Sunday 12/ 10/ 2025 

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Prof. Chetan Singh Solanki’s column – We will now have to learn to differentiate between ‘good’ and ‘bad’ development | प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: हमें अब ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ विकास में अंतर करना भी सीखना होगा

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3 घंटे पहले

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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर

प्रकृति में विकास बुद्धिमानी से होता है। एक बरगद का पेड़ एक किलोमीटर ऊंचा नहीं हो जाता, भले ही वह 500 साल तक जीवित रहे। जंगल में शेर राजा होता है, लेकिन ऐसी स्थिति कभी नहीं बनती कि जंगल में केवल शेर ही रहते हों। प्रकृति में अनियंत्रित विकास दुर्लभ है, क्योंकि यह सिस्टम को अस्थिर करता है। एकमात्र जगह जहां हम असीमित, अनियंत्रित विकास देखते हैं, वह है बीमारी। वास्तव में, यह कैंसर की परिभाषित विशेषता है।

आज मनुष्यों का व्यवहार भी इस विकृति से मिलता-जुलता होने लगा है। निरंतर विस्तार के प्रति अपने जुनून में हम एक महत्वपूर्ण सत्य को भूल गए हैं कि बिना सीमा के विकास प्रगति नहीं, विकृति है। अनियंत्रित विकास न केवल पारिस्थितिकी तंत्र, बल्कि हमारे सामूहिक कल्याण की नींव को भी नुकसान पहुंचाता है। प्रदूषित हवा और पानी, खराब होती मिट्टी, ग्लोबल वार्मिंग, अनियमित मौसम प्रणाली सभी खराब विकास के संकेत हैं।

यूनियन ऑफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट्स सैटेलाइट डेटाबेस के अनुसार 2024 की शुरुआत तक पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले 14,000 से अधिक कृत्रिम उपग्रह हो चुके हैं। यह संख्या पिछले कुछ वर्षों में दोगुनी से भी अधिक है, वर्तमान प्रक्षेपण दर को देखते हुए यह संख्या 2030 तक 100,000 को पार कर सकती है। जो अंतरिक्ष कभी वैज्ञानिक अन्वेषण का क्षेत्र था, वह अब भीड़भाड़ वाला व्यावसायिक क्षेत्र है- जिसमें टकराव, मलबे और ऑर्बिट के वातावरण को दीर्घकालिक नुकसान का खतरा है।

चाहे वह प्लास्टिक का उपयोग हो या नए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में हमारी रुचि, या हमारी अलमारी में कपड़ों की संख्या, स्वयं पर लगाए गए अंकुश की कमी एक समाधान को समस्या में बदल देती है। ऐसे में यह विकास की धारणा पर सवाल उठाने का समय है। हमें अच्छे विकास और एक बुरे विकास के बीच अंतर करना सीखना चाहिए।

इसका मतलब यह नहीं है कि विकास रुक जाना चाहिए। लेकिन इसे उद्देश्य से निर्देशित किया जाना चाहिए, सीमाओं से अवगत होना चाहिए, और पूरे सिस्टम के स्वास्थ्य के अनुकूल होना चाहिए। सीमित संसाधनों के साथ असीमित खपत नहीं चलती रह सकती है।

समस्या उपग्रह, कार या गैजेट नहीं हैं। समस्या यह तर्क है कि अगर कुछ बढ़ सकता है, तो उसे निरंतर बढ़ना चाहिए। अगर खपत जीडीपी को बढ़ावा देती है, तो अधिक खपत बेहतर होगी। यह तर्क अदूरदर्शी है। क्योंकि हम वास्तव में जो ईंधन जला रहे हैं वह समृद्धि नहीं है, बल्कि पतन है। इसलिए, द फाइनाइट अर्थ मूवमेंट (एफईएम) हमें रुकने और सोचने के लिए आमंत्रित करता है।

यह हम सभी से पूछता है कि क्या आपके पास विकास के लिए कोई व्यक्तिगत योजना है? केवल करियर या आय में ही नहीं, बल्कि आप कितना उपभोग करते हैं, इसकी योजना? कि क्या आप जानते हैं कब रुकना है?

सीमित-संसाधनों वाले हमारे ग्रह पर उपभोग को सीमित करने की जिम्मेदारी प्रत्येक व्यक्ति पर है। कुल वैश्विक प्रभाव अरबों व्यक्तिगत फुटप्रिंट्स के जमा-जोड़ के अलावा और कुछ नहीं है। अगर हम जलवायु सुधार चाहते हैं, तो यह अपने में सुधार के बिना नहीं हो सकता।

इसके लिए हमें तपस्या करने या गुफाओं में जाने की जरूरत नहीं है। हमें संतुलन बनाना होगा। हमें मानव प्रणालियों के भीतर प्रकृति की बुद्धिमत्ता को बहाल करना होगा। तो अगली बार जब आप सुनें कि विकास अच्छा है, तो रुकें और पूछें : किस कीमत पर? कितने समय तक?

लेकिन विकल्प क्या है? द फाइनाइट अर्थ मूवमेंट संतुलन बहाल करने के लिए एक सरल, कार्रवाई योग्य ढांचा प्रदान करता है- हमारे दैनिक जीवन से शुरू करना। इसे टीयूपीईई कहा जाता है। यह पांच आदतों का समूह है जो अनावश्यक खपत को कम करने में मदद करता है।

1. टी यानी ट्रैवल लेस। अनावश्यक यात्राएं न करें। 2. यू यानी यूज़ आइटम्स वाइज़ली। वस्तुओं का बुद्धिमानी से उपयोग करें। 3. पी यानी पर्चेस कॉशियसली। सावधानी से खरीदें। 4. ई यानी ईट केयरफुुली। खानपान की आदतों में सतर्कता लाएं। और 5. ई यानी एलिमिनेट इलेक्ट्रिसिटी वेस्ट। बिजली की बर्बादी को खत्म करें। ये महज नारे नहीं हैं, ये नई तरह जीवित रहने की रणनीतियां हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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