संघ के 100 साल: RSS का आयोजन, सरदार पटेल चीफ गेस्ट और कांग्रेस सरकार ने बैन कर दिया कार्यक्रम – rss event sardar patel chief guest congress banned programme sangh 100 years ntcppl

1947 में नवंबर की पहली या दूसरी तारीख थी. पुणे के पास चिंचवाड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक बड़े मार्च और उसके बाद सभा का आयोजन किया. मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे देश के गृहमंत्री सरदार पटेल. लेकिन एक दिन पहले ही बॉम्बे (अब महाराष्ट्र) की सरकार की तरफ से आदेश आता है कि इस सभा पर प्रतिबंध लगाया जाता है, इसलिए इसे रद्द कर दें. 5-7 हजार स्वयंसेवक फिर भी इकट्ठा हुए और पुलिस की अपील के बाद शांति से चले भी गए. उन दिनों वहां कांग्रेस की सरकार थी, और मुख्यमंत्री थे बीजी खेर. इस प्रतिबंध के समर्थन या विरोध में कभी सरदार पटेल या उनके कार्यालय की तरफ से कोई संदेश नहीं आया.
बॉम्बे की सरकार ने प्रतिबंध के पीछे की वजह बताई कि विभाजन के बाद हिंदू-मुस्लिम हालात बेहद तनावपूर्ण हैं और संघ के इस कार्यक्रम के चलते आस पास के इलाकों में स्थिति बिगड़ सकती है. लेकिन बॉम्बे सरकार का दूसरा आदेश जो अगले महीने आया, उससे जाहिर हो गया कि कांग्रेस की सरकारें संघ की बढ़ती हुई ताकत को देखकर परेशान हैं.
‘स्वयंसेवक हो तो सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी’
कांग्रेस की बॉम्बे सरकार ने 24 दिसम्बर 1947 को आदेश निकाला कि, “सरकारी नौकरियों में संघ के स्वयंसेवकों को नौकरियां नहीं दी जाएंगी”. ये आदेश संघ के लिए हैरान कर देने वाला था, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि आजाद भारत में उनको अपनी ही सरकारें इस तरह खत्म करने का काम करेंगी. सबको अंदाजा था कि स्वयंसेवकों को सरकारी नौकरियों से वंचित किया तो कोई मां अपने बच्चों को संघ की शाखा में नहीं आने देगी.
आजादी के आंदोलन में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने केवल उन लड़कों को लंदन की फैलोशिप दी थी, जिन्होंने ये लिखकर दिया था कि वो डिग्री लेने के बाद अंग्रेजों की नौकरी नहीं करेंगे, सावरकर भी उनमें शामिल थे.
लेकिन यहां उलट हो रहा था, भारतीयों की सरकार ही नौजवानों को नौकरियां देने से मना कर रही थी. जब चिंचवाड़ के कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा तो संघ ने उस प्रतिबंध को तोड़ने की कोशिश नहीं की. हां, विरोध में गुरु गोलवलकर की सभा महाराष्ट्र के 13 अलग-अलग स्थानों पर आयोजित कर दी. किसी भी सभा में गोलवलकर ने प्रतिबंध को लेकर एक शब्द तक नहीं कहा. नवंबर 1947 में ही दिल्ली में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में संघ पर सख्ती बरतने का फैसला लिया गया. उसमें बॉम्बे की सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों पर प्रतिबंध बड़ा फैसला था.
पंजाब में गांधी हत्या से 6 दिन पहले लगा प्रतिबंध
23-24 नबंबर 1946 को मेरठ में कांग्रेस के डायमंड जुबली अधिवेशन में भी कांग्रेस के नेताओं ने संघ को लेकर चिंताएं जताईं. यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने अधिवेशन से पहले अक्तूबर में ही संघ को चेतावनी जारी कर अधिवेशन का विषय तय कर दिया था. पंत ने कहा था कि यूपी में मिलीशिया स्टाइल की ट्रेनिंग नहीं चलने देंगे. फिर इस अधिवेशन के बाद दिसम्बर 1947 में नेहरूजी ने सारे प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र भेजा, जिसमें संघ को ‘नाजी स्टाइल की निजी आर्मी’ बताया. गौरतलब है कि ये सब गांधीजी की हत्या से पहले की बंदिशें हैं. गांधीजी की हत्या से ठीक 6 दिन पहले यानी 24 जनवरी 1948 को पंजाब सरकार ने संघ और मुस्लिम नेशनल गार्ड्स दोनों पर अगले चार दिन के लिए प्रतिबंध लगा दिया.
RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी
गांधीजी की हत्या से पहले अभी तो संघ के खिलाफ सबसे बड़ा एक्शन बाकी था. प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का बयान तो आ गया लेकिन एक्शन होता उससे पहले ही गांधीजी की हत्या हो गई. ये 29 जनवरी 1948 की बात है, जब नेहरूजी पंजाब के दौरे पर थे, उससे एक दिन पहले यानी 28 जनवरी को वह तीन शरणार्थी शिविरों में भाग ले चुके थे. उसी दिन संघ पर पंजाब में लगे प्रतिबंघ की आखिरी तारीख थी. ऐसे में पंजाब के राज्यपाल सर चंदू लाल त्रिवेदी ने प्रतिबंध को आगे नहीं बढ़ाया और संघ से प्रतिबंध हट गया. चंदू लाल सिविल सेवा से थे और पहले अंग्रेजों के, बाद में नेहरूजी के प्रिय बन गए थे. अंग्रेजों ने उन्हें नाइटहुड, सर जैसी ढेरों उपाधियां और गर्वनर का पद दिया तो नेहरूजी ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष और पदमविभूषण जैसे सम्मान दिए.
