Wednesday 08/ 10/ 2025 

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बिल्डर कैसे होते हैं दिवालिया? जानें क्यों आपके सपनों का घर कानूनी जंग में फंस सकता है – builder insolvency bankruptcy process buyers rights

दिल्ली-एनसीआर में घर खरीदने का सपना देख रहे सैकड़ों लोगों की उम्मीदें अधूरी रह गईं, क्योंकि उनके बिल्डर दिवालिया हो गए. घर खरीदने वाले बायर्स ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी, लेकिन बिल्डर के दिवालिया होने से उनका घर मिलने का सपना टूट गया. एक बड़ा बिल्डर आखिर कैसे दिवालिया होता है और इस पूरी प्रक्रिया में क्या होता है? आखिर बिल्डर के दिवालिया होने का घर खरीदने वालों पर क्या असर पड़ता है.

बिल्डर के दिवालिया होने की प्रक्रिया जटिल और कई चरणों वाली होती है, जिसे इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), 2016 के तहत नियंत्रित किया जाता है. जब कोई बिल्डर अपने वित्तीय दायित्वों, जैसे कि घर खरीदारों या बैंक के ऋण का भुगतान करने में विफल रहता है, तो दिवालियापन की कार्यवाही शुरू हो सकती है. यह प्रक्रिया बिल्डर को पुनर्जीवित करने या उसकी संपत्तियों को बेचकर लेनदारों का बकाया चुकाने के लिए डिज़ाइन की गई है.

किसी बिल्डर के दिवालिया होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें वित्तीय कुप्रबंधन, प्रोजेक्ट की लागत में वृद्धि, बिक्री में कमी, सरकारी नीतियों में बदलाव, या कानूनी विवाद शामिल हैं. जब ये समस्याएं गंभीर हो जाती हैं और बिल्डर अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पाता, तो दिवालियापन की कार्यवाही शुरू होती है.

इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC)

भारत में बिल्डरों के दिवालिया होने की प्रक्रिया मुख्य रूप से IBC के तहत चलती है. पहले, बिल्डर दिवालिया होने पर कंपनी अधिनियम (Companies Act) के तहत आते थे, लेकिन अब IBC के तहत, घर खरीदारों को भी वित्तीय लेनदार (Financial Creditors) का दर्जा दिया गया है. इससे वे भी बिल्डर के खिलाफ दिवालियापन की कार्यवाही शुरू कर सकते हैं.

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दिवालियापन की प्रक्रिया के चरण

1. आवेदन दाखिल करना
दिवालियापन की कार्यवाही शुरू करने के लिए, कोई भी वित्तीय लेनदार (जैसे बैंक या घर खरीदार) या परिचालन लेनदार (Operational Creditor), या स्वयं कंपनी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में एक आवेदन दाखिल कर सकती है.

अगर किसी बिल्डर ने तय समय पर फ्लैट नहीं दिया, तो कम से कम 100 घर खरीदार या कुल घर खरीदारों में से कम से कम 10% एक साथ मिलकर NCLT में याचिका दायर कर सकते हैं.

अगर बिल्डर बैंक के ऋण चुकाने में विफल रहता है, तो बैंक भी NCLT में आवेदन कर सकता है.

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2. दिवालियापन कार्यवाही की शुरुआत (CIRP)

NCLT आवेदन स्वीकार करने के बाद कॉर्पोरेट इनसॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रोसेस (CIRP) की शुरुआत करता है. इस दौरान, NCLT एक इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल (IP) की नियुक्ति करता है. IP कंपनी का प्रबंधन संभालता है और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की शक्तियां निलंबित हो जाती हैं, इस अवधि के दौरान, बिल्डर के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्यवाही या ऋण वसूली प्रक्रिया रोक दी जाती है. यह प्रक्रिया आमतौर पर 180 दिनों की होती है, जिसे 90 दिन तक बढ़ाया जा सकता है.

3. लेनदारों की समिति (CoC) का गठन

IP सभी लेनदारों की एक समिति (Committee of Creditors) का गठन करता है, इस समिति में मुख्य रूप से वित्तीय लेनदार (Financial Creditors) शामिल होते हैं, जिनमें बैंक और घर खरीदार भी शामिल होते हैं. यह समिति बिल्डर को पुनर्जीवित करने के लिए समाधान योजना (Resolution Plan) पर निर्णय लेती है.

4. समाधान योजना (Resolution Plan)

लेनदारों की समिति (CoC) विभिन्न समाधान योजनाओं पर विचार करती है जो बिल्डर को पुनर्जीवित करने के लिए प्रस्तुत की जाती हैं.

ये योजनाएं किसी अन्य कंपनी द्वारा प्रस्तुत की जा सकती हैं, जो बिल्डर को खरीदने या उसके प्रोजेक्ट को पूरा करने में रुचि रखती हो.

अगर किसी योजना को CoC के 66% सदस्यों की मंजूरी मिल जाती है, तो उसे NCLT के पास अंतिम मंजूरी के लिए भेजा जाता है.

5. दिवालियापन की घोषणा (Liquidation)

अगर कोई भी समाधान योजना CoC को स्वीकार्य नहीं होती है या 330 दिनों की समय सीमा के भीतर कोई समाधान नहीं निकल पाता, तो NCLT बिल्डर को दिवालिया घोषित कर देता है. इस स्थिति में, कंपनी की सभी परिसंपत्तियों को बेचा जाता है ताकि लेनदारों का बकाया चुकाया जा सके.

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घर खरीदारों पर प्रभाव

बिल्डर के दिवालिया होने से घर खरीदारों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, दिवालियापन की कार्यवाही के दौरान प्रोजेक्ट का काम रुक जाता है,खरीदारों का पैसा फंस जाता है, और उन्हें अपना घर मिलने की उम्मीद कम हो जाती है. उन्हें अपनी बकाया राशि वापस पाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है.

हालांकि, RERA (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) और IBC ने घर खरीदारों को कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान की है, लेकिन दिवालियापन की प्रक्रिया में उनका पैसा और समय दोनों बर्बाद हो सकता है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि IBC का मुख्य उद्देश्य कंपनी को पुनर्जीवित करना है, न कि उसे तुरंत दिवालिया घोषित करना. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बिल्डर के प्रोजेक्ट को पूरा किया जाए, जिससे घर खरीदारों और अन्य लेनदारों का हित सुरक्षित रहे.

 

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