Saturday 25/ 10/ 2025 

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Virag Gupta’s column – Three ways to promote Swadeshi in Digital India | विराग गुप्ता का कॉलम: डिजिटल इंडिया में स्वदेशी को बढ़ावा देने के तीन उपाय

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5 घंटे पहले

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विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील - Dainik Bhaskar

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट के वकील

आईआईटी की पढ़ाई और अमेरिका के अनुभव के बाद श्रीधर वेम्बू ने डिजिटल इंडिया में स्वदेशी का शंखनाद किया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने सभी सरकारी दफ्तरों में जोहो के ऑफिस सुइट के इस्तेमाल का निर्देश दिया है। इसमें वर्ड, नोट टेकिंग और वेब कांफ्रेंसिंग की सुविधाएं शामिल हैं। उनकी सफलता से माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी विदेशी कंपनियों पर भारत की निर्भरता सांकेतिक तौर पर कम हो सकती है।

पीएमओ समेत कई मंत्रियों और 12 लाख सरकारी अधिकारियों के जोहो में ईमेल खाते शुरू हो गए हैं। वॉट्सएप के विकल्प के तौर पर बनाए गए जोहो के अरट्टई स्वदेशी मैसेजिंग एप की भी सराहना जा रही है। लेकिन आत्मनिर्भर भारत को सफल बनाने के लिए कानून सम्मत सहयोग की भी जरूरत है।

1. पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट का पालन : पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट 1993 के कानून के अनुसार सरकारी ईमेल को विदेशी सर्वर में रखना गंभीर अपराध है। इस कानून को लागू करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने 2014 में राष्ट्रीय ईमेल नीति बनाई थी। उसके अनुसार केंद्र के 45 लाख कर्मचारियों को सरकारी कामकाज में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) का इस्तेमाल करना था, लेकिन उसका अभी तक पालन नहीं हुआ। उसके बाद गृह मंत्रालय ने साइबर सुरक्षा के लिए गाइडलाइन जारी की।

उसके अनुसार नियमित कर्मचारियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट स्टाफ, सलाहकार और थर्ड पार्टी स्टाफ सभी पर सरकारी ईमेल के नियम लागू होने चाहिए। कहा जा रहा है कि 12 लाख सरकारी कर्मचारी अब जोहो ईमेल का इस्तेमाल करेंगे। लेकिन शेष सरकारी अधिकारी अभी भी जीमेल जैसी विदेशी सेवा का गैरकानूनी इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं? केंद्र और राज्य के लगभग तीन करोड़ सरकारी कर्मचारियों पर स्वदेशी ईमेल का नियम लागू हो तो जोहो जैसी कंपनियों को कारोबारी सफलता मिलने के साथ साइबर सुरक्षा भी बढ़ेगी।

2. राज्यों का डबल इंजन : संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार टेलीकॉम, साइबर और आईटी से जुड़े विषय केंद्र सरकार और संसद के अधीन हैं। राज्यों के पास भूमि, पुलिस, श्रम, राजस्व और नगर प्रशासन से जुड़े विषयों पर अधिकार हैं। आंध्र प्रदेश में गूगल और अदाणी के सबसे बड़े डाटा सेंटर में चार सालों में 15 अरब डॉलर के निवेश के साथ लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। गृह राज्य मंत्री के संसद में दिए गए जवाब के अनुसार साइबर अपराधों से जुड़े मामलों में राज्य सरकारों को कार्रवाई का अधिकार है।

लेकिन वर्तमान कानूनी व्यवस्था और आईटी इंटरमीडिएरी नियमों में प्रस्तावित संशोधनों से फील्ड अधिकारियों के अधिकारों में कटौती हो सकती है। कानून के तहत अगर थानेदार को एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है तो फिर नियम तोड़ने वाली टेक कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए भी पुलिस और राज्य प्रशासन के पास पर्याप्त अधिकार होने चाहिए।

3. डेटा चोरी पर रोक : ई-कॉमर्स व ड्राइविंग के लिए गूगल मैप अब सबकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है। उसके जवाब में बनाए गए भारतीय एप मैपल्स की आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सराहना की है। एप को डाउनलोड करने के साथ टेक कंपनियां एकतरफा तौर पर मोबाइल का अधिकांश डेटा हासिल कर लेती हैं।भारत में वॉट्सएप के 85 करोड़, इंस्टाग्राम के 48 करोड़ और फेसबुक के 38 करोड़ यूजर्स हैं, जिनके डेटा का मेटा कंपनी एकीकृत तरीके से व्यावसायिक इस्तेमाल कर रही है। भारत की अदालत एनक्लेट (NCLAT या नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल) में वॉट्सएप ने करोड़ों यूजर्स के बहुमूल्य डेटा पर अधिकार का दावा किया है। डेटा की ताकत से मालामाल गूगल, एपल और मेटा कंपनियों के सामने जोहो और मैपल्स जैसी स्वदेशी कंपनियों का व्यावसायिक तौर पर टिकना मुश्किल हो सकता है।

डेटा को गैर-कानूनी तरीके से विदेश ले जाने के आरोप में टिकटॉक और पब्जी जैसे 224 चीनी एप्स पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगाया था। डेटा के गैरकानूनी कारोबार से विदेशी कंपनियों के मालामाल होने के साथ देश की सुरक्षा और सार्वभौमिकता खतरे में पड़ रही है। इसे रोकने के लिए 2023 में बनाए गए डेटा सुरक्षा कानून को तुरंत प्रभाव से लागू करने की जरूरत है। केंद्र के अफसर और मंत्री सरकारी कामकाज और विज्ञापनों में विदेशी एप्स के इस्तेमाल को बंद करें तो सही अर्थों में जोहो जैसे स्वदेशी एप्स के साथ आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा मिलेगा।

  • वॉट्सएप ने करोड़ों यूजर्स के बहुमूल्य डेटा पर अधिकार का दावा किया है। डेटा की ताकत से मालामाल गूगल, एपल और मेटा कंपनियों के सामने जोहो और मैपल्स जैसी स्वदेशी कंपनियों का व्यावसायिक तौर पर टिकना मुश्किल हो सकता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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