N. Raghuraman’s column – ‘Re-connect’: Gen-G has invented a new way to connect without phones | एन. रघुरामन का कॉलम: ‘री-कनेक्ट’ : जेन-जी ने निकाला बिना फोन के आपस में जुड़ने का नया तरीका

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- N. Raghuraman’s Column ‘Re connect’: Gen G Has Invented A New Way To Connect Without Phones
1 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
सेंट्रल एम्स्टर्डम के एक चर्च में 2024 में 200 से अधिक लोग एकत्र हुए, लेकिन वे वहां किसी धार्मिक कार्यक्रम में नहीं आए थे। 400 साल पुराने विशाल प्रोटेस्टेंट चर्च में वे इसलिए आए, ताकि डिजिटल दुनिया से थोड़ी राहत पा सकें। चर्च में पत्थर के फर्श पर रंगीन तकियों पर बैठकर, गोल्डन शैंडलियर और ऊंची छत के नीचे प्रतिभागियों ने कुछ पढ़ा और स्केच किया।
कुछ लोगों ने छोटे समूह बनाकर पट्टीनुमा बड़े कागजों पर रंग भरे और बातचीत की। कुछ अन्य बस यहां-वहां टहले। यह दृश्य लगभग एक कार्यस्थल जैसा था, बस वहां लैपटॉप और फोन नहीं थे। आयोजकों द्वारा ‘डिजिटल डिटॉक्स हैंगआउट’ कहे गए इस इवेंट के वीडियो वायरल हो गए।
शायद यह बताता है कि आज एक साथ इकट्ठा होकर समय बिताना कितना असामान्य हो गया है। उसी साल फरवरी में लॉन्च हुए इस समूह ने पहले बिना इंटरनेट वाले ‘रीडिंग वीकेंड’ आयोजन शुरू किए। लेकिन संस्थापक शहर को डिजिटल-फ्री अनुभव देना चाहते थे, ताकि लोग इन्हें अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकें।
हालांकि, इस वायरल वीडियो का छात्र समुदाय में तो कोई असर नहीं पड़ा। कैम्पस के इलाकों में विद्यार्थियों को देखें। लंच टाइम में लैपटॉप और टैबलेट उनके साथी हैं। नींद के अलावा 16 घंटे तक ईयरबड्स उनके साथ रहते हैं। कभी-कभी बच्चे जब थककर सो जाते हैं तो माताएं उनके कानों से इन्हें निकालती हैं। कॉलेज जाने वाले युवाओं को देखें तो वे लगभग हर वक्त मोबाइल फोन अपने हाथों में कस कर पकड़े रहते हैं।
लेकिन उन्होंने समस्या का हल ढूंढ लिया है। यह समाधान है ‘री-कनेक्ट’। जी हां, यह संगठन खास तौर से लोगों के लिए इवेंट और रिट्रीट आयोजित करता है, ताकि वे तकनीकी से दूर होकर असल जीवन के संवाद में शामिल हो सकें। ‘री-कनेक्ट’ और इसके जैसे अन्य कार्यक्रम डिजिटल डिटॉक्स और इन-पर्सन कम्युनिटी को बढ़ावा देने की व्यापक पहल का हिस्सा हैं।
एक विशेष ‘री-कनेक्ट’ कार्यक्रम में सामूहिक आर्ट प्रोजेक्ट, लाइव म्युजिक सुनना, समूह अध्ययन व चर्चा और डिजिटल भटकाव के बिना सार्थक बातचीत जैसी गतिविधियां शामिल होती हैं। सेंट्रल फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के 22 वर्षीय विद्यार्थी सीन किलिंग्सवर्थ द्वारा स्थापित यह आंदोलन पहले ही अमेरिका के चार प्रांतों के कई स्कूलों में फैल चुका है।
यह कैसे काम करता है? एक दोपहर में लगभग 40 छात्र अपने डिवाइस ‘फोन वैलेट’ को सौंपने के बाद एक साथ आते हैं। जैसे फाइव स्टार होटलों में कार वैलेट होता है, वैसे ही यहां फोन वैलेट आपके डिवाइस एकत्रित करता है। सभी छात्रों को कंबलों पर आलथी-पालथी मारकर अगला एक घंटा बिना किसी स्क्रीन के बिताने की तैयारी करनी होती है।
कई छात्र पहले आई-कॉन्टेक्ट और फिर छोटी-मोटी बातचीत से शुरुआत करते हैं। कुछ असहज भी होते हैं और स्क्रॉल करने के लिए कुछ तलाश करते हैं। पहले वे अपने टैटू और पालतू जानवरों जैसे टॉपिक से शुरू करते हैं और धीरे-धीरे बातचीत दिलचस्प हो जाती है। अंत तक वे एक-दूसरे को भलीभांति जान लेते हैं और उन्हें महसूस होता है कि बातचीत करना उतना मुश्किल नहीं, जितना वो सोचते हैं।
यह आंदोलन धीरे-धीरे एक नया रूप ले रहा है। री-कनेक्ट के प्रतिभागी अब हाइकिंग के लिए इकट्ठा हो रहे हैं। इसके बाद कुकआउट होता है। कुछ कलाकृति बनाते हैं, तो कुछ मेडिटेशन करते हैं। ऐसी गतिविधियों से अंतत: छात्र कैम्पस के कमरों से निकलने लगे हैं, अन्यथा वे मेस का खाना खाकर बिस्तरों पर लोटते रहते।
इस मामले में जब उनकी राय पूछी गई तो किशोरों ने बताया कि डिवाइस से ब्रेक लेकर उन्हें अच्छा लग रहा है। प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन में पाया गया कि 75% किशोरों ने उस वक्त खुशी और शांति महसूस की, जब उनके पास स्मार्टफोन नहीं था। शेष ने स्वीकारा कि इससे उन्हें चिंता, परेशानी और अकेलापन महसूस हुआ। भारत के विश्वविद्यालयों को भी दीपावली की छुट्टियों से लौटने पर अपने युवा ऑडियंस के लिए डिजिटल डिटॉक्स के तरीके तलाशने चाहिए।
फंडा यह है कि यदि आप जेन-जी हैं तो वास्तविक दोस्तों के साथ स्क्रीन के बजाय आमने-सामने बैठकर ‘री-कनेक्ट’ करने का तरीका ढूंढें। आपको अंतर दिखेगा।
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