Column by Pandit Vijayshankar Mehta: The one who listened well will also do well | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: जिसने सुन ठीक से लिया, वो ठीक से करेगा भी

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7 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
अगर बोलना एक कला है तो सुनना उससे भी बड़ा हुनर है। कहते हैं कोई वक्ता जब अपनी बातों की गहराई तक नहीं जा पाता है तो अपने भाषण को लंबा कर देता है। अगर किसी का भाषण लंबा हो रहा है तो समझ लीजिए कि वो शब्दों से पकड़ खो रहा है। विषय उसके हाथ से छूट गया। इसलिए विद्वान होने में और वक्ता होने में फर्क है।
ऐसे कॉम्बिनेशन कम देखने को मिलते हैं कि जहां वक्ता भी विद्वान हो और श्रोता भी परम विद्वान हो। ऐसी जोड़ी बनी थी जनक और अष्टावक्र के बीच में। ये दोनों ही अपने ज्ञान के मामले में अद्भुत थे। लेकिन जब जनक अष्टावक्र को सुन रहे थे तो कहते हैं वो इनको सुनकर और जाग गए। श्रवण मात्रेन- इस शब्द का अर्थ होता है जब भी किसी को सुनो, पूरी तरह से सुनो।
अगर हम में जरा भी अक्ल होती है तो हम बोलने वाले के शब्दों का संपादन शुरू कर देते हैं। कई बार तो हमारी विद्वत्ता कहने वले के शब्दों पर अपने अर्थ आरोपित कर देती है। इसलिए जब भी श्रवण करें, प्रगाढ़ श्रवण करें। शब्दों को तोड़ते हुए, मोड़ते हुए भीतर ना लाएं। जिसने सुन ठीक से लिया, वो ठीक से करेगा भी।
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