N. Raghuraman’s column- ‘Protection’ of the elderly is also a form of Rakshabandhan | एन. रघुरामन का कॉलम: बुजुर्गों की ‘रक्षा’ भी रक्षाबंधन का ही रूप है

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5 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
रक्षाबंधन के दौरान अकसर बहनें उनको मिलने वाले नेग या गिफ्ट के लिए भाइयों पर खेल-खेल में तंज कसती हैं या हास्यपूर्ण ‘झगड़ा’ करती हैं। यह लगाव जताने या मजाक का हल्का-फुल्का तरीका है। चूंकि यह मजाक वाली ‘लड़ाई’ पूरी तरह से संख्याओं (नेग की राशि) को लेकर है तो आज मैं कॉलम की शुरुआत कुछ विचारणीय संख्याओं के साथ करता हूं।
भारत में बुजुर्ग आबादी महत्वपूर्ण तरीके से और तेजी से बढ़ रही है। 2021 में लगभग 13.8 करोड़ बुजुर्ग थे। अगले साल, 2026 में यह संख्या 17.3 करोड़ और पांच साल बाद 2031 में 19.3 करोड़ हो जाएगी। 2050 तक इसके 34.7 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।
यह जनसांख्यिकीय बदलाव भारत के सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य सेवा तंत्र के लिए अवसर और चुनौतियां, दोनों ही है। और सबसे महत्वपूर्ण बात जो होने जा रही है, वो यह है कि संयुक्त परिवारों से एकल परिवार की ओर बढ़ रहे हमारे पारिवारिक ढांचे में ये बुजुर्ग अकेले और बेसहारा हो सकते हैं।
रीयल एस्टेट में काम करने वालों को इन संख्याओं में अवसर दिख रहा है। रीयल एस्टेट सेवा कंपनी ‘सेविल्स इंडिया’ ने सर्वे में पाया कि तेजी से उम्रदराज हो रही इस आबादी को विशेष रूप से निर्मित घरों की जरूरत है। यदि 2031 तक के 17.3 करोड़ बुजुर्गों को ही लें तो सर्वे कहता है कि 2025 और 2030 के बीच लगभग 72 हजार करोड़ के निवेश की जरूरत होगी।
यदि वे अलग-थलग पड़ जाते हैं तो चाहेंगे कि कम्युनिटी में रहें। यही कारण है कि रीयल एस्टेट वाले वरिष्ठजनों के रहने लायक एक बुनियादी ढांचे को आकार देने में व्यस्त हैं। डेवलपर्स ने इसके लिए विशेषज्ञों की सेवाएं लेना शुरू कर दिया है। यह बड़े शहरों में नहीं, बल्कि वडोदरा, कोयंबटूर और गोवा जैसी छोटी जगहों पर दिखाई दे रहा है, जहां निर्माणाधीन परियोजनाओं में से लगभग 34% इसी श्रेणी के लिए हैं।
देश में बुजुर्गों की आबादी की, कुल आबादी से तुलना करके इस मुद्दे को खारिज ना करें। हालांकि, भारत की बुजुर्ग आबादी स्वतंत्र रूप से बढ़ रही है। लेकिन अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से तुलना करें तो कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी बेहद कम लगती है। 2024 में जापान दुनियाभर में उम्रदराज आबादी के मामले में अग्रणी था।
वहां कुल आबादी में करीब 36% वरिष्ठ नागरिक थे। लेकिन वैश्विक जनसंख्या में जापान की हिस्सेदारी केवल 1.9% है, जबकि भारत की 19%। भारत में रह रहे बुजुर्गों की कई प्रकार की जरूरतों के लिए देखभाल की जा रही है। इसमें स्वतंत्र जीवन, सहायता प्राप्त जीवन, डिमेंशिया पीड़ित बुजुर्गों के लिए मेमोरी केयर सुविधाएं शामिल हैं, जहां उन्हें लगातार देखभाल की जरूरत होती है।
बुजुर्गों को इन सभी जगहों पर विभिन्न स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं और लाइफस्टाइल सपोर्ट दिया जा रहा है। यहां तक कि 2025 की शुरुआत में तो ‘बेबी बूमर्स’ यानी 1948 से 1964 के बीच जन्मे लोग भी वरिष्ठ नागरिक श्रेणी में शामिल आ गए हैं और मौजूदा सेवानिवृत्त समुदाय का हिस्सा हैं। इस वर्ग के बहुत कम ही लोग बचे हैं, जो पारिवारिक ढांचे में बदलाव के कारण सहायता प्राप्त जीवन की तलाश करते हुए अब भी काम कर रहे हैं।
बढ़ते आधुनिकीकरण के साथ ये वरिष्ठ समुदाय भी तेजी से बढ़ रहे हैं। बुजुर्गों की देखभाल के परंपरागत मॉडल को दृढ़ता के साथ पीछे छोड़ते हुए ये नए जमाने का समुदाय सामाजिक जुड़ाव-व्यक्तिगत स्वायत्तता पर अधिक जोर देता है। सेविल्स इंडिया के एमडी-रिसर्च एंड कंसल्टिंग, अरविंद नंदन कहते हैं, ये केवल जनसांख्यिकीय प्रतिक्रिया नहीं, आधारभूत ढांचे की अनिवार्यता है।
दूसरी ओर वरिष्ठ नागरिक उन टियर-2 शहरों की तलाश में हैं, जहां चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएं ठीक-ठाक हैं, लेकिन प्रदूषण कम है और आसपास खूब हरियाली है। यही कारण है कि रियल्टर्स ऐसे शहरों पर ध्यान दे रहे हैं, जैसे ऊपर बताए गए हैं। और जो धीरे-धीरे इस बदलाव का वास्तविक जरिया बन रहे हैं।
फंडा यह है कि उम्रदराज हो रहे भारत की सुरक्षा के लिए योजना बनाना और इस तरह अपने बुजुर्गों की चिंता करना ना केवल मानवता का ही एक रूप है, बल्कि यह युवा आबादी के लिए भी बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा कर रहा है।
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