Pt. Vijayshankar Mehta’s column- The satvik feeling of Rakshabandhan should remain throughout the year | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: रक्षाबंधन का सात्विक भाव पूरे वर्ष भर बने रहना चाहिए

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2 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
पूरी दुनिया में भारत में एक प्रयोग हुआ है। और खासतौर पर हिंदू धर्म में। स्त्री-पुरुष की देह से आगे बढ़कर ये दोनों एक-दूसरे की आत्मा को छुएं, इस प्रयोग के पर्व का नाम राखी है। रक्षाबंधन का एक सूत्र किसी भी पुरुष को उस स्त्री की आत्मा तक ले जाता है, जहां उसको बहन दिखती है।
पराए शरीर के प्रति इतनी पवित्रता इस त्योहार से जन्म लेती है। इसकी एक और विशेषता है कि चूंकि भाई-बहन एक-दूसरे की आत्मा को बड़ी आसानी से स्पर्श करते हैं तो यहां शांति का जन्म होता है। सामान्यत: स्त्री-पुरुष की देह अगर मिले तो अशांति ही होती है। लेकिन इस रिश्ते के साथ शांति उत्पन्न होगी। एक विश्राम हमारे व्यक्तित्व में उतर आता है।
ये रिश्ता हमारे कम्पन को मिटाता है। इससे हम समझते हैं कि दुनिया में बाहर भोग हो, पर भीतर योग घटना चाहिए। इस रिश्ते में जो लेन-देन भी होता है, बड़ा आत्मिक होता है, शुद्ध होता है, हितकारी होता है। इस एक तिथि का सात्विक भाव पूरे वर्ष भर बने रहना चाहिए।
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