जब नेहरूजी ने कहा, “RSS को उखाड़ फेंकूंगा
संघ से प्रतिबंध हटाने की बात सुनकर नेहरूजी उस दिन गुस्से में थे. इधर संघ वाले खुश थे कि उन पर पंजाब में लगा प्रतिबंध हटा लिया गया. सो वे पंजाब के बड़े शहरों में पथसंचलन निकाल रहे थे. गांधीजी की हत्या से ठीक एक दिन पहले पंडित नेहरू ने अमृतसर के राम बाग में एक बड़ी सभा रखी. करीब 50 हजार लोगों की भीड़ थी. शाम पांच बजे से ये सभा रखी गई थी. इधर अमृतसर में किसी पास की शाखा का समय खत्म होने के बाद संघ के 40 स्थानीय स्वयंसेवक पथसंचलन निकाल रहे थे. नेहरूजी ऊंचे मंच पर थे, उनको वो दिख गए. नेहरूजी को उन्हें देखकर गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा, कि “अगर इन लोगों के मार्च ऐसे ही जारी रहे तो मैं भारत की जमीन से RSS को उखाड़ फेंकूंगा”.
कई अंग्रेजी अखबारों ने हैडिंग लगाई “ I will crush RSS”. पंडित नेहरू के इस बयान पर गुरु गोलवलकर कहा, “निश्चित ही हम संघ को कुचलने के इन प्रयासों का विरोध करेंगे. हम किसी की कृपा और दया से इतना बड़े नहीं हुए हैं. सो किसी का विरोध भी हमारे काम को खत्म नहीं कर सकता. संघ के मिशन को ताकत किसी कागज पर लिखे रिजोल्यूशन से नहीं मिली और ना ही ये किसी के कागज पर दिए गए निर्देशों से खत्म होगी”.
पीएन चोपड़ा अपनी किताब ‘सरदार पटेल: मुसलमान और शरणार्थी’ में भारत के रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह के 6 अक्तूबर 1947 को लिखे गए एक पत्र का जिक्र करते हैं, सरदार पटेल को लिखे गए इस पत्र में बलदेव सिंह ने हिंदू सिख लड़कियों की चिंता करते हुए लिखा था कि, “पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में एक भी गांव ऐसा नहीं है, जहां से लड़कियों का अपहरण ना किया गया हो. इन लड़कियों को बचाने के लिए बेहद जरूरी है कि एक गोपनीय मिशन आरम्भ किया जाए. इस गोपनीय मिशन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रशिक्षित स्वयंसेवक देगा. इस बारे में संघ प्रमुख श्री गोलवलकरजी से परामर्श करना चाहिए”.
और इस पत्र के 11 दिन बाद 17 अक्तूबर को देश के गृहमंत्री सरदार पटेल की पहल पर संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर कुछ वरिष्ठ संघ अधिकारियों के साथ श्रीनगर की फ्लाइट लेते हैं, मिशन था राजा हरि सिंह को भारत में विलय के लिए राजी करना. वो इसमें सफल भी होते हैं.
प्रखर श्रीवास्तव की किताब ‘हे राम’ संघ को लेकर उस वक्त की साजिशों की दिशा में दो और पत्रों का उल्लेख करती है. 30 दिसम्बर 1947 को पंडित नेहरू ने सरदार को एक पत्र लिखा कि, “मुझे नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता गुलाम मुहम्मद बख्शी ने एक बड़ी ही चिंताजनक सूचना टेलीफोन पर दी है कि हमने जो हथियार उन्हें भेजे थे, वो संघ के कार्यकर्ताओं को बांट दिए गए हैं. जम्मू खतरे में है और बख्शी के होमगार्ड्स बिना हथियारों के लड़ रहे हैं, कई की जान भी जा चुकी है. मुझे लगता है कि बख्शी के होमगार्ड्स की कीमत पर आरएसएस की मदद की जा रही है”. लेकिन पटेल उनसे सहमत नहीं हुए, उन्होंने उसी दिन पंडित नेहरू को एक पत्र भेजकर अपनी असहमति जताई.
पटेल ने इस पत्र में लिखा कि, “गुलाम मुहम्मद बख्शी कल पूरे दिन मेरे साथ थे, उन्होंने हथियारों के बारे में मुझे कुछ नहीं बताया. न ही बख्शी ने मुझे आरएसएस की गतिविधियों के विषय में बताया. आसएसएस ने अपने शुरूआती दिनों में जो भी किया हो, लेकिन अब उनके खिलाफ किसी भी तरह के सुबूत नहीं हैं”.
पिछली कहानी: गांधीजी की हत्या, गोलवलकर की गिरफ्तारी और फिर डीआईजी से वो फिल्मी मुलाकात!
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