Raghuram Rajan’s column – Politicians will have to change their perception towards migrants | रघुराम राजन का कॉलम: राजनेताओं को प्रवासियों के प्रति धारणा बदलनी होगी

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14 मिनट पहले
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रघुराम राजन, आरबीआई के पूर्व गवर्नर
किसी भी राजनेता के लिए अपने नाराज वोटरों को बहलाने की बड़ी आसान रणनीति यह होती है कि उनसे कह दे कि आप बाहरी लोगों के कारण पीड़ित हो। यह तब और आसान हो जाता है, जब नाराज समूह कोई विशिष्ट वर्ग या मतदाताओं का बड़ा वर्ग हो और जिसे दोष दिया जा रहा हो, उस वर्कीग ताकत वोटों के नजरिए से कम हो।
जब तक किसी और पर दोषारोपण संभव है, राजनेताओं को नाराज वोटरों को मनाने के लिए महज इतना भर कहना होता है कि वे उनके उत्पीड़न को समाप्त कर देंगे। जैसा कि अमेरिकी लेखक एचएल मेन्कें कहते हैं- हर जटिल समस्या के लिए एक ऐसा उत्तर मौजूद है, जो कि साफ, सरल और गलत हो!
उदाहरण के लिए, आज कई भारतीय शहरों में राजनेता निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय रहवासियों के सामने न्यूनतम रोजगार कोटा का प्रस्ताव रख रहे हैं। उनका तर्क है कि उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियां देश के अन्य हिस्सों से आए प्रवासी हड़प जाते हैं। ऐसा कहते समय वे अपने प्रांत की उन उत्कृष्ट परिस्थितियों को नहीं देख पाते, जिनके कारण बाहर से प्रतिभावान लोग उनके यहां आ रहे होते हैं।
वहीं अगर अच्छी नौकरियां बाहर से आए लोगों को मिल रही हैं तो इसका मतलब सिर्फ यही नहीं कि ऐसा भेदभाव के कारण हो रहा है। यह भी हो सकता है कि वे अधिक योग्य हों। बहरहाल, यदि स्थानीय लोगों के लिए उच्च पदों में न्यूनतम कोटे की कोई नीति बनती भी है तो इससे कुछ फायदे हो सकते हैं। क्योंकि वे अपने सहयोगियों को मार्गदर्शन और नेटवर्क मुहैया करा सकते हैं। लेकिन महत्वाकांक्षी नेता ऐसे सीमित उपायों से शायद ही कभी संतुष्ट होते हैं। उन्हें तो बड़ा कोटा चाहिए।
और यहीं से समस्या शुरू होती है। किसी फर्म के उच्च पदों पर यदि कम कुशलता वाले स्थानीय लोग बैठेंगे तो उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होगी। यदि कोई कंपनी सीमित क्षेत्र में काम कर रही है तो उसे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि प्रतिस्पर्धी स्थानीय कंपनियों में भी ऐसा ही हाल होगा। लेकिन यह तब जरूर मायने रखेगा, जब कोई कंपनी देश के दूसरे बड़े शहरों या विदेशों की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा कर रही हो और वहां ऐसा कोई कोटा नहीं हो। तय मानिए कि ऐसी किसी भी कंपनी की ग्रोथ प्रभावित होगी। वह कम कर्मचारियों को नौकरी देने लग जाएगी या हो सकता है वह अपना कामकाज किसी दूसरे शहर में ले जाए।
योग्य प्रवासी स्थानीय कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाते हैं। नेताओं के लिए उनको दोषी ठहराना एक आसान राजनीतिक रणनीति भले हो सकती हो, लेकिन इस पर अमल करना उनके खुद के मतदाताओं के लिए बहुत बुरी स्थिति हो सकती है।
इसी प्रकार अमेरिका में कुछ नेताओं का दावा है कि शीर्ष विश्वविद्यालयों में अमेरिका में जन्मे योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। ट्रम्प भी सोचते हैं कि शीर्ष विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों के प्रवेश की सीमा 31 प्रतिशत ना होकर 15 प्रतिशत होनी चाहिए। लेकिन यदि विद्यार्थियों का चयन योग्यता के आधार पर हो रहा हो तो सीमा तय करने से छात्रों की औसत गुणवत्ता घटेगी। दुनियाभर के मेधावी छात्रों के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों का आकर्षण भी कम हो जाएगा। पढ़ाई और शोध कर रहे विदेशी छात्रों की संख्या घटने से विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता भी गिरेगी।
भारतीय और अमेरिका के राजनेताओं को सिंगापुर से सीख लेनी चाहिए। सिंगापुर के एक मंत्री ने मुझे बताया कि वहां जब चीन के अच्छे विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए एक कार्यक्रम लॉन्च किया गया तो नाराज स्थानीय मतदाताओं ने कहा था कि चीनी विद्यार्थी शुरुआत में कक्षा में सबसे पीछे होते हैं, लेकिन अंतिम वर्ष आते-आते वे शीर्ष में पहुंच जाते है। ऐसे में हमारे बच्चों के पास शीर्ष स्थान पर आने का अवसर नहीं होता। तब मंत्री ने जवाब दिया था कि सिंगापुर के पास वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है!
बाहर से आए लोगों पर दोषारोपण करने और अर्थव्यवस्था को कमजोर करने से बेहतर है कि हम अपनी क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान दें और अवसरों में बढ़ोतरी करें। यह बात राजनेताओं को सबसे ज्यादा समझनी होगी। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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