Chetan Bhagat’s column – American arbitrariness must be confronted with prudence | चेतन भगत का कॉलम: सूझ-बूझ से ही करना होगा अमेरिकी मनमानी का सामना

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2 घंटे पहले
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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार
क्या आपको टैरिफ पसंद हैं? इस सवाल का जवाब इस पर निर्भर करता है कि यह आप किससे पूछ रहे हैं। अगर आप टैरिफ वसूल रहे हैं या टैरिफ आपको विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचा रहे हैं, तो आपका जवाब ‘हां’ होगा। लेकिन अगर आप टैरिफ चुका रहे हैं या ये आपको गैर-प्रतिस्पर्धी बनाते हैं, तो आपका जवाब निश्चित रूप से ‘नहीं’ होगा।
बेशक, अगर आप एक ऐसे देश हैं, जिस पर अपने सबसे बड़े बाजार में होने वाले ज्यादातर निर्यातों पर अचानक 50% टैरिफ लगा दिया जाए, तो यह आपके लिए सुखद अनुभव नहीं होगा। लेकिन भारत के साथ ठीक यही हुआ है। फार्मा और टेक को छोड़कर, अमेरिका को होने वाले लगभग सभी भारतीय निर्यात अब 50% टैरिफ के अधीन हैं।
अनुमान बताते हैं कि इससे अमेरिका को होने वाले 60 से 80 अरब डॉलर के भारतीय निर्यात पर असर पड़ेगा, जो भारत की जीडीपी का लगभग 2 से 2.5% है। अगर टैरिफ लागू रहे, तो इनमें से कई निर्यात प्रतिस्पर्धी नहीं रह जाएंगे। इससे न केवल निर्यात के आंकड़ों में भारी गिरावट आएगी, बल्कि जीडीपी वृद्धि भी कमजोर होगी।
कपड़ा, चमड़ा, रत्न-आभूषण और झींगा सम्बंधित उद्योगों पर विशेष रूप से भारी असर पड़ेगा। पहले ही तंग मार्जिन पर चल रहे ये उद्योग 50% टैरिफ का सामना नहीं कर पाएंगे। चूंकि ये क्षेत्र अत्यधिक श्रम-प्रधान हैं, इसलिए लाखों भारतीय नौकरियां खतरे में आ जाएंगी। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं या हमें क्या करना चाहिए? कुछ बिंदु देखें :
1. हम इन टैरिफ को फिलहाल स्थगित करने की मांग कर सकते हैं। चूंकि ये टैरिफ हम पर अचानक और अप्रत्याशित रूप से लगाए गए हैं, इसलिए वे हमारे लिए विशेष रूप से हानिकारक बन जाते हैं। जब चीन के लिए अमेरिका अपने टैरिफ को स्थगित रख सकता है तो हमारे लिए क्यों नहीं कर सकता? हमारा औपचारिक रूप से पहला कदम तो 90 से 180 दिनों के लिए इन टैरिफ को स्थगित करने का अनुरोध ही होना चाहिए, ताकि बातचीत की गुंजाइश बनी रहे।
2. हमें अमेरिकी उत्पादों पर भारतीय टैरिफों की भी समीक्षा करनी चाहिए। ये सच है कि भारत ने अमेरिकी उत्पादों पर अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए टैरिफों की तुलना में अधिक टैरिफ लगाया है। यकीनन यह भारतीय किसानों और घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए था। लेकिन हमारे औद्योगिक टैरिफ? शायद हमने उन्हें बहुत लंबे समय तक बहुत ऊंची दरों पर बनाए रखा है। एक तरफ तो हम दुनिया से कहते हैं कि हम एक नया भारत है, हमारे साथ बराबरी का व्यवहार करो। दूसरी तरफ, हम यह कहकर पीड़ित होने का दिखावा करते हैं कि हमें अपने उद्योगों की रक्षा के लिए ऊंचे टैरिफ लगाने की दरकार है। ये दोनों बातें एक साथ नहीं चल सकतीं। हम अमेरिकी ऑटोमोबाइल पर 100% से ज्यादा टैक्स लगाते हैं। अमेरिकी शराब पर तो 150% तक ड्यूटीज़ लगाई जाती हैं। तो क्या हमने अपने उद्योगों को इतना संरक्षण दे दिया है कि वे अब वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए इनोवेशन नहीं कर पा रहे हैं? हम अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ घटाकर अमेरिका से चर्चा की सकारात्मक शुरुआत कर सकते हैं।
3. हमें रूसी तेल के मुद्दे को कूटनीतिक तरीके से सुलझाना होगा। यह आश्चर्यजनक है कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसे रूस से तेल लेने पर दंडित किया गया है, जबकि अन्य देश भी रूसी तेल खरीदते हैं। सधे हुए कूटनीतिक प्रयासों से इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। हम अमेरिका को ये सूक्ष्म-संकेत भी दे सकते हैं कि हमारे पास दूसरे विकल्प मौजूद हैं, हमारी सद्भावना को हलके में न लिया जाए।
4. एक और जरूरी बिंदु यह है कि हमें नाहक ही अपनी छाती ठोकने और शेखी बघारने से बचना चाहिए। हां, हम पर थोपे गए टैरिफ अनुचित हैं और वे हमारे खिलाफ ट्रेड-वॉर छेड़ने की तरह हैं। लेकिन इसके लिए अवज्ञा का प्रदर्शन करने से घरेलू राजनीति में भले कुछ समय के लिए फायदा हो और मीडिया को यह पसंद आए, लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। यहां तक कि चीन भी- अमेरिका से कई विवादों के बावजूद- आमतौर पर अमेरिका से शांतिपूर्ण और व्यावहारिक बातचीत पर ही अड़ा रहता है।
अमेरिका द्वारा भारत पर 50% टैरिफ थोपना यकीनन एक बड़ी घटना है। हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए और सोचे-समझे कदमों से इसका जवाब देना चाहिए। मार्केज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’ की तर्ज पर कहूं तो टैरिफ के जमाने में ‘प्रेम’ का प्रदर्शन करना थोड़ा मुश्किल जरूर हो सकता है, लेकिन चाहे निजी जीवन हो या अंतरराष्ट्रीय सम्बंध- ये भला कब आसान रहा है!
जब चीन के लिए अमेरिका टैरिफ को स्थगित रख सकता है तो हमारे लिए क्यों नहीं? हमारा औपचारिक रूप से पहला कदम तो 90 से 180 दिनों के लिए टैरिफ को स्थगित करने का अनुरोध ही होना चाहिए, ताकि चर्चा की गुंजाइश बनी रहे। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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