Tuesday 02/ 12/ 2025 

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Brahma Chellaney’s column: Despite appearing strong, Xi Jinping is beset by insecurities | ब्रह्मा चेलानी का कॉलम: मजबूत दिखने के बावजूद असुरक्षा ​से घिरे हैं जिनपिंग

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9 घंटे पहले

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ब्रह्मा चेलानी पॉलिसी फॉर सेंटर रिसर्च के प्रोफेसर एमेरिटस - Dainik Bhaskar

ब्रह्मा चेलानी पॉलिसी फॉर सेंटर रिसर्च के प्रोफेसर एमेरिटस

अपने 13 वर्षों के शासन के दौरान शी जिनपिंग ने सत्ता के सभी स्तंभों- पार्टी (सीपीसी), राज्य तंत्र और सेना- पर अपनी पकड़ मजबूत की है। समाज के हर पहलू पर निगरानी का विस्तार भी किया है। फिर भी, हाल ही में नौ शीर्ष-रैंकिंग जनरलों की बर्खास्तगी दर्शाती है कि वे आज भी संशय से मुक्त नहीं हुए हैं और उन्हें अभी भी हर जगह दुश्मन दिखाई देते हैं।

2012 में सत्ता संभालने के बाद शी ने सीपीसी और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के भीतर भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। यह अभियान शुरू में लोकप्रिय था, क्योंकि चीन की एकदलीय प्रणाली भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग से भरी है।

लेकिन जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि यह अधिक पारदर्शी या प्रभावी प्रणाली बनाने के लिए नहीं, बल्कि शी के हाथों में सत्ता को मजबूत करने के लिए था। शी के चीन में उन्नति योग्यता या ईमानदारी पर कम और उनका भरोसा अर्जित करने पर अधिक निर्भर करती है।

लेकिन केवल वफादारों को पदोन्नत करने के एक दशक से भी अधिक समय के बावजूद शी नियमित रूप से अधिकारियों को बर्खास्त करते रहते हैं, जिनमें शीर्ष सैन्य कमांडर भी शामिल हैं। अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक कार्यालय के अनुसार, शी के शासनकाल में सरकार के सभी स्तरों पर लगभग पांच लाख अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। उनकी तो बात ही छोड़िए, जो अचानक गायब हो गए।

हुकूमत का दावा है कि हालिया सफाई अभियान में जिन लीडर्स को हटाया गया है- जिनमें पोलित ब्यूरो के सदस्य, केंद्रीय सैन्य आयोग के उपाध्यक्ष और चीन के सैन्य पदानुक्रम में तीसरे सबसे ऊंचे पद पर आसीन जनरल वेइदोंग भी शामिल हैं- उन्होंने अनुशासनात्मक उल्लंघन और कर्तव्य-हनन संबंधी अपराध किए हैं।

लेकिन एक ज्यादा विश्वसनीय व्याख्या यह है कि शी सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश में बेताब होते जा रहे हैं। वैसे उनकी आशंकाएं बेबुनियाद नहीं हैं। क्योंकि इस तरह का हर नया सफाई अभियान चीन के सत्ता-कुलीनों के बीच अविश्वास को गहरा करता है और पूर्व वफादारों के भी दुश्मन बन जाने का जोखिम पैदा करता है।

माओ से लेकर स्टालिन तक, इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि तानाशाही शासन से देर-सबेर लोगों का मन उचट जाता है। अब तक तो शी जिनपिंग सहयोगियों और दुश्मनों में फर्क करने की क्षमता भी खो चुके होंगे। 72 की उम्र में भी वे अपनी स्थिति को लेकर इतने असुरक्षित हैं कि माओ के उलट, उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने से भी इनकार कर दिया है- इस डर से कि एक प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी उनके पतन की प्रक्रिया को तेज कर सकता है।

इनमें से कोई भी बात चीन के लिए शुभ संकेत नहीं है। अंततः नेतृत्व परिवर्तन की नींव रखने से इनकार करके शी जिनपिंग इस जोखिम को बढ़ा रहे हैं कि उनके शासन का अंत राजनीतिक अस्थिरता की शुरुआत करेगा।

इस बीच, वैचारिक अनुरूपता के बजाय व्यक्तिगत निष्ठा पर उनका जोर एक ऐसी व्यवस्था में संस्थागत सामंजस्य को कमजोर कर रहा है, जो कभी सामूहिक नेतृत्व पर आधारित थी। मनमानी बर्खास्तगी और मुकदमों के साथ चीन का शासन अब योग्यता के बजाय चाटुकारिता से परिभाषित होता जा रहा है।

चीन की सेना भी शी की असुरक्षा की भारी कीमत चुका रही है। हाल के वर्षों में पीएलए में व्यापक संरचनात्मक सुधार हुए हैं, जिनका उद्देश्य इसे सूचना-आधारित युद्ध जीतने में सक्षम एक आधुनिक लड़ाकू बल में बदलना है। लेकिन इससे सैन्य योजना और नेतृत्व में बाधा उत्पन्न होने का खतरा है।

उदाहरण के लिए, 2023 में पीएलए के रॉकेट फोर्स- जो चीन की परमाणु और पारंपरिक मिसाइलों के भंडार की देखरेख करता है- के लीडर्स को अचानक हटाने से चीन की रणनीतिक प्रतिरोधक क्षमता खतरे में पड़ सकती है।

अनुभवी कमांडरों की जगह अप्रशिक्षित वफादारों को लाना शी के राजनीतिक अस्तित्व को भले सुनिश्चित करता हो, पर इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को फायदा नहीं होता। क्या शी द्वारा लगाई राजनीतिक सीमाओं के तहत काम करते हुए पीएलए किसी बड़े प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ युद्ध जीत सकती है?

(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

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