अंकल सैम अमेरिका इन 10 सेक्टर्स में अब नहीं है नंबर-1… ट्रंप सिर्फ टैरिफ के दम पर क्या वापस ला पाएंगे पुराने दिन – US Loses Top Spot in 10 Key Sectors, Can Trump Revive US Glory with Tariffs ntcpan

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर और ज्यादा टैरिफ लगाने की धमकी दी है. अमेरिका पहले ही भारत पर उम्मीद से ज्यादा 25 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान कर चुका है, ऐसे में ट्रंप अब दबाव की रणनीति के तहत टैरिफ का इस्तेमाल कर रहे हैं. अमेरिका ने न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देशों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाए हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या टैरिफ की बदौलत ट्रंप अमेरिका को खोया हुआ रुतबा वापस दिलाने में मदद कर पाएंगे?
कमजोर हो रहा अमेरिकी प्रभुत्व
‘अंकल सैम’ यानी अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन क्या अब वाकई में अंकल सैम उतने ताकतवर रह गए हैं? यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि वैश्विक स्तर पर कई बड़े सेक्टर्स में अमेरिका अब शीर्ष पर नहीं है और चीन ने अपना प्रभुत्व जमा लिया है. दूसरा सवाल यह है कि क्या ट्रंप इन टैरिफ की बदौलत अमेरिका को पहले जैसी आर्थिक शक्ति बना सकते हैं.
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हाल के दशकों में वैश्वीकरण, तकनीकी प्रगति के चलते चीन-भारत समेत अन्य यूरोपीय देश अमेरिका को मैन्युफैक्चरिंग, इस्पात, नवीकरणीय ऊर्जा, 5G और इलेक्ट्रिक व्हीकल जैसे सेक्टर्स में चुनौती दे रहे हैं. इनमें से कुछ सेक्टर्स में तो चीन ने अमेरिका को पछाड़ते हुए अपना दबदबा कायम कर लिया है.
सर्विस सेक्टर में ठहराव
अमेरिका की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा सेवा क्षेत्र पर निर्भर है. लेकिन जुलाई 2025 के आंकड़ों से पता चलता है कि इस क्षेत्र में ग्रोथ लगभग रुक गई है. इंस्टीट्यूट फॉर सप्लाई मैनेजमेंट (ISM) की रिपोर्ट के मुताबिक, सर्विस का PMI (परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स) 50.1 पर आ गया है, जो ग्रोथ और कॉन्ट्रैक्शन के बीच की लाइन है. इसका सीधा मतलब है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा इंजन रुक सा गया है.
मैन्युफैक्चरिंग पावर घटी
अमेरिका अब 1980-90 के दशक जैसा मैन्युफैक्चरिंग पावर नहीं रहा. अब इस सेक्टर में चीन ने बढ़त हासिल कर ली है. विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक साल 2023 में चीन का वैश्विक विनिर्माण उत्पादन में हिस्सा करीब 30% था, जबकि अमेरिका का 17 फीसदी के साथ दूसरे पायदान पर रहा. इसकी सबसे बड़ी वजह भारत और चीन जैसे देशों में सस्ता श्रम और बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमता को माना जाता है. इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और टेक्सटाइल्स में चीन का दबदबा बना हुआ है. हालांकि कुछ सेक्टर्स ऐसे हैं जिनमें अमेरिका की उत्पादन क्षमता ज्यादा है.
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स्टील प्रोडक्शन के मामले में भारत लगातार अपने पैर पसार रहा है और चीन के बाद इस सेक्टर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. साल 2023 में चीन ने वैश्विक इस्पात उत्पादन का 54 फीसदी हिस्सा उत्पादित किया, जबकि अमेरिका का हिस्सा सिर्फ 4-5% रहा. स्टील उत्पादन के मामले में चीन के बाद भारत, जापान, अमेरिका और फिर रूस का नंबर आता है. अमेरिका, चीन और भारत जैसे देशों से स्टील इंपोर्ट करता है.
एनर्जी सेक्टर में चीन का दबदबा
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भी चीन ने अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है. सोलर एनर्जी और विंड एनर्जी उपकरणों बनाने में चीन सबसे आगे है और उसने साल 2024 में ग्लोबल सोलर पैनल उत्पादन के 80 फीसदी हिस्से पर कब्जा किया था. चीन ने इस सेक्टर में भारी निवेश कर रखा है, जबकि अमेरिका मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन और न्यूक्लियर एनर्जी पर फोकस है.
भारत ने विंड एनर्जी और सोलर एनर्जी से बिजली उत्पादन में जर्मनी को पछाड़कर दुनिया में तीसरा स्थान हासिल कर लिया है. अब सिर्फ चीन और अमेरिका ही इस सेक्टर में भारत से आगे हैं.
AI और टेलीकॉम सेक्टर की रेस
टेलीकॉम उपकरण बनाने में भी चीनी कंपनियां अव्वल हैं. हुआवेई और जेडटीई जैसी 5G तकनीक और उपकरणों में ग्लोबल लीडर बनकर उभरी हैं. अमेरिका की कंपनियां जैसे सिस्को और नोकिया इस रेस में पीछे रह गई हैं. चीन की निवेश नीति और सरकारी समर्थन ने 5G इन्फ्रास्ट्रक्चर में उसकी बादशाहत कायम की है, जबकि अमेरिका को इस मामले में विदेशी उपकरणों पर निर्भर रहना पड़ता है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में वैसे तो अमेरिका सबसे आगे है. लेकिन चीन ने इस दिशा में रिसर्च को बढ़ावा दिया है और पिछले साल AI पेटेंट के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है. चीन की सरकार ने AI को राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा बनाया और वहां बड़ी तादाद में डेटा की मौजूदगी ने AI रिसर्च एंड डेवलेमेंट में अहम रोल निभाया है.
