Neerja Chaudhary’s column – Dilemma continues over new BJP president | नीरजा चौधरी का कॉलम: भाजपा के नए अध्यक्ष पर दुविधा कायम

6 घंटे पहले
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नीरजा चौधरी वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार
भाजपा को अपना नया पार्टी अध्यक्ष चुनने में इतना समय क्यों लग रहा है- ये सवाल उतना ही पेचीदा है जितना कि यह कि जेपी नड्डा की जगह कौन लेगा। खासकर इसलिए क्योंकि नड्डा का पद छोड़ना जून 2024 में तब लगभग तय लग रहा था, जब उन्होंने असामान्य रूप से स्पष्ट घोषणा की थी कि भारतीय जनता पार्टी को अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहारे की जरूरत नहीं है और पार्टी अपने कामकाज खुद चलाने में सक्षम है। यह ऐसा बयान था, जिसे भाजपा अध्यक्ष शीर्ष नेतृत्व की मंजूरी के बिना देने की हिम्मत नहीं कर सकते थे। और स्वाभाविक ही इसने संघ को नाराज कर दिया।
यह किसी से छुपा नहीं है कि संघ ने 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए उतना काम नहीं किया, जितना कि वह कर सकता था। नतीजतन पार्टी महज 240 सीटों पर सिमट गई और बहुमत गंवा बैठी। लेकिन उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों (हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली) में संघ ने भाजपा के लिए पूरी ताकत झोंक दी और तीनों राज्यों में भाजपा को शानदार जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
आज भाजपा- जो यकीनन दुनिया की सबसे बड़ी चुनावी मशीनरी है- के अध्यक्ष का पद कोई छोटी जिम्मेदारी नहीं है। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि भाजपा और संघ दोनों ही अत्यंत सावधानी से पार्टी के नए मुखिया का चयन करना चाहेंगे।
अगर संघ प्रमुख मोहन भागवत को अगले भाजपा अध्यक्ष का फैसला करने की जिम्मेदारी दी जाती, तो शायद अब तक यह फैसला हो चुका होता। या अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व खुद यह फैसला लेता, तो भी कोई दुविधा न होती।
लेकिन यह ऐसा फैसला है, जिसमें भाजपा और संघ दोनों की चिंताओं को ध्यान में रखना जरूरी था। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अंतिम फैसला प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री और संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले लेंगे- और जाहिर है कि इसके लिए संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की सहमति भी जरूरी होगी।
भाजपा को राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है। यह चुनाव तभी हो सकता है, जब 50% राज्य इकाइयां अपने प्रमुख चुन लें। यह प्रक्रिया अब पूरी हो चुकी है। फिर भी, भाजपा नेतृत्व और संघ के शीर्ष नेतृत्व के बीच कोई समझौता या आम सहमति अब तक नहीं बन पाई है। और यह तब है, जब पिछले 13 महीनों में विभिन्न स्तरों पर कई बार बातचीत हो चुकी है।
75 वर्ष की आयु पार कर चुके नेताओं पर संघ प्रमुख की हालिया टिप्पणी (हालांकि वे दिवंगत संघ नेता मोरोपंत पिंगले को उद्धृत कर रहे थे) अगले पार्टी प्रमुख के चयन पर असर डाल सकती है। विपक्षी दलों ने भागवत की टिप्पणी का सहारा लेकर यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया है कि क्या संघ प्रमुख, प्रधानमंत्री- जो इस साल 17 सितंबर को 75 वर्ष के हो रहे हैं- को किसी और के लिए रास्ता बनाने का संकेत दे रहे हैं?
