Thursday 09/ 10/ 2025 

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भारत में धूम्रपान ना करने वालों को तेजी से घेर रहा फेफड़ों का कैंसर, हैरान कर देगी वजह – In India even non smokers are getting lung cancer the statistics will shock you tvisp

फेफड़ों के कैंसर को अक्सर धूम्रपान से जोड़कर देखा जाता है. आमतौर पर यही धारणा है कि यह बीमारी सिगरेट-बीड़ी पीने वालों को ही होती है. लेकिन सच्चाई इससे अलग है. वास्तव में फेफड़ों का कैंसर ऐसे लोगों को भी होता है जो धूम्रपान नहीं करते हैं. भारत में फेफड़ों के कैंसर के लगभग 10-30% मामले ऐसे लोगों में पाए जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन में कभी सिगरेट या बीड़ी नहीं पी.

बिना धूम्रपान किए हो रहा कैंसर

भारत में हुई स्टीज में यह आंकड़ा 40% तक बताया गया है. यानी 100 में 40 प्रतिशत ऐसे लोगों को लंग कैंसर हुआ जो धूम्रपान नहीं करते थे. धूम्रपान ना करने वालों में फेफड़ों के कैंसर का मुख्य कारण सेकंड हैंड धुएं से पैदा होने वाला कार्सिनोजेन्स (वो पदार्थ जो कैंसर का कारण बन सकते हैं), लकड़ी या कोयले के जलने पर घर के अंदर बनने वाले पॉल्यूटेंट्स, कारखानों से निकलने वाला धुआं और गैसें और पहले से मौजूद फेफड़ों की बीमारी है.

यह बात बेंगलुरु के सम्प्रदा अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी, हेमेटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन विभाग के प्रमुख डॉ. राधेश्याम नाइक ने लंगर कैंसर डे पर कही. उन्होंने कहा कि फेफड़ों के कैंसर के कुछ मामले एस्ट्रोजेन्स के संपर्क में आने के कारण भी होते हैं जो महिला सेक्स हार्मोन का एक समूह है जिसे ह्यूमन कार्सिनोजेन्स के रूप में जाना जाता है.  

क्यों बढ़ रहा है लंग कैंसर

डॉ. राधेश्याम नाइक ने कहा, ‘पिछले तीन दशकों में दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे महानगरों में पुरुषों और महिलाओं दोनों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है. यह स्थिति धूम्रपान से होने वाले रिस्क, घर के अंदर और बाहर बढ़ते वायु प्रदूषण और नियमित तौर पर स्वास्थ्य की जांच के प्रति लोगों में बढ़ती जागरूकता को दर्शाती है.’ 

उन्होंने आगे कहा, वायु प्रदूषण के मामले में भारत दुनिया भर में पांचवें स्थान पर है. लगभग आधे भारतीय घर, दफ्तर या यात्रा के दौरान नियमित तौर पर दूसरों के धुएं के संपर्क में आते हैं. भारत में फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते बोझ में घर के अंदर के वायु प्रदूषण का योगदान 4-6% है. लगभग 75% भारतीय आबादी खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन जैसे लकड़ी, गोबर के उपले या कोयले पर निर्भर है जिसके धुएं से फेफड़ों का कैंसर हो सकता है.

धूप का धुआं भी जानलेवा

यहां तक कि बंद जगहों पर लंबे समय तक धूप जलाने से भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है. जो लोग 40 से ज्यादा सालों से घर के अंदर धूप जला रहे हैं, उनमें धूम्रपान न करने वालों की तुलना में फेफड़ों के कैंसर का खतरा चार गुना ज्यादा पाया गया है. 

बेंगलुरु के सम्प्रदा अस्पताल में प्रिवेंटिव ऑन्कोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. विनोद के. रमानी ने कहा, ‘भारत में ज्यादातर धूम्रपान करने वालों और धूम्रपान न करने वालों, दोनों में ही फेफड़ों के कैंसर का पता जब चलता है जब कैंसर एडवांड स्टेज में पहुंच जाता है.  

गलत Diagnose बढ़ाता है रिस्क

इसका एक कारण यह भी है कि खांसी, सीने में दर्द और वजन कम होना जैसे लक्षण Tuberculosis और फेफड़ों के कैंसर दोनों में एक जैसे होते हैं. चूंकि भारत में टीबी के मामले भी बढ़ रहे हैं और इसके कैंसर के लक्षणों से काफी मिलते-जुलते हैं तो कई बार बहुत सारे लोगों में लंग कैंसर के शुरुआती लक्षणों को टीबी समझ लिया जाता है जिससे उनके इलाज में काफी देरी हो सकती है. 

क्या हैं इलाज और बचाव के तरीके

फेफड़ों के कैंसर के इलाज में इम्यूनोथेरेपी और टार्गेट मेडिसिन जैसे विकल्प शामिल हैं. साथ ही फेफड़ों के कैंसर के टीके भी शामिल हैं जो बीमारी को दोबारा बढ़ने से रोकने के लिए सर्जरी के बाद दिए जाते हैं. कैंसर रोगियों के परिवार के सदस्यों को फेफड़ों के कैंसर सहित किसी भी कैंसर के हाई रिस्क वाले व्यक्ति के रूप में देखना चाहिए.  

इन लक्षणों से रहें सावधान

हर किसी को लंबे समय से खांसी, थूक में खून आने और वजन कम होने जैसे लक्षणों के प्रति सतर्क रहना चाहिए.  धूम्रपान न करने वालों को भी फेफड़ों के कैंसर के लिए समय-समय पर स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना चाहिए. बीमारियों से बचने के लिए हर तीन साल में एक बार पूरे शरीर का एमआरआई स्कैन कराना चाहिए. 

सर्तकता ही है सुरक्षा

वायु प्रदूषण से जुड़े कैंसर के खतरे से खुद को बचाने के लिए लोग क्या कर सकते हैं, इस बारे में बात करते हुए बेंगलुरु के  सम्प्रदा अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी कंसल्टेंट, डॉ. विश्वजीत पई ने कहा, ‘लोगों को प्रदूषण वाली जगह पर मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए.  

लोगों को जीवाश्म ईंधन के निकलने वाली गैसों के संपर्क में आने से भी बचना चाहिए जिनमें कैंसरकारी तत्व होने की संभावना अधिक होती है. एलपीजी का इस्तेमाल वाहन चलाने के बजाय खाना पकाने के चूल्हे में करना चाहिए. साथ ही मिट्टी से निकलने वाली रेडियोधर्मी रेडॉन गैस के लिए घर के अंदर की हवा की जांच की जानी चाहिए जो फेफड़ों के कैंसर का एक बड़ा खतरा पैदा कर सकती है.’ 

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