N. Raghuraman’s column – Does parenting affect your promotion and salary hike? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या पैरेंटिंग आपकी पदोन्नति और वेतनवृद्धि पर असर डालती है?

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3 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
‘मैं आपके प्रदर्शन के लिए इस साल ‘A+’ रेटिंग दे सकता हूं। पर इंक्रीमेंट का बजट कम होने से वेतनवृद्धि नहीं दे सकूंगा, क्योंकि आप पहले ही हायर इनकम ग्रुप में हो। इस बार निचले पद के कर्मियों को फायदा मिलने दो, क्योंकि वे महंगाई से अधिक प्रभावित होते हैं।’ ये बात एक एचआर हेड ने प्रोजेक्ट हेड से कही, जो 370 से अधिक लोगों को संभालते हैं।
प्रोजेक्ट हेड का चेहरा लटक गया। उन्होंने कहा, ‘यदि ऐसा है तो ‘A’ ग्रेड क्यों नहीं देते, जो वेतनवृद्धि के योग्य नहीं होती।’ एचआर ने बिना पलक झपकाए तपाक से कहा, ‘आप आश्वस्त हैं, सोच लें?’ जब उन्होंने दृढ़ता से सिर हिलाया तो एचआर हेड ने कहा, ‘ओके, हो गया।’
प्रोजेक्ट हेड बिना एक शब्द बोले केबिन से चले गए। उनके जाने के बाद एचआर हेड ने किनारे पर ‘X’ का निशान बनाया, आखिरी पेज पर पेंसिल से चर्चा को लिखा और टिप्पणी की- ‘धैर्य की कमी, वो ‘A+’ रेटिंग रख सकते थे और ये मूल्यांकन ग्रेड दिखाकर अगले दौर में बेहतर सौदेबाजी कर सकते थे।’
शुक्रवार की रात एक आईटी कंपनी में काम कर रहे एचआर हेड घर पर डिनर के लिए आए। हम एक अन्य कंपनी में 12 हजार कर्मचारियों की छंटनी की खबर पर चर्चा कर रहे थे। जब मैंने पूछा, कंपनी इतने कम समय में इतने अधिक लोगों पर फैसला कैसे कर सकती है? तो उन्होंने ऊपर बताई कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि कंपनी ने उन जैसे ‘स्नोप्लो पैरेंटेड चिल्ड्रन’ की पहचान की और या तो उनकी काउंसलिंग की, या उन्हें जाने दिया।
स्नोप्लो पैरेंटिंग क्या है? ये परवरिश का एक तरीका है, जिसमें माता-पिता सक्रियतापूर्वक बच्चे की राह से बाधाएं हटाते हैं, ताकि किसी भी असुविधा-कठिनाई को टालकर उनकी सफलता-खुशी सुनिश्चित कर सकें। इसमें अकादमिक, सामाजिक या निजी परिस्थितियों में दखल शामिल हो सकता है, ताकि संघर्षों से बच्चे की रक्षा कर सकें। हालांकि यह होता तो अच्छी मंशा से है, लेकिन इससे बच्चे की कठिनाइयों का सामना करने, उनसे उबरने की क्षमता और स्वतंत्रता बाधित हो जाती है। स्नोप्लो पैरेंटिंग की प्रमुख विशेषताएं हैं :
1. पूर्व-सक्रियता से हस्तक्षेप : जहां माता-पिता संभावित समस्या का अंदाजा लगा लेते हैं और बच्चे के सामने चुनौती आने से पहले ही उसमें हस्तक्षेप करते हैं।
2. बाधाएं हटाना : गलतियों से सीखने देने के बजाय माता-पिता बच्चे के लिए समस्याएं हल कर देते हैं।
3. असुविधाओं से बचाना : उनका लक्ष्य अपने बच्चे को विफलता, निराशा और नकारात्मक अनुभव से बचाना होता है।
4. जरूरत से अधिक संलग्नता : स्नोप्लो पैरेंट अकादमिक से लेकर सामाजिक मेलजोल तक, बच्चे के जीवन में जरूरत से अधिक संलग्न हो जाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है, उम्र के अनुसार पैरेंटिंग भी बदलनी चाहिए। जैसे कि : 1. शिशुओं और बच्चों के लिए, ये गहन पैरेंटिंग है : यह एक समसामयिक दृष्टिकोण जैसा है, जिसमें माता-पिता बच्चों के विकास के लिए महत्वपूर्ण समय, ऊर्जा, संसाधन देते हैं। अकसर बच्चों के सर्वोत्तम विकास, बेहतरी को प्राथमिकता देते हैं। इसमें माता-पिता अधिक भागीदारी निभाते हैं, जिसमें बच्चों के जीवन की रूपरेखा बनाना, उन्हें सम्पन्न बनाने वाली गतिविधियां देना और उनकी प्रगति पर बारीकी से नजर रखना शामिल है। 2. किशोरों के लिए यह प्रबंधकीय पैरेंटिंग है : कुछ जिम्मेदारियां बच्चों को सौंपें और उनमें अपने मूल्य स्थापित करें। हमें हर समय उन पर पैनी नजर रखने के बजाय उन्हें खुद की दुनिया को ‘व्यवस्थित’ करने के लिए कुछ स्वतंत्रता देनी चाहिए। 3. टीनएजर्स व युवाओं के लिए, ये पैरेंटिंग परामर्श व सलाह पर आधारित है : इस चरण में बच्चों को अपनी लाइफ पूरी तरह खुद मैनेज करना सीखनी चाहिए। हम सिर्फ सलाह देते हैं। 4. वयस्कों के लिए, ये साझेदारी वाली पैरेंटिंग है : उन्हें अपने निर्णय करने, नहीं करने से सामने आए कठोर परिणामों का सामना करना चाहिए। उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हों, उन पर हावी न हों।
फंडा यह है कि इस बात के सबूत तो नहीं हैं कि परवरिश का ये तरीका बच्चे के करियर में झलकता है। पर इससे असहमति भी नहीं जता सकते कि ये उनके कॉर्पोरेट व्यवहार की नींव रखता है।
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