Sunday 12/ 10/ 2025 

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Column by Lieutenant General Syed Ata Hasnain- The Indo-Pak conflict has also affected our neighbours | लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम: भारत-पाक संघर्ष का असर हमारे पड़ोसियों पर भी पड़ा है

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7 घंटे पहले

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लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर - Dainik Bhaskar

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर

भारत-पाक संघर्ष के बीच दक्षिण एशिया के देश भी अपनी पोजिशन में बदलाव ला रहे हैं। जब सभी का ध्यान सेनाओं की तैनाती, वायु शक्ति प्रदर्शन और नौसेनिक दावों पर था, तब रणनीतिक प्रभाव का परीक्षण सीमा पर नहीं, पड़ोसी देशों की प्रतिक्रिया में हो रहा था।

ये और बात है कि भारत ने अपने पड़ोसियों की तुलना में बड़ी ताकतों और भू-राजनीतिक मैदान के बड़े खिलाड़ियों को अधिक महत्व दिया है। लेकिन हमें पड़ोसियों पर भी ध्यान देना होगा। श्रीलंका से बांग्लादेश तक और नेपाल से मालदीव तक भारत-पाक संघर्ष के प्रभाव अलग-अलग रहे हैं। इनमें से कोई भी देश संघर्ष में सीधा भागीदार नहीं था, लेकिन सभी ऐसा रुख अपना रहे थे, जिसमें उनकी कमजोरियां और महत्वकांक्षाएं दोनों ही झलकती हों।

भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने का लंबा अनुभव रखने वाला श्रीलंका भारत-पाक टकराव को लेकर सार्वजनिक बयानबाजी से बचता दिखा। हालांकि परदे के पीछे उसे समुद्री जंग को लेकर चिंता थी। भारतीय युद्धपोतों की दक्षिणी हिंद महासागर में सक्रियता के चलते वह खुद की रणनीतिक स्थिति का फिर से आकलन कर रहा था।

जहां वह हम्बनटोटा और कोलंबो बंदरगाहों में चीनी निवेश को नहीं गंवाना चाहता, वहीं वह भारत के सुरक्षा कवच में भी बने रहना चाहता है। श्रीलंका भूल नहीं सकता कि कुछ वक्त पहले जब उसकी आर्थिक स्थिति बहुत बुरी थी तो भारत ने उसे 4 अरब डॉलर की सहायता दी थी।

लेकिन नेपाल कूटनीतिक रास्ते पर चलना जारी रखे हुए है। भारत के साथ 2020 के सीमा विवाद की यादें अभी ताजा हैं। भारतीय सैन्य ताकत की मजबूती को लेकर नेपाल की जनता सावधान है। या यों कहें कि संशय में है। हालांकि दोनों देशों के बीच सैन्य और खुफिया जानकारियों को लेकर सहयोग चुपचाप जारी है।

नेपाल की उत्तरी सीमा पर चीन की मौजूदगी बढ़ रही है। ये खबरें भी हैं कि इस क्षेत्र में भारत विरोधी तत्व आने-जाने के रास्ते तलाश रहे हैं। भूटान एक अपवाद है। वह भारत का सबसे विश्वसनीय क्षेत्रीय साझेदार बना हुआ है। खासतौर पर पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में वह भारतीय सेनाओं के साथ अपना समन्वय बढ़ा रहा है। ​

डोकलाम में जहां पहले भारत-चीन के बीच विवाद हुआ था, उस पर भी निगरानी रखी जा रही है। भूटान का रुख इस समझ पर आधारित है कि उसकी सुरक्षा भारत से जुड़ी है। ऐसे क्षेत्र में जहां साझेदारियां तेजी से बदल रही हों, थिम्फु की स्थिरता दुर्लभ है।

बांग्लादेश का मामला इनमें सबसे जटिल है। आर्थिक रूप से भारत से जुड़े बांग्लादेश ने पूरे घटनाक्रम पर एक सधी हुई चुप्पी साध रखी है। देखें तो बांग्लादेश में स्थितियां राजनीतिक रूप से संवेदनशील हैं। पाकिस्तान से ऐतिहासिक संबंध रखने वाले इस्लामी समूह इस टकराव का उपयोग पाकिस्तान के पक्ष में धारणा बनाने के लिए कर रहे हैं।

ऐसे में बांग्लादेश के लिए बहुत कुछ दांव पर है और हालात भी उसके लिए ब​हुत संगीन हैं। वहां की सेना में मौजूद धर्मनिरपेक्ष तत्व भारत के समर्थन में है, लेकिन आईएसआई वहां अपनी जड़ें जमाने की कोशिश रही है।

मालदीव ने कुछ समय के लिए चीन-समर्थक रुख अपनाने के बाद अब भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों को पुनर्जीवित किया है। हिंद महासागर क्षेत्र, विशेष रूप से मालदीव और मॉरीशस के आसपास भारतीय समुद्री गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। म्यांमार आंतरिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है, लेकिन वह भारत की रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भारत का पूर्वोत्तर- जो विद्रोही गतिविधियों के प्रति संवेदनशील है- म्यांमार से लंबी सीमा साझा करता है। हाल के हफ्तों में भारत-म्यांमार सीमा पर सैनिकों की आवाजाही और हवाई निगरानी कथित तौर पर बढ़ गई है, और अपुष्ट रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान इस अस्थिर गलियारे के जरिए छद्म तत्वों को सक्रिय कर सकता है।

हालांकि हमारे किसी भी पड़ोसी मुल्क ने खुले तौर पर किसी पक्ष के साथ गठबंधन नहीं किया, फिर भी वे अपनी स्थिति का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं। उपमहाद्वीप के छोटे देश अब क्षेत्रीय संकटों में निष्क्रिय दर्शक नहीं बने रह सकते। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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