इलेक्ट्रिक व्हीकल सेगमेंट में भी चुनौती
इलेक्ट्रिक व्हीकल सेक्टर में अमेरिकी कंपनी टेस्ला एक मजबूत खिलाड़ी है. लेकिन BYD और NIO जैसी चीनी कंपनियां ने हाल के दिनों में अपने उत्पादन और बिक्री में बढ़ोतरी दर्ज की है. साल 2024 में चीन ने ग्लोबल EV सेल के 60 फीसदी हिस्से पर कब्जा किया था. चीन की बैटरी तकनीक के मजबूत करके अपनी सप्लाई चेन में नई जान जान फूंक दी है. अमेरिका तक EV बैटरी के लिए चीन पर निर्भर है.
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कमर्शियल जहाज निर्माण के मामले में चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों ने अमेरिका को पीछे छोड़ दिया. साल 2024 में चीन और दक्षिण कोरिया ने वैश्विक जहाज निर्माण का 80% हिस्सा कंट्रोल किया. अमेरिका ने इस इंडस्ट्री में काफी कम निवेश करता है जबकि एशियाई देशों ने इसे रणनीतिक प्राथमिकता बनाया और भारत में इस दिशा में काफी आगे बढ़ा है. अमेरिका का फोकस मिलिट्री शिप बनाने पर है.
स्मार्टफोन, लैपटॉप जैसे कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट पर दक्षिण कोरिया की कंपनी सैमसंग और शाओमी, ओप्पो जैसी चीनी कंपनियों का कब्जा है. सस्ता उत्पादन और इनोवेशन में एशियाई कंपनियों ने तेजी से प्रगति हासिल की है. ऐपल को छोड़कर, अमेरिका की कोई कंपनी इस सेक्टर में टॉप पर नहीं है.
टेक्सटाइल में बांग्लादेश से भी पीछे
रेयर अर्थ मटेरियल के मामले में भी अमेरिका काफी पिछड़ा हुआ है और इसी वजह से म्यांमार के साथ ट्रेड डील को लेकर चर्चाएं तेज हैं. इस सेक्टर में चीन सबसे बड़ा खिलाड़ी है, जिसने लिथियम, कोबाल्ट की माइनिंग और प्रोसेसिंग में 80 फीसदी से ज्यादा वैश्विक हिस्सेदारी हासिल की है.
इसी तरह टेक्सटाइल सेक्टर में बांग्लादेश, वियतनाम और चीन जैसे देश अमेरिका पर भारी पड़ते हैं. ये देश टेक्सटाइल एक्सपोर्ट में अमेरिका से काफी आगे हैं. इन देशों में सस्ते श्रम और बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है, जिसकी वजह से अमेरिका जैसा ताकतवर देश भी कपड़े आयात करता है, और उसका अपना उत्पादन न के बराबर है.
टैरिफ से क्या बदलेगा?
अमेरिका बाकी देशों में टैरिफ लगातार व्यापार घाटे को कम करने की कोशिश कर रहा है. इससे घरेलू उद्योगों को लाभ होने की उम्मीद है. क्योंकि टैरिफ से आयातित सामान महंगे होंगे, जिससे अमेरिकी कंपनियों को स्थानीय उत्पादन बढ़ाने का मौका मिल सकता है. स्टील और एल्यूमीनियम पर पहले लगाए गए टैरिफ ने कुछ हद तक स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा दिया. ट्रंप ने यह भी कहा है कि अगर विदेशी कंपनियां अमेरिका में कारखाने लगाएंगी, तो उन्हें टैरिफ में छूट मिल सकती है.
ट्रंप टैरिफ को प्रेशल टूल के तौर पर भी इस्तेमाल करना चाहते हैं. वह इसके जरिए अन्य देशों पर दबाव डाल सकते हैं कि आइये अमेरिका के साथ व्यापार समझौते करें. हाल ही में जापान ने 15 फीसदी टैरिफ के बाद अमेरिका के साथ समझौता किया है. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि टैरिफ का ज्यादातर बोझ अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं पर पड़ता है, क्योंकि आयातित सामान की कीमतें बढ़ जाती हैं.
ग्लोबल लीडर कैसे बनेगा US?
एक सच यह भी है कि टैरिफ लगाने से अमेरिका में तुरंत घरेलू उत्पादन बढ़ना मुश्किल है. क्योंकि कई सेक्टर में अमेरिका आज भी चीन पर निर्भर है और उसे स्वदेशी सामान तैयार करने में लंबा वक्त लग सकता है. दूसरी तरफ भारत और अन्य देश रेसिप्रोकल टैरिफ लगा सकते हैं, जिससे अमेरिकी निर्यात प्रभावित होगा. भारत ने पहले भी अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाया था.
अमेरिकी टैरिफ कुछ क्षेत्रों में स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा दे सकते हैं, लेकिन यह पहले जैसा वैश्विक प्रभुत्व वापस लाने के लिए पर्याप्त नहीं है. अमेरिका की कुछ कंपनियां अब भी ग्लोबल लीडर हैं, लेकिन व्यापक विनिर्माण और अन्य क्षेत्रों में वापसी के लिए भारी निवेश, इंफ्रास्ट्रक्चर, इनोवेशन और स्किल्ड लेबर की जरूरत होगी.
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