Wednesday 27/ 08/ 2025 

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यूपी बीजेपी से क्यों नाराज हैं संजय निषाद, गठबंधन तोड़ने की धमकी के पीछे परेशानी है या पावर गेम? – up yogi govt minister sanjay nishad bjp alliance breakup nda political challenges obc ntcpkb

उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के तीन सहयोगी मंत्री पिछले हफ्ते दिल्ली में एकजुट होकर बीजेपी को संदेश देते हैं और अब गठबंधन तोड़ने की धमकी दे दी है. इस तरह 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी तेवर दिखाकर उन्होंने गेंद बीजेपी के पाले में डाल दी है.

योगी सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने गोरखपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कह दिया है कि बीजेपी को अगर उनसे फायदा नहीं है तो गठबंधन तोड़ सकती है. यही नहीं, संजय निषाद ने कह दिया है कि बीजेपी अपने स्थानीय नेताओं से सहयोगी दलों पर हमले कराना बंद करे, नहीं तो आगे दोस्ती बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा. यह बात उन्होंने सिर्फ निषाद पार्टी के लिए नहीं बल्कि ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा और जयंत चौधरी की आरएलडी के लिए भी कही है.

संजय निषाद ने जैसे ही गठबंधन तोड़ने की धमकी वाला बयान दिया, बीजेपी में खलबली मच गई और बयान के कुछ ही घंटे के भीतर पार्टी ने डैमेज कंट्रोल की शुरुआत कर दी. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष से लेकर प्रदेश के संगठन महामंत्री तक ने संजय निषाद से बात की और पूछा कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने इतना बड़ा बयान बीजेपी के खिलाफ दे दिया और वो भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र गोरखपुर से.

संजय निषाद का बीजेपी को दो टूक संदेश

योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने मंगलवार को कहा कि अगर बीजेपी को लगता है कि निषाद पार्टी से उसे कोई फायदा नहीं है तो गठबंधन तोड़ दे. बीजेपी अपने ‘छुटभैया नेताओं’ से सहयोगी दलों के खिलाफ बयानबाजी कर माहौल खराब न करे.

संजय निषाद ने कहा कि जैसे बीजेपी को ओमप्रकाश राजभर से राजभर समाज का वोट और आरएलडी से जाट समाज का वोट मिला, वैसे ही निषाद समाज का वोट उन्होंने बीजेपी को दिलाया है. बावजूद इसके बीजेपी के कुछ नेता उनके खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. संजय निषाद ने बकायदा जयप्रकाश निषाद, पीयूष रंजन निषाद और राज्यमंत्री रामकेश निषाद का नाम लेकर यह बात कही.

निषाद पार्टी प्रदेश में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने जा रही है. संजय निषाद ने कहा कि अनुसूचित जाति में निषाद समाज को शामिल करने की मांग पर हम संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि 31 अगस्त को जनजाति दिवस मनाया जाएगा, समाज की एकजुटता दिखाई जाएगी. मंत्री ने साफ कहा कि 2024 में भले कुछ न मिला हो, लेकिन 2027 की तैयारी शुरू है. उन्होंने कहा कि कोई नेता घमंड न करे, 2018 की जीत याद रखे जब सपा-बसपा साथ आए थे और हम बीजेपी के साथ खड़े थे.

बीजेपी से क्यों नाराज हैं संजय निषाद?

संजय निषाद बीजेपी नेताओं पर ऐसे ही नहीं भड़के हैं, बल्कि उन्हें लगता है कि बीजेपी अपने निषाद चेहरों को आगे कर निषाद पार्टी को कमजोर करने में जुटी है. यही नहीं, कई नेता ऐसे हैं जो बड़े नाम तो नहीं हैं, लेकिन निषाद पार्टी के नेताओं के बारे में जिलों में अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं और उन्हें बीजेपी के दूसरे नेता शह दे रहे हैं. योगी सरकार में बीजेपी नेता मंत्री जयप्रकाश निषाद और फतेहपुर की पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति संजय निषाद के निशाने पर हैं. बीजेपी नेताओं के अलग-अलग बयान पर संजय निषाद ने बीजेपी को घेर लिया है.

संजय निषाद ने आज तक से फोन पर बातचीत में बताया कि साध्वी निरंजन ज्योति ने उनके कुछ फैसलों पर सवाल उठाए हैं, जिसमें मछुआरों को नदियों में मुक्त अधिकार देने को साध्वी निरंजन ज्योति ने नदियों को बेच देने की बात कही है. वहीं, योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री जेपी निषाद मेरे परिवार के खिलाफ बयान दे रहे हैं जो कतई स्वीकार नहीं होगा. दूसरे दलों से आए पीयूष रंजन निषाद जैसे नेता जिन्होंने निषाद पार्टी को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उन्हें बीजेपी अपना शूटर बनाकर मेरे खिलाफ इस्तेमाल कर रही है. इसके अलावा, संत कबीर नगर के बीजेपी के कई ब्राह्मण चेहरे और विधायकों ने निषाद पार्टी के खिलाफ काम किया है.

संजय निषाद की नाराजगी के मायने?

पिछले हफ्ते निषाद पार्टी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अपना स्थापना दिवस मनाया था, जिसमें बीजेपी के सभी सहयोगी दल के नेता मौजूद थे, लेकिन बीजेपी का कोई नेता शिरकत नहीं किया था. इस बात को भी संजय निषाद ने मुद्दा बनाया और कहा कि क्या बीजेपी उनसे इतनी विरक्त हो चुकी है कि उनके कार्यक्रम का बहिष्कार करने लगी है. संजय निषाद ने अब एक तरह से सहयोगी दलों की तरफ से बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.