चूंकि प्रधानमंत्री के पद छोड़ने की संभावना नहीं है और मोदी 2029 में भी भाजपा का चेहरा होंगे, तो क्या संघ प्रमुख अगले भाजपा अध्यक्ष के मुद्दे पर प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं? संघ की सबसे ज्यादा दिलचस्पी भाजपा संगठन में है।
संघ के शीर्ष नेतृत्व की इच्छा है कि अगला भाजपा अध्यक्ष अपेक्षाकृत युवा हो- यही कोई 45 से 55 वर्ष की आयु का। साथ ही वह पार्टी की विचारधारा के प्रति समर्पित, साफ-सुथरी छवि वाला और ऐसे नेतृत्व गुणों वाला हो, जो एक महत्वाकांक्षी भारत को आकृष्ट कर सके। साथ ही जो संगठन को 2047- यानी भारत की स्वतंत्रता के शताब्दी-वर्ष तक- एक विकसित भारत बनाने के लिए तैयार कर सके।
और हालांकि वे इसे स्पष्ट शब्दों में नहीं कहते, लेकिन वे ऐसे व्यक्ति को पसंद करेंगे जो सरकार से स्वतंत्र होकर भी ऐसे फैसले भी ले सके, जो कि दीर्घकालिक सभ्यतागत एजेंडे के व्यापक हित में हों। जबकि जहां तक भाजपा नेतृत्व की बात है, वे स्वाभाविक रूप से ऐसे व्यक्ति को पसंद करेंगे जो उनके साथ मिलकर काम कर सके।
शुरुआत में कई महीनों तक भूपेंद्र यादव ही पार्टी में शीर्ष पद के लिए सबसे आगे लग रहे थे- और हो सकता है कि अंतिम दौर में भी वे फिर से प्रबल दावेदार के रूप में उभरें। वे अपेक्षाकृत युवा हैं, हिंदी पट्टी (राजस्थान) से हैं, जहां भाजपा का बहुत कुछ दांव पर लगा है, वे ओबीसी वर्ग से हैं, संगठन और सरकार में अनुभवी हैं- और उन्होंने अमित शाह के साथ मिलकर काम किया है।
शाह पार्टी अध्यक्ष पद से हटने के बाद भी संगठनात्मक मामलों को नियमित देखते रहे हैं और यादव से उनका अच्छा तालमेल बन सकता है। धर्मेंद्र प्रधान का नाम भी एक समय विचाराधीन था। मनोहरलाल खट्टर को भी एक संभावित उम्मीदवार माना जा रहा था, क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री और संघ दोनों का करीबी माना जाता था।
लेकिन दो-तीन हफ्ते पहले इस नैरेटिव में बदलाव आया। अचानक महिलाएं इस पद के लिए पहली पसंद बन गईं। जिन नामों पर चर्चा हुई, वे दक्षिण की महिलाएं थीं। संकेत यह था कि महिलाएं एक वोट बैंक के रूप में उभर रही हैं और उन्हें सभी पार्टियां लुभा रही हैं। वहीं भाजपा दक्षिण में भी अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है।
ऐसे में निर्मला सीतारमण, दग्गुबाती पुरुंदेश्वरी और वनती श्रीनिवासन (कोयंबटूर से भाजपा विधायक) के नाम चर्चा में आने लगे। महत्वपूर्ण वित्त मंत्रालय संभाल रहीं निर्मला सीतारमण ने हाल ही में जेपी नड्डा से कई घंटों तक चली एक बैठक की, जिससे भाजपा हलकों में हलचल मच गई। अन्य दो नेत्रियों की भी भाजपा अध्यक्ष से मुलाकात हुई है। वैसे भाजपा मीडिया का ध्यान भटकाने और चौंकाने वाले खुलासे करने में माहिर है। जो भी हो, भाजपा के अगले अध्यक्ष को कड़ी मेहनत करनी होगी और उन्हें पार्टी को केंद्र में चौथे कार्यकाल के लिए तैयार करना होगा। साथ ही दक्षिण व पूर्व में पार्टी की उपस्थिति बढ़ानी होगी, और पश्चिम व उत्तर में पकड़ बनाए रखनी होगी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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