brigadier mohammad usman – ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान… जिन्हें लेना चाहती थी पाक आर्मी, मगर उन्होंने भारत में रहकर ‘दुश्मन’ को औकात दिखा दी! – NCERT books syllabus change brigadier mohammad usman chapters success story indian army pvpw

Brigadier mohammad usman: एनसीईआरटी ने 7वीं और 8वीं कक्षा की किताबों में फील्ड मार्शल सैम मानेक्शॉ, मेजर सोमनाथ शर्मा और ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की कहानी को किताबों में शामिल करने का फैसला किया है. ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद होने वाले सबसे ऊंची रैंक के अफसर हैं. आइए जानते हैं इनकी कहानी.
कौन थे ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जमील-उन बीबी और मोहम्मद फारूख खुम्बीर के घर में हुआ. पिता पुलिस अफसर थे, तो घर में डिसिप्लिन का माहौल हमेशा से था. बनारस के हरीश चंद्र भाई स्कूल में मोहम्मद उस्मान ने पढ़ाई पूरी की.
पढ़ाई के बाद उस्मान ने तय किया कि वे सेना में भर्ती होंगे. अंग्रेजों के राज में किसी भारतीय के लिए सेना में कमिशन्ड रैंक पाने के बहुत कम मौके होते थे. इतनी प्रतिस्पर्धा थी कि मुश्किल से कुछ भारतीयों को ही रैंक मिलती थी पर इतने कड़े कॉम्पिटीशन के बाद भी वो इंग्लैंड के सैंडहर्स्ट की प्रतिष्ठित रॉयल मिलिट्री अकादमी में एडमिशन लेने में कामयाब हो गए.
कैसा रहा मिलिट्री करियर?
19 मार्च 1935 को उन्हें भारतीय सेना में शामिल किया गया और 10वीं बलूच रेंजिमेंट की 5वीं बटालियन में तैनाती दी गई. इसके बाद उनका प्रमोशन भी हुआ. उस्मान को 30 अप्रैल 1936 को लेफ्टिनेंट और 31 अगस्त 1941 को बटालियन के कैप्टन के पद पर प्रमोट किया गया. उन्होंने 1942 में कुछ महीनों के लिए बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में स्थित भारतीय सेना का स्टाफ कॉलेज भी अटेंड किया. अप्रैल 1944 तक वो अस्थाई मेजर के पद पर सेवाएं दे रहे थे. इसके बाद अप्रैल 1945 से अप्रैल 1946 तक ब्रिगेडिययर उस्मान ने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन की कमान संभाली.
मोहम्मद अली जिन्ना ने ऑफर की थी पाकिस्तानी सेना जनरल की पोस्ट
1947 में जब देश का बंटवारा हुआ, तब बलूच रेजिमेंट में कार्यरत एक मुसलमान सेना अफसर होने के नाते मोहम्मद उस्मान से उम्मीद की जा रही थी कि वो पाकिस्तान को चुनेंगे. उनपर पाकिस्तानी हुकूमत की तरफ से प्रेशर डाला जा रहा था. यहां तक कि खुद पाकिस्तान के गवर्नर मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें सेना के चीफ की पोस्ट ऑफर की थी, पर उन्होंने भारत में ही रहने का फैसला लिया. बंटवारे के बाद जब बलूच रेजिमेंट पाकिस्तान के हिस्से में गया, तो ब्रिगेडियर उस्मान को डोगरा रेजिमेंट में ट्रांसफर कर दिया गया.
नौशेरा का शेर कैसे बने मोहम्मद उस्मान?
दिसंबर 1947 में पाकिस्तानी सेना ने पश्तून (पठान) जनजाति के लोगों के साथ मिलकर कश्मीर के रजौरी के नौशेरा पर अटैक कर दिया. उस समय ब्रिगेडियर उस्मान 77वीं पैराशूट ब्रिगेड के कमांडर थे. उन्हें अटैक को रोकने के लिए झांगर भेजी गई 50वीं पैराशूट ब्रिगेड को कमांड करने की जिम्मेदारी मिली. हालांकि पाकिस्तान 25 दिसंबर 1947 को झांगर पर कब्जा करने में कामयाब हो गया.
आखिरकार भारत 6 फरवरी 1948 को नौशेरा को वापस पाने में सफल हुआ. इस लड़ाई में करीब 2 हजार पाकिस्तानी सैनिक शहीद हुए, लेकिन भारत के केवल 33 जवान शहीद और 102 जवान घायल हुए. ब्रिगेडियर उस्मान के डिफेंस ने उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ निकनेम दिया.
पाकिस्तानी सेना ने रखा था 50 हजार का इनाम
ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुरी का अंदाजा पाकिस्तान को हमेशा से था. नौशेरा की लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी सेना ने ब्रिगेडियर उस्मान का सर काटकर लाने वाले को 50 हजार रूपए का इनाम देने का ऐलान किया था. वहीं, ब्रिगेडियर उस्मान भी इरादे के पक्के थे. उन्होंने कसम खाई थी कि जबतक झंगर को पाकिस्तान के कब्जे से नहीं छुड़ा लेते, वो जमान पर ही सोएंगे/ चैन से बैठेंगे.
शेलिंग के कारण गई जान
ब्रिगेडियर उस्मान का 3 जुलाई 1948 में निधन हो गया. जिया-उस-सलाम और आनंद मिश्रा की किताब ‘ज लायन ऑफ नौशेरा’में उनकी शहादत का जिक्र मिलता है कि 3 जुलाई 1948 की शाम अपनी ब्रिगेड के हेड-क्वॉर्टर पर उस्मान ने बाकी अफसरों के साथ मीटिंग की. मीटिंग खत्म होने के बाद वो बाहर टहल रहे थे, तभी पाकिस्तान ने वहां शेलिंग शुरू कर दी.
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान अपने एक साथी मेजर भगवान सिंह और कैप्टन एस.सी. सिन्हा के साथ बंकर के उपर एक चट्टान के नीचे छुप गए. कुछ देर के शेलिंग रुकने पर उस्मान वहां से बाहर निकले तो दुश्मनों ने फिर आर्टिलरी फायरिंग शुरू कर दी. एक 25-पाउंडर शेल उनके बंकर के पास आ गिरा. इस हमले में ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान शहीद हो गए.
मैसेज में कहा “ठीक हूं, जिंदा हूं…”
पाकिस्तान और बाकी देशों में उनका खौफ इस कदर था कि अखबारों और टीवी पर उस्मान मौत की अफवाहें फैलाई गईं, ऐसी अफवाहों से ब्रिगेडियर उस्मान को बड़ी चिंता होती थी. हाल ये था कि जून 1948 में छपी रिपोर्ट को पढ़कर जब उनके भाई ने उनका हाल पूछने के लिए वेस्टर्न कमांड हेडक्वॉर्टर्स पर कॉन्टैक्ट किया तो उन्होंने कहा, मैं स्वस्थ हूं और अब भी जिंदा हूं’. हालांकि, इस मैसेज के आधे घंटे बाद उन्होंने आखिरी सांस ली और वे शहीद हो गए.
जनाजे में शामिल हुए थे पंडित नेहरू और लॉर्ड माउंटबैटन
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद होने वाले सबसे ऊंची रैंक के अफसर हैं. इन्हे मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था, जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा सैन्य सम्मान है. इनके जनाजे में गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबैटन, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद और शेख अब्दुल्ला जैसे दिग्गज नेता शामिल हुए थे. दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पास ओखला सीमेंट्री में इनकी कब्र भी है, जहां आज भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं.
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