आरएलडी के अध्यक्ष जयंत चौधरी के खिलाफ जिस तरीके की बात योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने कही, उस बात से भी संजय निषाद नाराज हैं. उन्हें यह लगता है कि बीजेपी एक-एक करके अपने सहयोगियों को टारगेट कर रही है. पिछले दिनों लक्ष्मी नारायण चौधरी ने आरएलडी के जयंत चौधरी को बीजेपी के लिए ‘पनौती’ बता दिया था, जिसकी काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई और बीजेपी के नेता को बाद में सफाई देनी पड़ी. इसके अलावा अपना दल (एस) के आशीष पटेल पहले ही नाराज हैं, जिसे लेकर आशीष पटेल ने खुद इल्जाम लगा चुके हैं.

योगी सरकार में संजय निषाद, ओमप्रकाश राजभर और आशीष पटेल मंत्री हैं. ये तीनों बीजेपी के सहयोगी दल हैं और ओबीसी चेहरा हैं. निषाद पार्टी के कार्यक्रम में बीजेपी के सहयोगी नेताओं की तिकड़ी ने एकजुट होकर अपनी सियासी ताकत दिखाने के साथ दिल्ली से लखनऊ को सियासी संदेश देने की कवायद की है. अभी तक ये तीनों सहयोगियों की मांग और अपेक्षाओं पर बीजेपी अलग-अलग समन्वय बना रही थी, लेकिन पिछले दिनों तीनों एक साथ आकर अपने हितों को लेकर मांग उठाई थी. अब संजय निषाद फ्रंटफुट पर उतरकर बीजेपी पर हमलावर हैं व तेवर भी दिखा रहे हैं.

निषाद पार्टी की पकड़ क्या पड़ रही ढीली?

बीजेपी को भी लगने लगा है कि संजय निषाद की जो पकड़ निषाद वोटरों पर थी, वह 2024 के लोकसभा चुनाव में ढीली पड़ गई. इसकी वजह संजय निषाद का अपना परिवार प्रेम ज्यादा है यानी जब-जब बीजेपी ने संजय निषाद को गठबंधन में कुछ दिया तो संजय निषाद ने उसे सबसे पहले अपने परिवार में बांटा. गठबंधन बीजेपी से होने के बाद संजय निषाद ने बेटे को भाजपा से सांसद बनाया, दूसरे बेटे को निषाद पार्टी से विधायक बनाया, खुद एमएलसी बने और मंत्री भी बने. संजय निषाद को भी इसका एहसास है कि परिवारवाद के आरोप लगने की वजह से उनका नुकसान होना भी शुरू हो गया है और निषाद वोटरों पर जो उनकी जबरदस्त पकड़ थी, वह ढीली हुई है.

निषाद वोटों के अलमबरदार होने का दावा करने वाले संजय निषाद के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने भी इसी मुद्दे को खूब उछाला था और इस मुद्दे की वजह से ही बीजेपी सभी निषाद सीट हार गई, जबकि सपा सुल्तानपुर जैसी सीट भी निषाद चेहरे को उतार कर जीत गई. इसी तरह से अपना दल (एस) की पकड़ भी कुर्मी वोटों पर कमजोर पड़ी है, जिसका नतीजा 2024 के लोकसभा के चुनाव में दिखा था. राजभर वोटों से ओपी राजभर और जाट वोटों से जयंत चौधरी की पकड़ पहले की तरह नहीं रही.

संजय निषाद को भी इसका एहसास अब तेजी से होने लगा है कि उनका परिवार प्रेम उनकी सियासत पर भारी पड़ रहा है, इसीलिए उन्होंने अपने बेटे को पार्टी के प्रभारी पद से हटा दिया, जो बीजेपी में होते हुए भी निषाद पार्टी के प्रभारी पद पर तैनात था. संजय निषाद आने वाले दिनों में बीजेपी पर और हमलावर होंगे, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर वो बीजेपी के पिछलगू बनकर सियासत करते रहे तो उनकी निषाद पॉलिटिक्स का नुकसान हो जाएगा. इसलिए दूसरे सहयोगी दलों की तर्ज पर संजय निषाद भी अपनी अहमियत और पहचान अलग बनाए रखना चाहते हैं और इसीलिए बीजेपी उनके निशाने पर रहने वाली है.

बीजेपी के घटक दलों की सियासी ताकत

निषाद पार्टी का सियासी आधार निषाद समाज के वोट बैंक के बीच है. ओबीसी में काफी जाति निषाद है, जिसकी आबादी करीब 6 फीसदी हैं. निषाद समाज के मतदाताओं का 30 से 35 सीटों पर प्रभाव है. इसी तरह अपना दल (एस) का बड़ा आधार कुर्मी समाज माना जाता है, जो ओबीसी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी है. करीब सात फीसदी कुर्मी समाज का 20 से 25 सीटों पर असर है.

वहीं, ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा का वोट बैंक कहे जाने वाले राजभर समुदाय का 15 से 20 सीटों पर प्रभाव है. ऐसे में ये तीनों अलग होते हैं तो बीजेपी को 80 से 90 विधानसभा सीटों पर मुश्किल हो सकती है. इनके एकजुट होकर अलग लड़ने या बीजेपी के साथ लड़ने, दोनों स्थितियों में सपा के पीडीए फार्मूले पर असर पड़ने की संभावना है. माना जा रहा है कि निषाद, कुर्मी और राजभर वोट जुड़ने पर सपा का गैर-यादव ओबीसी समीकरण कमजोर पड़ सकता है. इस बात को समझते हुए संजय निषाद ने मोर्चा खोल दिया है.

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