Thursday 04/ 09/ 2025 

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Shekhar Gupta’s column – Pakistan sowed the seeds of sourness in India-US relations | शेखर गुप्ता का कॉलम: भारत-अमेरिका सम्बंधों में खटास के बीज पाक ने डाले

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3 घंटे पहले

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ - Dainik Bhaskar

शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

16 अप्रैल को आसिम मुनीर ने पाकिस्तान की विचारधारा की अपनी व्याख्या प्रस्तुत करने वाला चर्चित भाषण दिया था। इस भाषण में उन्होंने अपने उसी विचार को आगे बढ़ाया था, जिसे उन्होंने फ्लोरिडा में दिए अपने कुख्यात भाषण में पेश किया था। इस भाषण को उस आयोजन में शरीक हुए एक श्रोता ने लीक कर दिया था। वे भारत को चिढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन हम उनके इरादों को कामयाब न होने दें और गुस्से में कोई गलत चाल न चल दें।

मुनीर को गंभीरता से लेने के लिए आपको उन्हें पसंद करना जरूरी नहीं है। वास्तव में, आप उन्हें जितना ज्यादा नापसंद करेंगे, उतना ही आपको उनकी बातों और कदमों पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें शक की नजर से देखना होगा और उनके बारे में गंभीर विश्लेषण करना होगा। उनकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि एक फौजी तानाशाह के रूप में वे बड़बोलेपन के प्रति अपने से पहले के नेताओं से कहीं ज्यादा घातक रूप से आकर्षित हैं और अपने इरादों का खुलासा कर देते हैं।

उनसे पहले अय्यूब खान, याह्या खान, जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ- सबने पहले तो भारत के साथ अमन और बातचीत की वकालत की और आखिर में कुल्हाड़ी उठा ली या आम तौर पर शांतिप्रिय और गैर-आक्रामक रहे।

मुनीर ने शुरू में ही अपने इरादे साफ कर दिए। वे पाकिस्तान को एक डम्पर ट्रक और भारत को एक तेज रफ्तार वाली चमकदार मर्सिडीज के रूप में क्यों दिखा रहे हैं? जैसे कि यह डम्पर ट्रक भारत को टक्कर मारने जा रहा हो। इसका मतलब क्या है?

भारत में इसका यह मतलब बताया गया कि यह आत्म-दया से ग्रस्त, अपने मुल्क को कमतर मानने वाले तथा भारत से ईर्ष्या करने वाले पाकिस्तानी मानव बम की शेखी के सिवा कुछ नहीं है। यह तो सच है कि वे भारत से ईर्ष्या करते हैं।

और यह सिर्फ ईर्ष्या नहीं, बल्कि भारत से काफी पीछे छूट जाने से उपजी गहरी डाह तथा गुस्से का इजहार है। जरा कल्पना कीजिए कि कल को आपने अगर अपनी सीमाओं को खोल दिया तब किस ओर से ज्यादा लोग, बल्कि साफ कहें तो ज्यादा मुसलमान सीमा की दूसरी तरफ जाएंगे?

मुनीर जब पाकिस्तान को डम्पर ट्रक जैसा बताते हैं, तब इससे यह मतलब नहीं निकाला जाता कि हमारा क्या नुकसान हो सकता है बल्कि यह निकाला जाता है कि यह ट्रक खुद को कम नुकसान पहुंचाए बिना ज्यादा कीमती, नाजुक और तेज रफ्तार गाड़ी को कितना नुकसान पहुंचा सकता है। 16 अप्रैल को मुनीर ने अपने भाषण में कहा ही था कि पाकिस्तान को सख्त मुल्क बनना होगा। उनकी कल्पना का डम्पर वही है।

शुरू में मैंने भी इसे ‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे’ वाली मानसिकता मानने की भूल की थी। लेकिन मुझे ज्यादा साफ नजरिया तब हासिल हुआ जब पाकिस्तान के गृह मंत्री मोहसिन नकवी ने इसी कल्पना का एक और रूप दिखाया था। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब के विदेश मंत्री आदिल अल-जुबैर भारत से लौटते हुए इस्लामाबाद में रुके तो वे उन्हें मुनीर से मुलाकात कराने ले गए।

उन्होंने जब मुनीर को बताया कि भारत ज्यादा बड़ा हमला करने की सोच रहा है, तब मुनीर ने उनसे कहा कि पाकिस्तान का जवाब मर्सिडीज गाड़ी को टक्कर मारने वाले डम्पर ट्रक जैसा होगा। उनका लहजा यही संकेत देते हैं कि मुनीर और उनके साथी इसे अपनी ताकत का बयान मानते हैं।

दोनों देशों के बीच का फासला बढ़ता ही गया है और यह जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, वह मुनीर को खतरे की घंटी जैसा लगता है। इस फासले को वे पाकिस्तान की तरक्की की रफ्तार बढ़ाकर पाट नहीं सकते। उनके जीवनकाल में खोदकर निकाले गए तमाम खनिजों से हासिल खरबों रुपयों के बाद भी नहीं। इसलिए वे यही कर सकते हैं कि भारतीय मर्सिडीज की रफ्तार में अड़ंगा डालें। और वे इस पर अमल करने में जुट गए हैं।

उनके डम्पर ट्रक ने जिस पहली मर्सिडीज को नुकसान पहुंचाया है- उसका नाम है भारत-अमेरिका संबंध, जिसे दोनों देशों के आला नेता पिछले 25 वर्षों से 21वीं सदी का सबसे उल्लेखनीय संबंध बताते रहे हैं। हम ट्रम्प पर चाहे जितनी तोहमत लगाएं, रिश्ते में खटास के बीज मुनीर ने ही डाले।

मुनीर ने श्रेय लूटने की ट्रम्प की भूख का तुरंत फायदा उठाया, उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की सिफारिश कर डाली। 2011 में एबटाबाद कांड के बाद अमेरिका से पाक का खास रिश्ता टूट गया था। तब से पाकिस्तानी हुकूमत अमेरिका की नजर में भारत की बढ़ती अहमियत को लेकर परेशान होती रही है। पाकिस्तान का शासक-वर्ग अमेरिका परस्त है। मुनीर ने समझ लिया था कि भारत-अमेरिका दोस्ती में अड़ंगा लगाना जरूरी है।

मुनीर ने हमारे सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक रिश्ते को चोट पहुंचाई है, हमें चीन के करीब जाने को मजबूर कर दिया है और अगली बार किसी बड़े आतंकवादी हमले के जवाब में फौजी कार्रवाई करने को प्रतिबद्ध कर दिया है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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