N. Raghuraman’s column – Do you know what is happening with children addicted to mobile phones? | एन. रघुरामन का कॉलम: मोबाइल के आदी बच्चों के साथ क्या हो रहा है, आपको जानकारी है?

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4 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
कई वर्ष पहले, मेरी आंटी आधी रात को वॉशरूम जाने के लिए उठीं तो उन्होंने देखा कि उनकी 15 साल की इकलौती बेटी के बंद बेडरूम के दरवाजे के नीचे से हल्का-सा प्रकाश आ रहा है। वे दरवाजा खटखटाकर कमरे के भीतर गईं। लड़की सिर से पैर तक चादर ओढ़कर अपने बेड पर लेटी थी। चादर के अंदर से वह प्रकाश और हंसने की आवाज आ रही थी। जैसे ही आंटी ने लाइट जलाई तो लड़की उठ बैठी और बोली कि वह उस फेसबुक पोस्ट पर आए लाइक्स का जवाब देने में व्यस्त है, जो उसने सुबह की थी।
सुबह होने पर आंटी ने मुझे कॉल किया और किशोरी को समझाने के लिए मदद मांगी। उस स्कूली बच्ची से बात करने के बाद मुझे एहसास हुआ कि बच्ची नहीं, बल्कि आंटी को काउंसलिंग की जरूरत है। और इसके बाद जो हुआ, वो यह कि हम दोनों ने समझा कि बच्ची मोबाइल के अनिवार्य उपयोग की ओर खिंची जा रही थी, क्योंकि यह हमेशा उपलब्ध होता है और कभी बोरिंग नहीं होता। तब से मेरी आंटी जितना हो सकता है, बच्ची के लिए उपलब्ध रहती हैं।
इससे बच्ची काफी हद तक मोबाइल फोन से दूर रहने लगी है। अब एआई धीरे-धीरे मेरी उस आंटी की जगह ले रहा है। वह बच्चों से कभी नहीं कहता कि “तुम बेवकूफी भरे सवाल पूछ रहे हो।’ यह अब भावनात्मक सहारा दे रहा है। वह इंसानों जैसी बातचीत और मित्रता करता है। जैसे-जैसे तकनीक इंसानी रिश्तों को पुन: परिभाषित कर रही है और युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य व अकेलेपन का संकट बढ़ा रही है, हमें टीनएजर्स के तकनीक के साथ जुड़ाव को लेकर चिंता करने की जरूरत है।
बच्चे अपना होमवर्क करने और इसे जल्दी निपटाने के लिए उससे सहायता नहीं मांग रहे, बल्कि वे व्यावहारिक रूप से एआई से यह सुझाव मांग रहे हैं कि क्या खरीदें, कहां से खरीदें, क्या पहनें और कौन-सा लिपस्टिक ड्रेस से मैच करता है। एआई से उनका संवाद बढ़ता जा रहा है, जो सलाह देने और दोस्ती करने में सक्षम है।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता के तौर पर हमें दोतरफा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ एआई दिन में बच्चे का अधिकतर समय ले रहा है। दूसरी तरफ, बच्चे सोचना नहीं चाहते, इसलिए इसका अधिक उपयेाग कर रहे हैं। एआई निजी उपकरणों की जानकारी, रोजमर्रा के निर्णय और समस्या समाधान के लिए पसंदीदा स्रोत बन गया है।
स्क्रीन और डिजिटल मीडिया का अध्ययन और इसके समझदारी भरे उपयोग की हिमायत करने वाले “कॉमन सेंस मीडिया’ के एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि एआई एक कस्टमाइज्ड दोस्त जैसा बन गया है। यह कभी डांटता नहीं, बल्कि हमेशा सराहना करता है और नई चीजों के सुझाव देता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे सुझाव विशेषज्ञ माता-पिता को देते हैं।
कल्पना कीजिए कि आपके 18 महीने के बच्चे ने शर्ट के गलत छेद में बटन डाल दी। तो आप उससे यह मत कहिए कि “बटन लगाने का यह तरीका गलत है।’ बल्कि कहिए कि “वाह, लगता है यह बटन लगाने का नया तरीका है, लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम या हम इसे ऐसे लगाएं।’ और फिर बटन को ठीक कर दीजिए।
एआई ठीक यही काम करता है, लेकिन इसमें उस शारीरिक सहायता की कमी है, जो आप और मैं बच्चों को दे सकते हैं।उनके काम की सराहना, आप उनसे क्या उम्मीद करते हैं और किसी काम को कैसे करें- एआई से बच्चों को दूर करने के लिए ये तीनों चीजें एक साथ करने की जरूरत है।
ध्यान रखें कि तकनीक कोई समस्या नहीं है। लेकिन हर चीज के लिए अनिवार्य तौर पर इसका उपयोग करना हमारे बच्चों की समस्या है। याद रखें, हम अभी भी कहते हैं, “हम जैसा खाते हैं, वैसा ही बनते हैं’। लेकिन जिस तरह एआई हमारे जीवन में घुसपैठ कर रहा है, जल्द ही “खाना’ की जगह “तकनीक’ शब्द ले लेगा।
फंडा यह है कि भविष्य में हमारे बच्चों का आकलन इस आधार पर किया जाएगा कि आज वह तकनीक का उपयोग कैसे कर रहे हैं। तकनीक का सीमित और समझदारी भरा उपयोग करने में उनकी मदद करें, ताकि विकसित देशों के कई बच्चों की तरह उन्हें टेक्नोलॉजी डी-एडिक्शन सेंटरों में नहीं जाना पड़े।
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