N. Raghuraman’s column – Clarity in everything you do is your ‘super-power’ | एन. रघुरामन का कॉलम: आपके हर काम में स्पष्टता ही ‘सुपर-पावर’ है

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7 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
हाल ही मैंने एक रियल एस्टेट कंपनी के मालिक के बाद पहले नंबर के व्यक्ति से मेरे मित्र की ओर से बातचीत की, जिसे उनके द्वारा बनाई जा रही प्रॉपर्टी में रुचि थी। उन्होंने तुरंत फोन उठाया और बिना समय गंवाए मैंने उन्हें अपने दोस्त के बारे में बताया, जो मेरे सामने बैठा था और उनके प्रोजेक्ट में रुचि रखता था। हमने उनसे कुछ जानकारी मांगी। बातचीत को 30 सेकंड ही हुए थे कि मुझे उनके लहजे में मेरी पूछताछ के प्रति कम रुचि दिखी। लेकिन उन्होंने ब्रीफिंग जारी रखी। खुशकिस्मती से उनका एक कॉल आ गया।
उन्होंने बताया कि उनके सीए का कॉल है और वे अपने असिस्टेंट से कहेंगे कि प्रोजेक्ट के बारे में मुझे जानकारी दे। उनके असिस्टेंट ने तुरंत मेरे वॉट्सएप नंबर पर प्रोजेक्ट की डिटेल्स भेज दी। मुझे किसी भी व्यवसाय की एक बात पता है।
बिक्री के लिए संभावित सौदा हासिल कर पाना हमेशा मुश्किल होता है और रियल एस्टेट बिजनेस में तो यह और भी मुश्किल है, क्योंकि उनके प्रोडक्ट की कीमत लाखों में होती है और खरीदार बहुत कम। लगभग तीन दिन बीत गए। कंपनी से उस संभावित अनजान ग्राहक, यानी मेरे दोस्त के बारे में पूछने तक के लिए कॉल नहीं आया, जिसका नाम और नंबर सिर्फ मेरे पास है।
हर बिजनेस को फलने-फूलने के लिए दो चीजों की जरूरत होती है- एक विजन और एक मिशन। आपका विजन यह है कि आप अंतत: दुनिया में क्या हासिल करना चाहते हैं। और मिशन है कि प्रोडक्ट डेवलपमेंट से लेकर कस्टमर कॉल सेंटर और ईमेल्स का जवाब देने तक, हर काम को करते हुए आप कैसे उस विजन की ओर बढ़ते हैं।
कई लोगों को यह सरल लग सकता है। लेकिन ऐसा है नहीं। इस सरलता में बहुत प्रयास करने होते हैं। बहुत-सी कंपनियों में बड़े विजन वाली, ऊर्जावान छोटी युवा टीम संभावित ग्राहकों की तलाश से लेकर पुराने ग्राहकों को बर्थ-डे बुके भेजने तक के अलग-अलग काम करती देखी जा सकती हैं। कंपनी जब युवा हो तो यह भागदौड़ ठीक है। लेकिन जब आप बिजनेस को बढ़ाना चाहते हैं तो हर कोई व्यवसाय के हर पहलू को समझता हो- यह एक समस्या बन जाती है।
अमेजन जैसी सफल कंपनियां हर मीटिंग में एक कुर्सी खाली रखती हैं। यह सभी को याद दिलाती है कि वहां एक ग्राहक बैठा है, और आपका बिजनेस उसके इर्द-गिर्द है। उन्होंने एक सख्त ‘ऑब्जेक्टिव्स एंड-की रिजल्ट्स’ फ्रैमवर्क विकसित किया है, जो हर किसी के हर काम को आकार देता है।
सीनियर लीडरशिप से लेकर नए कर्मचारी तक कोई भी बिना यह जाने ‘जाॅब डन फॉर द डे’ बॉक्स पर टिक नहीं लगा सकता कि उन्होंने जो परिणाम आज दिए हैं, उनसे हासिल क्या होगा। सभी को यह पता होना चाहिए कि उनके काम से कंपनी के भावी उद्देश्य कैसे प्रभावित होंगे या मजबूत होंगे।
आपको क्या लगता है कि प्रत्येक तीर्थयात्री भगवान के रथ को खींचते समय इतना आत्म-प्रेरित क्यों होता है? क्योंकि वे देखते हैं कि हर बार खींचने पर रथ आगे बढ़ रहा है, भले कुछ लोगों ने ना भी खींचा हो। इससे उन्हें अपराधबोध होता है और अगली खींच में वे ज्यादा ताकत लगाते हैं, ताकि रथ पहले की तुलना में इस बार थोड़ा ज्यादा आगे बढ़े। यही तीर्थयात्रियों में जिम्मेदारी का भाव होता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि इसी तरह, जब हर कर्मचारी यह जानता है कि उसके दैनिक काम से कंपनी का व्यापक विजन कैसे प्रभावित होता है तो उनमें ‘ऑनरशिप’ की भावना आती है। क्योंकि जब वे यह देख पाते हैं कि उनके योगदान से कंपनी आगे बढ़ रही है तो कर्मचारियों में स्वत: ही प्रेरणा आती है। कल्पना कीजिए कि पूरे ऑर्गनाइजेशन में सशक्त ‘सुपर पावर’ वाले लोग हों, फिर देखिए क्या बदलाव आता है।
फंडा यह है कि कार्यस्थल पर किसी कर्मचारी में अपने योगदान के परिणाम को लेकर स्पष्टता हो तो यह उसे किसी भी संगठन में एक ‘सुपर-पावर’ बनाता है।
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