Monday 01/ 12/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Mothers quarreling over winter uniforms change their ‘school gate uniforms’ | एन. रघुरामन का कॉलम: विंटर यूनिफॉर्म पर झगड़ रही मांओं ने अपनी ‘स्कूल गेट यूनिफॉर्म’ बदल दी

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7 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

सर्दियां शुरू होते ही निजी स्कूलों में यूनिफॉर्म स्वेटर के फरमान को लेकर फिर बहस छिड़ गई है। कई संस्थानों पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वे विद्यार्थियों को खास रंग और डिजाइन का स्वेटर खरीदने को मजबूर कर रहे हैं, जो उनकी बताई गई दुकान पर ही उपलब्ध है।

पैरेंट्स का कहना है कि ऐसा कोई सरकारी आदेश नहीं है कि स्वेटर का रंग-डिजाइन एक तरीके का ही होना चाहिए। कुछ अभिभावक संगठनों ने इसे अनैतिक और शोषणकारी बताया है, शेष चुपचाप यह वजन ढो रहे हैं। हालांकि इस बहस के बीच आपमें से कितनों ने महसूस किया है कि ‘स्कूल गेट यूनिफाॅर्म्स’ भी बदल चुकी हैं।

मिलेनियल्स मदर्स भले यह बहस सुन रही हों, लेकिन उन्होंने चुपचाप अपनी ‘ड्रॉप-ऑफ’ और ‘पिक-अप’ यूनिफॉर्म बदल दी, जैसा हम पिछली पीढ़ी की माताओं में भी देखते रहे हैं। कम से कम मुंबई और दिल्ली में ये बदलाव साफ दिखा।

मैंने हाई-एंड स्कूलों के गेट पर कई माताओं को 13 हजार रुपए कीमत से शुरू होने वाली लुलुलेमन की लेगिंग्स और ब्रांडेड सफेद टी-शर्ट पर ‘पॉश पार्का’ का जिप वाला कोट पहने देखा- जो सर्द मौसम के लिए हुड वाला इंसुलेटेड कोट है।

पैरों में ‘वेजा प्लिमसॉल्स’ के सफेद यूनिसेक्स स्नीकर्स, जिन पर अलग-अलग रंग का छोटा V अक्षर होता है- जो लेगिंग्स और पार्का से मैच करता है। कुछ के कंधे पर योगा मैट लटका होता। लेकिन ये ब्रांड स्टेटस मार्कर्स अब फीके पड़ चुके।

आज की मिलेनियल मदर्स ‘कूल मम्स’ कहलाती हैं। इन कूल मम्स को कोई भी अत्यधिक महंगी या अव्यावहारिक चीज ‘गॉश’ लगती है- यानी ऐसी चीज, जो स्कूल गेट जैसी सामाजिक जगह पर अच्छी नहीं लगती, क्योंकि वहां विभिन्न आर्थिक पृष्ठभूमि के लोग आते हैं। लेकिन ये कूल मम्स जाने-अनजाने जेन-जी से भी कुछ स्टाइल उधार ले रही हैं, ताकि खुद को यकीन दिला सकें कि उनका युवावस्था का उत्साह अभी खत्म नहीं हुआ। इसीलिए उनकी यूनिफॉर्म बदली है। और उनका प्रभाव बढ़ता दिख रहा है।

पहले वाली लेगिंग्स की जगह अब ट्रैक पैंट्स, बैगी, बैरल कट जींस या ट्राउजर्स ने ले ली। पार्का की जगह बेज कलर के ऊपर लंबा हरा या नेवी कलर का ट्रेंच कोट, बॉम्बर जैकेट या फिर रेन्स जैसे स्वीडिश-डेनिश ब्रांड के रेन-गियर पहने जाते हैं। कानों में एयरपॉड्स और छोटे-से डायमंड ईयररिंग्स होते हैं।

ये एयरपॉड्स न सिर्फ उन्हें बाहर की बातें सुनने से रोकते हैं, बल्कि इनसे वो पेरिमेनोपॉज के बारे में पॉडकास्ट भी सुन रही हैं, जो 30-40 वर्ष की उम्र वालों के वॉट्सएप ग्रुप्स में भेजे जाते हैं। आप उन्हें स्कूल गेट पर बच्चों की ओर हाथ हिलाते हुए अपना तिकोना पश्मीना सिल्क स्कार्फ ठीक करते देख सकते हैं। अब योगा मैट नहीं हैं, उनकी जगह स्टाइलिश कॉफी मग ने ले ली है, जिसमें मम्स खुद की बनाई कॉफी पीती दिखती हैं।

इंस्टाग्राम पर कैसिडी क्रॉकेट का @coolmonologue हैंडल है, जो हर सीजन के लिए, खासकर कूल मम्स को स्टाइलिंग टिप्स देता है। उनके हजारों फॉलोअर्स हैं। मुझे याद है दशकों पहले बच्चे मम्मियों से कहते थे कि वे उन्हें बस पर छोड़ने और लेने के लिए रात के कपड़ों पर दुपट्‌टा डाल कर ही ना चली आएं। तब से ही ये ‘ड्रॉप-पॉइंट यूनिफॉर्म’ कई बार बदली। हालांकि सभी आर्थिक वर्गों की मम्मियां कूल मम्स की श्रेणी में नहीं आतीं।

लेकिन मैं स्कूल गेट पर साड़ी पहने खड़ी उन माताओं को मिस करता हूं, जिनसे भागकर आए बच्चे लिपट जाते थे और उनके पल्लू से अपना मुंह पोंछ लेते थे। मां भी डांटने के बजाय पल्लू खींचकर बच्चे के माथे का पसीना पोंछती थीं। आज भी वो दृश्य मेरे मन से नहीं निकलता।

फंडा यह है कि ‘स्कूल-गेट यूनिफाॅर्म’ या ‘ड्रॉप-पॉइंट यूनिफॉर्म’ भले ही बदल गई हों, लेकिन इस फैशन-केंद्रित समाज में भी साड़ी वाली माताएं हमेशा मॉडर्न मानी जाएंगी। अगर आप साड़ी वाली मां हैं तो कोई भी बदलता फैशन आपको प्रभावित नहीं कर सकता। आपको हमेशा प्यार किया जाता रहेगा।

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