Saturday 18/ 10/ 2025 

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Column by Shlomo Ben-Ami – Who won in Gaza despite the long battle? | श्लोमो बेन-एमी का कॉलम: इतनी लंबी लड़ाई के बावजूद गाजा में किसकी जीत हुई?

33 मिनट पहले

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श्लोमो बेन-एमी इजराइल के पूर्व विदेश मंत्री और आंतरिक सुरक्षा मंत्री      - Dainik Bhaskar

श्लोमो बेन-एमी इजराइल के पूर्व विदेश मंत्री और आंतरिक सुरक्षा मंत्री     

नेतन्याहू ने गाजा में बिना किसी अंत की कल्पना के ही युद्ध शुरू कर दिया था। उनकी पहली चिंता अपनी गठबंधन सरकार को बचाने और भ्रष्टाचार के आरोपों से अपनी रक्षा करने की रही है। यही कारण था कि जहां एक ओर इजराइली सैनिकों ने गाजा के शहरों को मलबे में बदल दिया, वहीं नेतन्याहू ने इजराइल के कानूनों और संस्थानों पर भी चौतरफा हमला किया। और यह सब हमास को नेस्तनाबूद करने के नाम पर किया गया।

लेकिन आज दो साल बाद भी इजराइल की जीत की पूरे भरोसे से घोषणा नहीं की जा सकती। इस युद्ध में कम से कम 60,000 फिलिस्तीनी मारे गए हैं और जो लोग गाजा में बचे हैं, वे एक गम्भीर मानवीय त्रासदी से जूझ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसकी तीखी निंदा की है। दूसरी तरफ इजराइली समाज भी खण्डित हो चुका है और उसके लोकतंत्र की नींव डगमगा गई है।

क्या ही विडम्बना है कि गाजा को तबाह करने वाले इजराइली प्रधानमंत्री एक प्रख्यात इतिहासकार के बेटे हैं। माना कि बेन्ज़ियन नेतन्याहू ने मध्ययुगीन स्पेन में यहूदी जीवन के अंत का अध्ययन यहूदी-विरोधी दृष्टिकोण से किया था और यहूदी इतिहास को होलोकॉस्ट की एक शृंखला के रूप में देखा था। लेकिन उनके बेटे ने इतिहास को समझने में बिल्कुल भी रुचि नहीं दिखाई है। उन्होंने केवल अपने राजनीतिक लक्ष्यों और हितों को आगे बढ़ाने के लिए उसका इस्तेमाल किया है।

नेतन्याहू ने ओबामा द्वारा 2015 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए एक समझौते पर बातचीत की तुलना 1938 में चेम्बरलेन द्वारा नाजी जर्मनी के तुष्टीकरण से की। वे भूल गए कि इजराइल के अपने सुरक्षा प्रतिष्ठान ने ही कभी ईरान परमाणु समझौते का पुरजोर समर्थन किया था।

फिलिस्तीनी राष्ट्रीय आंदोलन को खत्म करने के अपने मकसद को सही ठहराने के लिए नेतन्याहू ने होलोकॉस्ट के विचार के लिए फिलिस्तीनी नेता हज अमीन अल-हुसैनी को जिम्मेदार ठहरा दिया। उन्होंने हमास के 7 अक्टूबर के नरसंहार की तुलना 1941 में पर्ल हार्बर पर हुए हमले से भी की। अलबत्ता इस दर्जे की ऐतिहासिक अज्ञानता दर्शाने वाले नेतन्याहू पहले नेता नहीं हैं।

1948 और 1967 के अरब-इजराइल युद्धों में, और साथ ही 1956 में मिस्र के विरुद्ध युद्ध में भी इजराइल की विजय ने उसके शत्रुओं की बदला लेने की इच्छा को और तीव्र कर दिया था। यही कारण है कि किसिंजर ने 1973 के योम किप्पुर युद्ध को रोक दिया, इससे पहले कि इजराइल की सेना काहिरा तक आगे बढ़ पाती।

उन्हें पता था कि इससे स्थायी शांति की सम्भावना समाप्त हो जाएगी। उनकी चतुराई का ही नतीजा था कि इजराइल और मिस्र ने 1979 में एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए। वास्तव में, पूर्ण विजय एक भ्रम है। जैसा कि वूल्फगैंग शिवेलबुश ने अपनी पुस्तक ‘द कल्चर ऑफ डिफीट’ में बताया है- हारे हुए लोग कभी भी हार की कहानी को स्वीकार नहीं करते। इसके बजाय, वे अपने इतिहास को फिर से लिखते हैं, अपने अतीत का महिमामंडन करने वाले मिथकों को गढ़ते हैं और अपनी हार तक को उचित ठहराते हैं। तब उनके लिए सैन्य पराजय भी सांस्कृतिक और नैतिक श्रेष्ठता का प्रतीक बन जाती है।

इजराइल लगभग दो साल से यही गलती दोहरा रहा है। उसकी सेना ने हमास को कुचलने के लिए गाजा पर कब्जा करके, घरों और अस्पतालों को तबाह करके, और मानवीय सहायता को रोकने की कोशिश की। इसके बावजूद हमास की सैन्य-शक्ति कम भले हुई हो, खत्म नहीं हुई। नेतन्याहू को यह पता होना चाहिए था।

1941 में सोवियत संघ पर नाजियों के आक्रमण का कारण सिर्फ रूसी सर्दी ही नहीं थी; बल्कि स्तालिन की अंतहीन सैनिकों की आपूर्ति को युद्ध में भेजने की क्षमता भी थी। हमास ने भी अपनी संख्या बढ़ाने में सक्षमता को साबित कर दिया है। अगर हमास की दृढ़ता इजराइली सैनिकों का मनोबल तोड़ने के लिए काफी नहीं है तो इजराइल के खिलाफ वैश्विक प्रतिक्रिया निश्चित रूप से काफी हो सकती है। आईडीएफ के भीतर भी आत्महत्याएं बढ़ रही हैं।

नेतन्याहू स्पष्ट रूप से यह समझने में विफल रहे हैं कि आधुनिक युद्ध कई मोर्चों पर लड़े जाते हैं, जिनमें वैश्विक सार्वजनिक मंच और सोशल मीडिया का अराजक भंवर भी शामिल है। और इन क्षेत्रों में इजराइल की हार निर्णायक रही है। क्या ही विडम्बना है कि हाल के सालों के सबसे भयावह आतंकवादी हमलों में से एक का सूत्रधार हमास अब प्रतिरोध का प्रतीक बन गया है।

नेतन्याहू स्पष्ट रूप से यह समझने में विफल रहे कि आधुनिक युद्ध कई मोर्चों पर लड़े जाते हैं, जिनमें वैश्विक सार्वजनिक मंच और सोशल मीडिया का अराजक भंवर भी शामिल है। इन क्षेत्रों में इजराइल की हार निर्णायक रही है।

(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

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