Shashi Tharoor’s column – Trump’s stance can change our relations with China | शशि थरूर का कॉलम: ट्रम्प का रुख चीन से हमारे संबंधों को बदल सकता है

- Hindi News
- Opinion
- Shashi Tharoor’s Column Trump’s Stance Can Change Our Relations With China
3 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

शशि थरूर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद
भारत और अमेरिका के रिश्ते लंबे समय से साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और भिन्न राष्ट्रीय हितों के बीच सावधानी भरे संतुलन पर टिके रहे हैं। लेकिन हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच जो हुआ है, उससे सवाल उठता है कि क्या यह साझेदारी नया मोड़ ले रही है?
ट्रम्प के इस दावे को कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के साथ व्यापार नहीं करने का हवाला देकर दोनों देशों में युद्धविराम करवाया, भारत ने भू-राजनीतिक शेखी बघारने की तरह लिया है। भारत ने ट्रम्प के दावों पर नाराजगी जताई है, केवल इसलिए ही नहीं कि वह हर कीमत पर अपनी सम्प्रभुता की रक्षा करना चाहता है, बल्कि इसलिए भी कि ये दावे बेबुनियाद थे। प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा है कि संघर्ष के दौरान ट्रम्प ने उन्हें कॉल तक नहीं किया था। तब किसी अमेरिकी अधिकारी ने भी ट्रेड का जिक्र नहीं किया था।
ये जरूर हो सकता है कि ट्रम्प ने युद्ध समाप्त करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाया हो, लेकिन भारत को इसके लिए राजी करने की जरूरत ही नहीं थी। भारत विश्व-व्यवस्था के प्रति यथास्थिति कायम रखने की मानसिकता रखता है और उसका ध्यान आर्थिक प्रगति पर केंद्रित है।
भारत कभी लंबा संघर्ष नहीं चाहता। यही कारण था कि पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने प्रभावी और त्वरित किंतु संतुलित प्रतिक्रिया दी थी। ऑपरेशन सिंदूर का लक्ष्य आतंकवादियों से प्रतिशोध लेना था, पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ना नहीं।
इसने और संभवत: अमेरिकी दबाव ने पाकिस्तान को युद्धविराम के लिए प्रेरित किया। इसके लिए ट्रम्प को शायद ही कोई श्रेय जाता हो, फिर भी उन्होंने इस पर दावा जताने की कोशिश की। भारत ने ट्रम्प के इस नैरेटिव को खारिज किया। भारत को अपनी स्वतंत्रता पर गर्व है। वो यह तोहमत कतई बर्दाश्त नहीं करेगा कि वह ट्रम्प की धमकियों के आगे झुक गया।
चीन के प्रति भी ट्रम्प का रवैया उतना ही मुसीबत पैदा करने वाला है। कभी वे कहते हैं चीन पर बहुत टैरिफ लगाएंगे। कभी चीन से व्यापार-समझौते पर बातचीत करने लगते हैं। वे यह भी कहते हैं कि वे शी जिनपिंग के न्योते पर चीन की यात्रा पर जा सकते हैं।
भारत इस गुणा-भाग में कहां फिट बैठता है? ट्रम्प के पहले कार्यकाल और बाइडेन के शासनकाल में भी अमेरिका भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख साझेदार और चीन को नियंत्रित करने वाली एक लोकतांत्रिक ताकत मानता था। भारत ने जहां रणनीतिक स्वायत्तता के अपने विदेश नीति सिद्धांत को बनाए रखा और चीन से विवाद को टाला, वहीं उसने क्षेत्र में अमेरिका का स्वागत भी किया।
2017 में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी वाले ‘क्वाड’ को पुनर्जीवित करने में सहायता की। भारत के चीन के साथ अपने विवाद हैं। चीन ने हाल ही में दोनों देशों की विवादित सीमा पर अतिक्रमण बढ़ाया और पाकिस्तान को भी समर्थन दिया। वह भारत के औद्योगिक इको-सिस्टम को भी कमजोर कर रहा है। भारत में इंजीनियरों का आना रोक रहा है। कारखानों की अत्याधुनिक चीनी मशीनरी तक पहुंच प्रतिबंधित कर रहा है।
भारतीय अधिकारी और व्यापारिक संस्थान चीन को तो खतरे के तौर पर देखते हैं। लेकिन यह समझना थोड़ा मुश्किल है कि इस सब में अमेरिका कहां आता है। खासतौर पर तब, जब भारत-पाक संघर्ष के दौरान चीन ने हमारे सैन्य ठिकानों की रियल टाइम जानकारी पाकिस्तान को दी और अमेरिका ने उसे फटकार तक नहीं लगाई।
जहां तक व्यापार का सवाल है तो ट्रम्प अकसर अपने विरोधियों के बजाय सहयोगियों के प्रति अधिक कठोरता बरतते हैं। भारत पर 25% टैरिफ और रूस से तेल और हथियार खरीदने पर 25% की अतिरिक्त ‘पेनल्टी’ थोपना इसी की मिसाल है।
ट्रम्प की मनमानी ने भारत की रणनीतिक चिंताओं को बढ़ाया है। अतीत में भी अमेरिका भरोसेमंद साथी साबित नहीं हुआ है। कारगिल संघर्ष में उसने महत्वपूर्ण जीपीएस डेटा तक भारत की पहुंच को रोक दिया था। इस कारण भारत ने स्वयं का जीपीएस विकसित किया। अब भारत के निर्णयकर्ता असमंजस में हैं कि अमेरिका के रुख को देखते हुए चीन से कैसे ताल्लुक रखें।
भारत इससे घबराएगा नहीं, लेकिन वह अपनी रणनीति बदल सकता है। जापान या दक्षिण कोरिया जैसे अमेरिका के औपचारिक सहयोगियों की तुलना में वह अधिक स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकता है। जयशंकर की हाल ही में बीजिंग यात्रा चीन के साथ संवाद बढ़ाने की हमारी इच्छा को दर्शाती है। भारत अमेरिका के साथ संबंधों को कम नहीं कर रहा, लेकिन वह आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहा है। अमेरिका से रिश्ते अब ऐसी रस्सी पर चलने की तरह हैं, जिसका दूसरा छोर डावांडोल है।
ट्रम्प की मनमानी ने भारत की रणनीतिक चिंताओं को बढ़ाया है। अतीत में भी अमेरिका कभी भरोसेमंद साथी साबित नहीं हुआ है। भारत के निर्णयकर्ता असमंजस में हैं कि अमेरिका के रुख को देखते हुए चीन से कैसे ताल्लुक रखें। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
Source link