N. Raghuraman’s column – Do a small task without any expectations and see how it pays off. | एन. रघुरामन का कॉलम: बिना किसी अपेक्षाओं के कोई छोटा-सा काम करें और देखें कि उसका कैसा प्रतिफल मिलता है।

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2 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मुंबई में हल्की बारिश के बाद दोपहर में बेहद गर्मी थी। उमस से हर कोई बेहाल था। एक शानदार लंच के बाद मेरे दोस्त छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) के लिए रवाना हुए, ताकि अपने गृहनगर को जाने वाली ट्रेन पकड़ सकें। इसकी बुकिंग उन्होंने एक महीने पहले से करवा रखी थी।
सबसे व्यस्त दिनों में भी रेलवे स्टेशन पहुंचने में एक घंटे से ज्यादा समय नहीं लगता है। लेकिन उस दिन जाने किस वजह से वे ट्रेन के समय से तीन घंटे पहले निकल गए, बिना इस बात को समझे कि यह उनके लिए एक वरदान साबित होगा।
जब उनकी कार सीएसटी से सिर्फ पांच किलोमीटर की दूरी पर थी और ट्रेन के रवाना होने में अभी दो घंटे बाकी थे, तब उन्हें पूरा भरोसा था कि वे अनुमानित समय से बहुत पहले स्टेशन पहुंच जाएंगे। लेकिन अगले 45 मिनटों तक उनकी कार एक इंच भी नहीं हिली, जिससे धीरे-धीरे उनकी धड़कनें तेज हो गईं और उन्हें और उनके ड्राइवर को पसीने छूटने लगे। उनके अंदर से आवाज आई कि ट्रेन छूट जाएगी।
उन्हें नहीं पता था कि 12 डीसीपी, 14 एसीपी, 52 पुलिस इंस्पेक्टर, 250 से ज्यादा एपीआई और पीएसआई, छह स्ट्राइकिंग फोर्स, 15 एसआरपीएफ टीमें और इनके साथ ही गुजरात और दिल्ली से सीआईएसएफ और रैपिड एक्शन फोर्स की कई टुकड़ियां सीएसटी के ठीक बाहर की सड़कों पर लगातार पांच दिनों तक तैनात थीं।
धीरे-धीरे उन्हें समझ आया कि उनमें से कई लोगों को अपनी गणपति स्थापना छोड़नी पड़ी है या सड़कों पर ही जन्मदिन मनाना पड़ा है। भूख लगने पर वे वड़ा पाव खा लेते थे, क्योंकि आरक्षण आंदोलन को संभालने के लिए उनकी वहीं सबसे ज्यादा जरूरत थी। इस तरह यह हाल के दिनों का सबसे बड़ा बंदोबस्त बन गया था। यह विरोध प्रदर्शन गणेशोत्सव के दौरान हुआ, जिससे पुलिस तंत्र खासा तनाव में आ गया और लोगों को अपने निजी जीवन में कुछ कुर्बानियां देनी पड़ीं।
ड्राइवर ने कहा कि सिग्नल पर पहुंचते ही मैं बाएं मुड़कर आपको सीएसटी पहुंचाने वाले शॉर्टकट पर ले जाऊंगा। लेकिन उन्हें पता था कि गाड़ी एक इंच भी नहीं हिली है। अचानक, ट्रैफिक घोंघे की रफ्तार से चलने लगा। हर दो मिनट में वे अपनी कलाई घड़ी देख रहे थे और उनकी धड़कनें बढ़ रही थीं। लेकिन ट्रैफिक फिर रुक गया।
चूंकि उन्हें मालूम था कि बाहर बहुत उमस है, इसलिए वे पसीना पोंछने वाले गीले टिशू पेपर लेकर गाड़ी से बाहर निकले। हाथ में डिब्बा लिए ही वे सिग्नल पर खड़े पुलिस वाले की ओर चल पड़े और वह पुलिस वाला भी पूरी तरह से पसीने में तरबतर था। उन्होंने जाकर पुलिस वाले को अपनी स्थिति बताई, लेकिन उन्हें एक लाइन का जवाब मिला- तुम्हें दिखाई नहीं देता कितनी भीड़ है? मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहा हूं।
तभी उन्होंने उस पुलिस वाले के गाल पर छोटी-सी नहर की तरह पसीने की धार को देखा, जैसे किसी बांध से पानी निकल रहा हो। उन्होंने गीले टिशू का पॉकेट उनके हाथों में रखते हुए कहा, इससे अपना चेहरा पोंछ लीजिए। पुलिस वाले ने ऐसे आज्ञा का पालन किया, जैसे यह उनके अधिकारी का आदेश हो।
उस समय उनके चेहरे का भाव याद रखने लायक था। यह विस्मय और गहन कृतज्ञता का सुंदर मिश्रण था। पुलिस वाला मुस्कराया और उसके सांवले रंग के चलते उसके सफेद दांतों की पंक्ति और चमक उठी। कोलाहल के उस क्षण में उस गीले टिशू ने एक अलग प्रकार की मानवता को रेखांकित किया था।
अपना चेहरा घुमाए बिना ही पुलिस वाले ने पूछा, तुम्हारी कार कहां है? उन्होंने कहा, लगभग 14 कारों के पीछे। पुलिस वाले ने कहा, जाओ और अपनी कार में जाकर बैठ जाओ। इस बार मेरे दोस्त ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
पुलिस वाले ने जल्दी से सड़क के बाएं हिस्से को क्लीयर किया और कुछ ही मिनटों बाद वे सिग्नल पर उस पुलिस वाले को पार कर रहे थे। पुलिस वाले ने उनके अच्छे व्यवहार का शुक्रिया अदा करने के लिए हाथ हिलाया और मेरे दोस्त ट्रेन चलने से 20 मिनट पहले ही सीएसटी पहुंच गए।
फंडा यह है कि बिना किन्हीं अपेक्षाओं के कोई छोटा-सा काम करें और देखें कि उसका कैसा प्रतिफल मिलता है। क्योंकि महान प्रेम अकसर सबसे छोटे नि:स्वार्थ कार्य में भी दमक उठता है।
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