर्शन किए, उस दिन उन्होंने कौन से वस्त्र पहने थे। क्योंकि तब शायद हमारा मन उनसे बातचीत कर अपनी समस्याएं बताने, इच्छित फल का आशीर्वाद पाने या उनके प्रति कृतज्ञता जताने का होता है।

लेकिन हम में से अधिकांश उनसे यह कहना भूल जाते हैं कि वे कितने मनमोहक लग रहे हैं।‘ अरे मिस्टर रघुरामन, आपको क्या लगता है कि भगवान हम इंसानों की तारीफ का इंतजार कर रहे हैं?’

मुझे पता है कि कुछ लोगों का मन ऐसा सवाल पूछ रहा होगा। हमारी ऐसी सोच इसलिए हो सकती है, क्योंकि मंदिर में भीड़ हमें धक्का मार रही होती है। या फिर, हमारे पास दर्शन के लिए केवल एक दिन ही होता है और हम यह सोच रहे होते हैं कि इतने कम समय में हम क्या–क्या कर सकते हैं?

चेन्नई में हिन्दू अखबार के एक रिटायर फोटोग्राफर के बारे में जानने से पहले मैं भी ठीक ऐसे ही सोच रहा था। वह फोटोग्राफर रोजाना सुबह 7:30 बजे से पहले कृष्ण जन्मभूमि मंदिर (केजेबी) के गर्भगृह के बाहर डेरा डाले रहते थे। वह श्रृंगार आरती के दर्शन करते और मंदिर प्रशासन की अनुमति से विविध पोशाकों में भगवान की सुंदरता कैमरे में रोज कैद करते थे। उन्हें कई लोगों ने एक बड़े–से डीएसएलआर कैमरे के साथ दर्शन खुलने की प्रतीक्षा करते देखा था।

मुझे ये घटनाएं तब याद आईं जब मैं इस रविवार को कुछ हॉस्टल छात्रों से मिला। उन्होंने मुझसे कहा कि ‘यह रविवार इस साल का सबसे बोरिंग रविवार है और अगला रविवार सबसे रोमांचक होने वाला है।’ विश्वविद्यालय के हरे-भरे बगीचे की घास पर चलते हुए वे अगले रविवार के बारे में सोच रहे थे, जिसे वे दीपावली की छुट्टियों के कारण अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बिताने वाले हैं।

और इसी चक्कर में वे उनके मौजूदा रविवार का भी आनंद नहीं ले रहे थे। मैं उन्हें दोष नहीं दे रहा। सड़क पर चलते हम में से बहुत–से लोग दिमाग का बहुत छोटा हिस्सा वर्तमान में लगाते हैं। अधिकतर या तो भविष्य की योजना बनाते हैं, या फिर अतीत पर पछतावा करते हैं। यह हमें हर गुजरते पल का अद्भुत अनुभव लेने से रोकता है।

यदि आप कैंपस में अकेलापन महसूस कर रहे हैं, तो ये तीन चीजें करें।

1. खुद से बात करें। भावनाओं से भागने की कोशिश ना करें। यह जानने की कोशिश करें कि भावना आपसे क्या कह रही है।

2. समीप के पार्क में टहलें। घास को महसूस करें। किसी पेड़ की छाया या धूप में बैठें। लोगों को देखें और संगीत सुनें।

3. पूजा स्थलों पर जाएं। समाजसेवा करें या स्टोर में एक दिन का गिग जॉब करें।

फंडा यह है कि मैंने कहीं पढ़ा है कि ‘इनलाइटमेंट’ आपके दो विचारों के बीच का स्थान है। इसका मतलब है कि खुशी ऐसी चीज नहीं, जो आप कई साल बाद महसूस करेंगे। यह कुछ ऐसा है, जिसे आप आज ही पल–पल हासिल कर सकते हैं। और, हर एक दिन कुछ प्रतिशत खुशी या ‘इनलाइटमेंट’ इसमें जुड़ता जाता है।

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