Monday 01/ 12/ 2025 

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Ashutosh Varshney’s column: Resistance to Trump in America will now be greater than ever before | आशुतोष वार्ष्णेय का कॉलम: अमेरिका में ट्रम्प का प्रतिरोध अब पहले से अधिक होगा

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10 मिनट पहले

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आशुतोष वार्ष्णेय ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

आशुतोष वार्ष्णेय ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर

पिछले साल हुए चुनाव के बाद से ट्रम्प को जनता की ओर से सबसे बड़ा राजनीतिक झटका जोहरान ममदानी की न्यूयॉर्क मेयर चुनाव में जीत के रूप में मिला है। नतीजों के बाद उन्होंने माना कि यह रिपब्लिकनों के लिए बुरा दिन था। जो हुआ, उसे कैसे समझें?

ममदानी ने सिर्फ मेयर का चुनाव जीता है, कोई राष्ट्रीय चुनाव नहीं। फिर भी उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के अवसर पर नेहरू द्वारा ​​दिए प्रसिद्ध भाषण का हवाला दिया। नेहरू ममदानी के लिए महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। नेहरू की तरह ममदानी भी डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट हैं।

ममदानी और उनके 1,00,000 स्वयंसेवकों ने न्यूयॉर्क के सबसे बड़े राजनीतिक घरानों में से एक एंड्रयू कुओमो के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। तीन बार के राज्यपाल और क्लिंटन की कैबिनेट के सदस्य रहे कुओमो को न्यूयॉर्क के अमीर वर्ग और ट्रम्प का समर्थन था।

जबकि ममदानी के लिए फंडिंग लाखों छोटे डोनेशंस से आई। तमाम मुश्किलों के बावजूद जीतना और 34 की उम्र में नई राजनीतिक सुबह का स्वागत करने के लिए तैयार महसूस करना- यही वह भाव था जिसे ममदानी ने नेहरू के शब्दों से व्यक्त किया।

ममदानी का ताल्लुक भारत से है। वे अपनी राजनीतिक कथा में भारतीय संदर्भों का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं करते। नेहरू के अलावा उनके विजय समारोह में बॉलीवुड संगीत भी शामिल था। उन्होंने खुद को जोर देकर एक मुस्लिम अमेरिकी के रूप में भी प्रस्तुत किया।

इस वजह से चुनाव जीतना और कठिन था, और इसलिए जीत और भी मीठी थी। लेकिन इसमें संदेह नहीं कि नेहरू का संदर्भ भारतीय अमेरिकियों के लिए एक संदेश भी था- जिनमें से अधिकतर मोदी समर्थक हैं। ऐसे में नेहरू का नाम कोई संयोग नहीं था। शायद वे नई पीढ़ी के भारतीय अमेरिकियों के मन में नेहरू को फिर से जीवित करना चाहते हैं।

अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश में समाजवाद कोई सम्मानित शब्द नहीं है। फिर भी ममदानी के प्रस्ताव-फ्री बस सेवा, फ्री चाइल्ड-केयर, किराए पर रोक, 30 डॉलर प्रति घंटे की न्यूनतम मजदूरी- जिन्हें सबसे अमीर व्यक्तियों और कंपनियों पर अधिक कर लगाकर वित्तपोषित किया जाना है, सराहे गए हैं।

इस तरह के समाजवाद को आज की राजनीतिक भाषा में वामपंथी पॉपुलिज्म कहा जाता है, ताकि इसे ट्रम्प के दक्षिणपंथी पॉपुलिज्म से अलग किया जा सके। परंपरागत रूप से समाजवाद का मतलब सरकार नियोजित उत्पादन प्रणाली भी होता था। ममदानी उस दिशा में नहीं जा रहे। उनकी योजना उत्पादन-आधारित नहीं बल्कि कल्याण-आधारित है। वे न्यूयॉर्क को कम और मध्यम-आय वाले परिवारों के लिए भी सुलभ बनाना चाहते हैं।

न्यूयॉर्क अमेरिका का सबसे अमीर और शायद सबसे विश्व-नगरीय शहर है। इसका वार्षिक बजट अमेरिका के केवल चार राज्यों- कैलिफोर्निया, टेक्सस, फ्लोरिडा और न्यूयॉर्क राज्य से ही छोटा है। इसकी एक-तिहाई तक आबादी विदेश में जन्मी है, जो इसे सचमुच अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क वाला शहर बनाती है।

अमेरिका में अभिजात्य विमर्श पर इसका प्रभाव ऐसा है, जैसा किसी और शहर का नहीं। न्यूयॉर्क का मेयर सिर्फ एक स्थानीय नेता नहीं होता, बल्कि राष्ट्रीय और कई लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व भी होता है। कुछ ही वर्षों के अनुभव में न्यूयॉर्क के चुनावों ने ममदानी को बहुत ऊंचे मंच पर खड़ा कर दिया है। उनकी योजनाएं सफल होंगी या नहीं, यह अलग मुद्दा है।

लेकिन एक बात स्पष्ट है। न्यूयॉर्क की राजनीति पूरे देश पर लागू नहीं की जा सकती, लेकिन दो महत्वपूर्ण और अधिक व्यापक रूप से प्रासंगिक राज्यों- न्यू जर्सी और वर्जीनिया में भी डेमोक्रेट्स ने गवर्नर की दौड़ और कई अहम सीटें जीतीं। वर्जीनिया की उप-गवर्नर निर्वाचित उम्मीदवार हैदराबाद में जन्मी गजाला हाशमी हैं।

जॉर्जिया के यूटिलिटी बोर्ड की दो सीटें डेमोक्रेट्स के पास चली गईं। 4 नवंबर की रात के अंत तक यह स्पष्ट नहीं था कि रिपब्लिकन पार्टी कोई भी राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चुनावी जीत हासिल कर पाएगी। ममदानी के विपरीत अन्य जीतों का श्रेय पार्टी के मध्यमार्गी या सेंटरिस्ट नेताओं को जाता है। अगर डेमोक्रेट्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स जीत लेते हैं, तो व्हाइट हाउस की शक्ति पहले जैसी नहीं रहेगी।

ट्रम्प की भारी जीत के एक साल में ही अमेरिका ऐसे राजनीतिक दौर में प्रवेश कर रहा है, जहां दो पार्टियां सक्रिय होंगी, सिर्फ एक नहीं। अब ट्रम्प के रास्ते में राजनीतिक प्रतिरोध पहले से कहीं अधिक होगा। ममदानी की जीत ने यही बताया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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