Monday 01/ 12/ 2025 

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Minhaj Merchant’s column: The problem of corruption cannot be ignored | मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: भ्रष्टाचार की समस्या को नजरअंदाज नहीं कर सकते

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43 मिनट पहले

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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक - Dainik Bhaskar

मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक

कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार के पतन में टेलीकॉम, कोयला, कॉमनवेल्थ और अगस्ता वेस्टलैंड घोटालों की बड़ी भूमिका थी। लेकिन उसके 11 साल बाद क्या भ्रष्टाचार फिर लौट आया है? बेंगलुरु में बीपीसीएल के सीएफओ के. शिव कुमार को बेटी की मौत के बाद एम्बुलेंस ड्राइवरों से लेकर पुलिस तक और शवदाह गृह स्टाफ से लेकर नगर निगम के अधिकारियों तक हर स्तर पर रिश्वत देनी पड़ी। यह दिखाता है कि स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक फैल चुका है।

इसी तरह पुणे में डिप्टी सीएम अजित पवार के बेटे पार्थ पंवार की कंपनी से जुड़े 300 करोड़ रु. के जमीन सौदे को खुद सीएम देवेंद्र फडणवीस द्वारा रद्द किया गया। लेकिन यह तथ्य कि इस सौदे को मंजूरी दी गई थी, दो बातें दर्शाता है। पहला, राजनीतिक घरानों की बिल्डरों से सांठगांठ। दूसरा, जिस तरह से ऐसे सौदे किए जा रहे हैं, वह दिखाता है कि भ्रष्टाचार लौट रहा है, जिसकी भेंट पिछली कई सरकारें चढ़ चुकी हैं।

हालांकि, रक्षा सौदों और सीधे लाभ की कल्याणकारी योजनाओं में होने वाला बड़ा भ्रष्टाचार काफी घटा है, लेकिन राज्यों में स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। स्थानीय निकायों या सरकारी अस्पतालों में जाएं तो रिश्वत को काम पूरा करने की कीमत माना जाता है।

सुविधा शुल्क देकर आप हफ्तों में मिलने वाले मृत्यु प्रमाणपत्र को चंद दिनों में ही ले सकते हैं। लेकिन छोटे-से भ्रष्टाचार की भी कीमत हमेशा मामूली ही नहीं होती, यह जानलेवा भी हो सकती है। मुम्बई जैसे महानगर में भी हमने सड़क के गड्‌ढ़ों के कारण लोगों की मौत होते देखी है।

कई बार दोपहिया वाहन चालक खतरनाक गड्ढों भरी सड़कों पर हादसों में जान गंवा बैठते हैं। मुम्बई और बेंगलुरु जैसे शहरों में सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार बढ़ा है। प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन के दो साल बाद ही मुम्बई को नवी मुम्बई से जोड़ने वाले 22 किलोमीटर लंबे अटल सेतु के एक हिस्से की मरम्मत करनी पड़ी थी। बिहार में नए-नवेले पुल ढह गए। अभी तक साफ-सुधरी छवि रखने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) में भी खराब हाइवे निर्माण संबंधी शिकायतों की बाढ़ आ गई है।

शहरों में नेताओं, नौकरशाहों और ठेकेदारों के गठजोड़ के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का टेंडर निकाला जाता है। लेकिन ठेकेदार को पहले ही बता दिया जाता है कि टेंडर लेने के लिए बोली कितनी कम रखनी है। दुनिया भर में आम तौर पर सड़कों के लिए डामर इस्तेमाल होता है, लेकिन भारत में सीमेंट-कंक्रीट का टेंडर होता है। यह डामर से पांच गुना महंगा होता है, जिससे कमीशन की गुंजाइश बढ़ जाती है।

मान लें किसी प्रोजेक्ट की लागत 100 करोड़ रु. है। पहले से चुना जा चुका ठेकेदार 70 करोड़ की बोली देता है। ठेका मिलने पर वह अनुबंधित राशि में से 20 करोड़ नेता, अफसर और सलाहकारों के गिरोह को कमीशन देता है।

बचे 50 करोड़ में वह घटिया सामग्री इस्तेमाल कर सड़क-पुल बनाता है। साल भर में इस पर गड्ढ़े हो जाते हैं और नेता-अफसरों को फिर से मरम्मत के नाम पर टेंडर निकालने का मौका मिल जाता है। इसमें टैक्स देने वाला नागरिक ही ठगाता है।

सरकार को ऐसे स्थानीय भ्रष्टाचार के प्रति चिंतित होना चाहिए। 14 नवंबर को बिहार चुनाव का नतीजा चाहे जो हो, लेकिन सभी दलों को ध्यान रखना होगा कि भ्रष्टाचार के चलते ही एक दशक पहले केंद्र और राज्यों में कांग्रेस की सरकारें चली गई थीं। अगर राज्यों और नगरीय निकायों के स्तर पर भ्रष्टाचार नहीं रुका तो इतिहास खुद को दोहरा भी सकता है।

अण्णा आंदोलन ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके मद्देनजर मोदी को भाजपा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। बिहार के बाद बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

इनमें रोजगार, महंगाई और विकास जैसे क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दे बड़ी भूमिका निभाएंगे। जीएसटी और आयकर दरों में कमी के चलते बढ़े उपभोग खर्च ने सरकार को मजबूत मंच दिया है। अब उसे सुनिश्चित करना होगा कि भ्रष्टाचार उसकी बुनियाद को कमजोर ना होने दे।

सरकार को स्थानीय भ्रष्टाचार के प्रति चिंतित होना चाहिए। सभी दलों को ध्यान रखना होगा कि भ्रष्टाचार के चलते ही एक दशक पहले केंद्र-राज्यों में सरकारें गिर गई थीं। अगर राज्यों और नगरीय निकायों के स्तर पर भ्रष्टाचार नहीं रुका तो इतिहास खुद को दोहरा भी सकता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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